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प्रभात खबर से विशेष बातचीत में बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन ने कहा, शिक्षा में धंधेबाजी नहीं चलेगी, देंगे कड़वी दवा

अगले शैक्षणिक सत्र से दिखेगा बदलाव, निर्धारित होगी सबकी जिम्मेदारी बिहार के नवनियुक्त राज्यपाल सह कुलाधिपति लालजी टंडन ने कहा है कि प्रदेश की उच्च शिक्षा की हालत अच्छी नहीं है. उन्होंने सभी विश्वविद्यालयों से पठन-पाठन को लेकर रिपोर्ट तलब की है. रिपोर्ट आने पर कड़ी कार्रवाई करेंगे. राज्यपाल बनने के बाद प्रभात खबर ने […]

अगले शैक्षणिक सत्र से दिखेगा बदलाव, निर्धारित होगी सबकी जिम्मेदारी
बिहार के नवनियुक्त राज्यपाल सह कुलाधिपति लालजी टंडन ने कहा है कि प्रदेश की उच्च शिक्षा की हालत अच्छी नहीं है. उन्होंने सभी विश्वविद्यालयों से पठन-पाठन को लेकर रिपोर्ट तलब की है. रिपोर्ट आने पर कड़ी कार्रवाई करेंगे. राज्यपाल बनने के बाद प्रभात खबर ने उनसे राज्य में उच्च शिक्षा की दशा व दिशा को लेकर बातचीत की़.
बातचीत में कुलाधिपति ने कहा कि प्रारंभिक स्तर पर उन्हें जो सूचनाएं प्राप्त हो रही हैं, वे उत्साहवर्द्धक नहीं हैं. जरूरत पड़ी तो इसके लिए वह कड़वी दवा देने से भी नहीं हिचकेंगे. राज्यपाल ने सभी विवि को एकेडमिक कैलेंडर लागू करने, बायोमेट्रिक हाजिरी लगाने और शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मियों को समय पर डिजिटली वेतन भुगतान का निर्देश दिया है. पेश हैं कुलाधिपति से अजय कुमार और मिथिलेश की बातचीत के अंश.
लालजी टंडन
राज्यपाल सह कुलाधिपति
—विवि में लगेगी बायोमेट्रिक हाजिरी, डिजिटल मोड में होगा वेतन का भुगतान
– उच्च शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार की बात होती है, इसका रोडमैप क्या है?
बिहार की गिनती उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया भर में होती रही है. जिस राज्य के विवि में पूरी दुनिया से लोग पढ़ने आते रहे हों, वहां उच्च शिक्षा की हालत दयनीय हो, यह ठीक नहीं. मैंने कुलपतियों की बैठक बुलायी है. कई फीडबैक मिले हैं. मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि शिक्षकों की कॉलेजों में हाजिरी नहीं लगती है. छात्र भी क्लास में नहीं आते हैं.
समय पर परीक्षाएं नहीं होती हैं. विवि में चाहे शिक्षक हों या शिक्षकेतर कर्मी, उन्हें समय पर वेतन नहीं मिलता है. सरकार की ओर से कोई आर्थिक संकट नहीं है. इसके बाद भी नियमित वेतन नहीं मिल पाना दुर्भाग्यपूर्ण है. मैंने ऐसी व्यवस्था करने को कहा है, जिससे शिक्षकों की नियमित उपस्थिति हो सकेगी और छात्र कक्षाओं में आयेंगे.
सभी विवि में शिक्षकों और कर्मियों की बायोमेट्रिक हाजिरी लगेगी़. डिजिटल मोड से वेतन भुगतान होगा. इसके लिए विवि प्रशासन, सरकार के अधिकारी और बैंकों के प्रतिनिधियों को आवश्यक निर्देश दिये गये हैं. सरकार की ओर से राशि जारी किये जाने के दो से तीन दिनों के भीतर वेतन की राशि सीधे शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मियों के खातों में ट्रांसफर हो जायेगी.
– पर शिक्षा में सुधार कैसे होगा?
एक कुलाधिपति की हैसियत से जिस प्रकार कुलपति, शिक्षकों की मान-प्रतिष्ठा बनाये रखना मेरी जवाबदेही है, ठीक उसी प्रकार विवि की मान-प्रतिष्ठा की जवाबदेही बनाये रखना कुलपतियों की जिम्मेदारी है. इसे इस प्रकार समझना चाहिए. एक व्यक्ति बीमार पड़ता है और उसका ठीक से इलाज नहीं हो तो उसकी मौत हो जाती है.
लेकिन, एक विवि बीमार होता है, एक कुलपति की कार्यशैली खराब होती है, तो छात्रों की पूरी पीढ़ी खराब हो जाती है. इसलिए सबको अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी. भारत के संविधान में यह कहां लिखा है कि राज्यपाल से लेकर द्वारपाल तक को अपनी जवाबदेही का निर्वहन नहीं करना है. अभी मैं विश्वविद्यालय की बुनियादी चीजों को ठीक करने में लगा हूं.
– विश्वविद्यालयों में संसाधनों की कमी की बात अक्सर कही जाती है. क्या उच्च शिक्षा की बदहाली की यह बड़ी वजह है?
नहीं. संसाधनों की कोई कमी नहीं है. असली दिक्कत, जो मैं समझ पा रहा हूं, वह है प्रबंधन का. संसाधन हो और उसका प्रबंधन न हो, तो उस संसाधन का कोई मोल नहीं होता. आर्थिक मोरचे पर दिक्कत नहीं है. हाल के दिनों में शिक्षा के मद में भारी राशि का प्रावधान किया गया है.
जब धन की कमी नहीं है, तो विवि में पठन-पाठन का वातावरण क्यों नहीं सुधरेगा? हमने सभी कुलपतियों से एक साथ और बारी-बारी से बैठ कर सूचनाएं ली हैं. उन्हें सभी बिंदुओं पर प्रश्नावली भेजी गयी है. मुकम्मल सूचना आने पर उसका बिंदुवार समाधान भी निकाला जायेगा. अगले शैक्षणिक सत्र से पूरी व्यवस्था की जायेगी़. बदलाव दिखने लगेगा. यह सही है कि उच्च शिक्षा को पटरी पर लौटने में वक्त लगेगा. लेकिन, यह असंभव नहीं है.
– क्या पटना विवि को मॉडल बना कर दूसरे विवि के कामकाज में सुधार लाया जा सकता है?
हां, यह हो सकता है. पर सभी विवि की अलग-अलग तरह की समस्याएं हैं. पटना विवि को ही लीजिए. कला का क्षेत्र में हो या विज्ञान या फिर राजनीति, यहां से बड़े-बड़े लोग पढ़ कर निकले हैं. जब उस समय पढ़ाई की ऐसी व्यवस्था थी, तो अब क्यों नहीं.
ऐतिहासिक तौर पर बिहार शिक्षा के क्षेत्र में अलग पहचान गढ़ता रहा है. प्राचीन नालंदा विवि में दूसरे देशों से लोग यहां पढ़ने आते थे. उसी कड़ी में हम पटना विश्वविद्यालय को कैसे भूल सकते हैं. इस विश्वविद्यालय की बड़ी ख्याति रही है.
शैक्षणिक माहौल को बेहतर करने की जरूर हम कोशिश करेंगे. माहौल बदलेगा, शोध के काम होंगे़ शिक्षकों की कमी दूर होगी़ कुलपतियों को यह सोचना होगा कि जिन विवि से वह पढ़ कर आये, वहां जैसी शिक्षण की व्यवस्था रही थी, वैसे इंतजाम वह अपने विवि में क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

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