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भारत, भूटान और चीन की सीमा पर स्थित डोकलाम इलाके में जारी तनाव में नरमी की संभावनाएं कमजोर होती जा रही हैं. कुछ दिन पहले भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन जाकर राष्ट्रपति समेत विभिन्न शीर्ष अधिकारियों से बातचीत कर सुलह का रास्ता निकालने की कोशिश की थी, पर इसका सकारात्मक परिणाम […]

भारत, भूटान और चीन की सीमा पर स्थित डोकलाम इलाके में जारी तनाव में नरमी की संभावनाएं कमजोर होती जा रही हैं. कुछ दिन पहले भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन जाकर राष्ट्रपति समेत विभिन्न शीर्ष अधिकारियों से बातचीत कर सुलह का रास्ता निकालने की कोशिश की थी, पर इसका सकारात्मक परिणाम नजर नहीं आ रहा है.
दोनों देशों की तरफ से तल्खी भरी बयानबाजियों का सिलसिला चल ही रहा है. चीन एशिया के इस हिस्से में आर्थिक और सामरिक दबदबा बनाने की लगातार कोशिश कर रहा है तथा इस प्रक्रिया में वह द्विपक्षीय संबंधों तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति के तौर-तरीकों को भी दांव पर लगाने से नहीं हिचक रहा है.
डोकलाम में गतिरोध उसके इसी रवैये का नतीजा है. एक ओर चीन ने कश्मीर में दखल देनेकी धमकी दी है, तो अब युद्ध की संभावनाओं की तरफ साफ इशारा किया जा रहा है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि दो सप्ताह के भीतर चीन सैन्य कार्रवाई कर डोकलाम से भारतीय सैनिकों को हटाने की कोशिश कर सकता है. ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य और अर्थशास्त्री मेघनाद देसाई ने आशंका जतायी है कि यह सैन्य टकराव सिर्फ डोकलाम तक सीमित नहीं रहेगा और हिमालय में कई जगह मोर्चे खुल सकते हैं.
चीन की आक्रामकता को कूटनीतिक प्रयास से कमतर करने की कोशिशें तेज करने की जरूरत है. भारत ने लगातार इस बात पर जोर दिया है कि विवादों का निपटारा संवाद के माध्यम से किया जाना चाहिए. सवाल यह नहीं है कि युद्ध में कौन भारी पड़ेगा और कौन कमजोर, मसला यह है कि सैन्य टकराव न सिर्फ दोनों देशों के लिए, बल्कि इस पूरे इलाके लिए बेहद नुकसानदेह साबित होगा. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में युद्ध के विकल्प को खारिज करते हुए कहा था कि दोनों देशों के व्यापारिक रिश्ते मजबूत हो रहे हैं और बातचीत से समाधान निकाला जा सकता है.
उन्होंने इस तथ्य को भी रेखांकित किया है कि भारत में चीनी निवेश 160 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है. उम्मीद की जानी चाहिए कि चीन स्वराज की बात पर समुचित ध्यान देगा. दोनों देशों के बीच मौजूदा व्यापार का संतुलन चीन के पक्ष में है तथा शांति-सद्भाव से सीमा-विवाद और अन्य मुश्किलों का हल निकालना उसके लिए अधिक लाभकारी है.
दो बड़ी आर्थिक शक्तियों के लिए आपसी संबंधों का आधार सिर्फ एक मुद्दा नहीं हो सकता है. आशा है कि आगामी दिनों में चीन के आक्रामक रुख में बदलाव आयेगा और पहले की तरह द्विपक्षीय बातचीत से विवादित मुद्दों पर विमर्श फिर से शुरू होगा.
Prabhat Khabar Digital Desk
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