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निजता एक मौलिक अधिकार

अगर निजता के अधिकारों के साथ समझौता होता है, तो जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों पर संकट उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है. दशकों से जारी बहस और एक के बाद एक मामलों की परिणति से ये तथ्य स्पष्ट हो चुके हैं. सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक […]

अगर निजता के अधिकारों के साथ समझौता होता है, तो जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों पर संकट उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है. दशकों से जारी बहस और एक के बाद एक मामलों की परिणति से ये तथ्य स्पष्ट हो चुके हैं. सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों का हिस्सा बता कर निजता की बहस को ऐतिहासिक मोड़ दिया है. हालांकि पहले से ही व्यक्तिगत मामलों में सरकार की दखल को निजता के हनन के रूप में देखा जाता है.

देश डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है, ऐसे में जन निगरानी प्रौद्योगिकी पर आधारित ‘आधार’ की भूमिका निश्चित ही महत्वपूर्ण है. प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, विभिन्न सेवाओं का प्रभावी वितरण और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में इस तकनीक में बड़ी संभावनाएं नजर आती हैं, लेकिन निजता और राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर इस योजना के समक्ष अनेक अनसुलझे सवाल हैं.

डेटाबेस में किसी भी प्रकार की सेंधमारी भयावह तबाही खड़ी कर सकती है. तमाम आ‌श्वासनों के बावजूद ऐसी स्थिति में नागरिकों को किसी भी प्रकार के क्षतिपूर्ति की कोई गारंटी नहीं मिलती. ऐसे में पीठ द्वारा निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद-21 का हिस्सा बताना निश्चित ही ऐतिहासिक फैसला है. हालांकि यह फैसला आधार योजना के प्रभावों का स्पष्ट तौर पर कोई जिक्र नहीं करता, लेकिन इससे तय हो गया है कि आधार मामले में इस फैसले ने बड़ी पृष्ठभूमि तैयार कर दी है. इस फैसले का प्रभाव डीएनए आधारित प्रौद्योगिकी विधेयक- 2017 पर भी होगा. सरकार का दावा है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार, हवाला और आतंकियों को वित्तीय मदद जैसी चुनौतियों से निपटने में आधार की बड़ी भूमिका है. आधार से करोड़ों गरीबों को प्रत्यक्ष लाभ, सब्सिडी और विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में आसानी हुई है.

लेकिन तमाम योजनाओं के बावजूद सरकार निजता व गोपनीयता के अधिकारों के लिए ठोस सुरक्षा का भरोसा नहीं दिला सकी है. सर्वोच्च न्यायालय ने मजबूत डेटा संरक्षण तंत्र के गठन के मुद्दे पर सरकार से कई बार सवाल किया है. सरकार द्वारा डेटा सुरक्षा के मुद्दों और डेटा संरक्षण विधेयक के मसौदे के लिए सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्ण की अगुवाई में एक समिति का गठन किया गया है. जाहिर है कि निजता और डेटा संरक्षण के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ सुरक्षा के मानक तय करने होंगे, जिससे करोड़ों नागरिकों की गोपनीयता और व्यक्तिगत जानकारियांे की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके. इसके लिए सरकार को अनेक स्तरों पर ठोस और त्वरित कदम उठाने की जरूरत है.

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