रांची : पिछले दिनों फेसबुक पर झारखंड के लेखक डॉ हांसदा सोवेंद्र शेखर की किताब ‘आदिवासी विल नॉट डांस’ के एक चैप्टर पर खूब बहस हुई. आदिवासी समाज के लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस पुस्तक के एक चैप्टर ‘सीमेन, सलाइवा, स्वीट, ब्लड’ की भाषा पर आपत्ति की. कई प्रबुद्ध लोगों ने डॉ शेखर को दिया गया साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस लेने की मांग तक अकादमी से कर डाली. इस बीच, विधानसभा में यह मुद्दा उठा और राज्य सरकार ने उनकी पुस्तक ‘आदिवासी विल नॉट डांस’ को बैन कर दिया. साथ ही पाकुड़ के सरकारी अस्पताल में पदस्थ डॉ हांसदा सोवेंद्र शेखर को निलंबित करने के आदेश जारी करने का निर्देश पाकुड़ के डीसी को दे दिये.
राज्य सरकार के मंत्री सरयू राय ने विधानसभा में इसकी घोषणा की. उन्होंने कहा कि सोवेंद्र शेखर की किताब की प्रतियां जब्त कर ली गयी हैं. उनकी तलाश जारी है. उन्हें निलंबित करने के निर्देश डीसी को दे दिये गये हैं. साथ ही श्री राय ने कहा कि बाकी साहित्यकारों का भी ध्यान रखना है. ऐसा न हो कि एक बार फिर पुरस्कार वापस होने लगें.
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सरकार की इस कार्रवाई को अश्विनी कुमार पंकज राजनीति से प्रेरित कदम बताते हैं. उनका कहना है कि किताब को बैन करना समस्या का हल नहीं है. लेखक का सामाजिक बहिष्कार भी समाधान नहीं है. आदिवासी समाज में कठोर सजा की व्यवस्था नहीं है. श्री पंकज ने कहा कि किसी लेखक की पुस्तकें नहीं जलायी जानी चाहिए. लेखक का पुतला जलाना भी उचित नहीं है.
श्री पंकज ने कहा कि सरकार ने झारखंड के मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए डॉ हांसदा की पुस्तक पर बैन लगाने जैसा सख्त कदम उठाया है. उन्होंने कहा कि लेखक के समाज संवाद करने की जरूरत है. उन्हें यह बताने की जरूरत है कि उन्होंने आदिवासी महिलाओं का जो चरित्र चित्रण किया है, सच्चाई उसके विपरीत है. श्री पंकज ने कहा कि संथाल महिलाओं पर अत्याचार होते हैं, लेकिन वह उसका प्रतिकार करती हैं. लेकिन, डॉ हांसदा की पुस्तक में वह बिछी हुई दिखती है. उसके विरोध के अधिकार का इस पुस्तक में कोई जिक्र ही नहीं है.
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हम उनकी पुस्तक पर प्रतिबंध के पक्ष में कतई नहीं हैं. लेकिन, हम चाहते हैं कि वह आदिवासी समाज, आदिवासियों की परंपरा और उनकी संस्कृति पर कलम चलायें. लेकिन, वह सेक्स तक ही सीमित रहना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने डॉ हांसदा सोवेंद्र शेखर से संवाद करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने किसी से बात करना मुनासिब नहीं समझा. कुछ दिनों बाद एक इंटरव्यू में उन्होंने जो बातें कहीं, उसके बाद हमें समझ आया कि उनकी सोच क्या है? संभवत: वह सेक्स एडिक्टेड हैं. वह सिर्फ सेक्स पर ही लिखना चाहते हैं. हमारा मानना है कि आदिवासी समाज और आदिवासी दर्शन से उनका कोई लेना-देना नहीं है.’
श्री पंकज ने कहा कि अंग्रेजी की दुनिया अलग है. आदिवासियों की दुनिया अलग. सोवेंद्र शेखर अंग्रेजी की दुनिया के अनुरूप आदिवासी संस्कृति को पेश करने की कोशिश कर रहे हैं. हमें इस पर विरोध है. डॉ हांसदा चर्चा में रहने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते. इसमें उनकी भी कोी गलती नहीं है. अंग्रेजी के प्रकाशक उनकी पुस्तकें छाप रहे हैं, तो वह लिख रहे हैं. लेकिन, आज समाज उनसे सवाल कर रहा है. उन्हें सामने आकर उन सवालों का जवाब देना चाहिए. उन्हें पाठकों के साथ संवाद करना चाहिए, अपनी सोच स्पष्ट करनी चाहिए.
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इतना ही नहीं, अश्विनी कुमार पंकज चाहते हैं कि अंग्रेजी के लेखक भी संथाल परगना में आयें. वे वहां की सभ्यता, संस्कृति और परंपराओं के बारे में जानें. इसके बाद अपनी कलम चलायें. इससे दुनिया को संथाल के आदिवासियों की समृद्ध परंपरा से अवगत होने का मौका मिलेगा.
दूसरी तरफ, ग्लैडसन डुंगडुंग,जो इस मुद्दे पर फेसबुक पर काफी मुखर थे, से जब बात करने की कोशिश की गयी, तो उन्होंने कोई स्पष्ट राय नहीं रखी. उन्होंने कहा कि ये शख्स सलमान रुश्दी बनना चाहता है. इसे सबक सिखाना होगा. यह पूछे जाने पर कि सबक कैसे सिखाया जाना चाहिए, उन्होंने कहा कि यदि इसका सामाजिक बहिष्कार किया गया, तो वह वर्ल्ड फेमस हो जायेगा. ऐसा घटिया काम नहीं करना चाहिए. डुंगडुंग ने कहा कि लेखक को समाज को समृद्ध बनाने के लिए लिखना चाहिए.
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उन्होंने कहा कि यदि ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया जायेगा, तो भी वह लिखेगा ही. उसको छापनेवाले लोग भी हैं, क्योंकि कुछ लोगों को दुनिया में सेक्स के अलावा कुछ नहीं दिखता. अब तो ये लोग पोर्नोग्राफिक राइटिंग को भी साहित्य का दर्जा दे रहे हैं. इसे इरोटिका लिटरेचर (Erotica Literarure) कहते हैं.

