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डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य

बीते 20 अगस्त को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की एक बैठक में महत्वाकांक्षी ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम को मंजूरी दी गयी. सरकार ने कहा है कि यह कार्यक्रम भारत को डिजिटल सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए निर्धारित किया गया है. डिजिटल इंडिया की प्रकृति रूपांतरकारी है व इससे सुनिश्चित होगा […]

बीते 20 अगस्त को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की एक बैठक में महत्वाकांक्षी ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम को मंजूरी दी गयी. सरकार ने कहा है कि यह कार्यक्रम भारत को डिजिटल सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए निर्धारित किया गया है.

डिजिटल इंडिया की प्रकृति रूपांतरकारी है व इससे सुनिश्चित होगा कि सरकारी सेवाएं नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध हों. आज के नॉलेज में पेश है इसके विभिन्न पहलुओं की जानकारी..
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में पारित डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को समयबद्ध रूप से लागू करने पर जोर दिया जा रहा है. इस कार्यक्रम का मकसद भारत को डिजिटल रूप से एक सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलना है.
यह 7 अगस्त, 2014 को डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के बारे में प्रधानमंत्री की बैठक के दौरान कार्यक्रम के डिजाइन पर लिये गये मुख्य निर्णयों और सभी मंत्रालयों के कामकाज के हर पहलू को छूने वाले इस व्यापक कार्यक्रम की जानकारी देने के बाद उठाया गया कदम है.
यह कार्यक्रम इलेक्ट्रॉनिक्स एवं प्रौद्योगिकी विभाग की परिकल्पना है. यह कार्यक्रम 2018 तक चरणबद्ध तरीके से लागू किया जायेगा. डिजिटल इंडिया की प्रकृति रूपांतरकारी है तथा इससे यह सुनिश्चित होगा कि सरकारी सेवाएं नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध हों. इससे सरकारी व प्रशासनिक सेवाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के साथ सार्वजनिक जवाबदेही को भी सुनिश्चित करेगा.
फिलहाल अधिकतर इ-गवर्नेस परियोजनाओं के लिए आर्थिक सहायता केंद्र या राज्य सरकारों में संबंधित मंत्रालयों/ विभागों के बजटीय प्रावधानों के जरिये होती है. लेकिन डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अलग-अलग परियोजनाओं के लिए जरूरी कोष का आकलन संबंधित नोडल मंत्रलय/ विभाग करेंगे और उसी के अनुरूप धन का आवंटन किया जायेगा.
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के नौ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:
1. ब्रॉडबैंड हाइवेज : सामान्य तौर पर ब्रॉडबैंड का मतलब दूरसंचार से है, जिसमें सूचना के संचार के लिए आवृत्तियों (फ्रीक्वेंसीज) के व्यापक बैंड उपलब्ध होते हैं. इस कारण सूचना को कई गुणा तक बढ़ाया जा सकता है और जुड़े हुए तमाम बैंड की विभिन्न फ्रीक्वेंसीज या चैनलों के माध्यम से भेजा जा सकता है.
इसके माध्यम से एक निर्दिष्ट समयसीमा में वृहत्तर सूचनाओं को प्रेषित किया जा सकता है. ठीक उसी तरह से जैसे किसी हाइवे पर एक से ज्यादा लेन होने से उतने ही समय में ज्यादा गाड़ियां आवाजाही कर सकती हैं. ब्रॉडबैंड हाइवे निर्माण से अगले तीन सालों के भीतर देशभर के ढाई लाख पंचायतों को इससे जोड़ा जायेगा और लोगों को सार्वजनिक सेवाएं मुहैया करायी जायेंगी.
2. मोबाइल कनेक्टिविटी सबको सुगम-सुलभ कराना : देशभर में तकरीबन सवा अरब की आबादी में मोबाइल फोन कनेक्शन की संख्या जून, 2014 तक करीब 80 करोड़ थी. शहरी इलाकों तक भले ही मोबाइल फोन पूरी तरह से सुलभ हो गया हो, लेकिन देश के विभिन्न ग्रामीण इलाकों में अभी भी इसकी सुविधा मुहैया नहीं हो पायी है. हालांकि, बाजार में निजी कंपनियों के कारण इसकी सुविधा में पिछले एक दशक में काफी बढ़ोतरी हुई है.
देश के 55,000 गांवों में अगले पांच वर्षो के भीतर मोबाइल संपर्क की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए 20,000 करोड़ के यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यूएसओएफ) का गठन किया गया है. इससे ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग के इस्तेमाल में आसानी होगी.
3. पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम : भविष्य में सभी सरकारी विभागों तक आम आदमी की पहुंच बढ़ायी जायेगी. पोस्ट ऑफिस के लिए यह दीर्घावधि विजन वाला कार्यक्रम हो सकता है. इस प्रोग्राम के तहत पोस्ट ऑफिस को मल्टी-सर्विस सेंटर के रूप में बनाया जायेगा. नागरिकों तक सेवाएं मुहैया कराने के लिए यहां अनेक तरह की गतिविधियों को अंजाम दिया जायेगा.
4. इ-गवर्नेस: प्रौद्योगिकी के जरिये सरकार को सुधारना : सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए बिजनेस प्रोसेस री-इंजीनियरिंग के ट्रांजेक्शंस में सुधार किया जायेगा. विभिन्न विभागों के बीच आपसी सहयोग और आवेदनों को ऑनलाइन ट्रैक किया जायेगा. इसके अलावा, स्कूल प्रमाण पत्रों, वोटर आइडी कार्डस आदि की जहां जरूरत पड़े, वहां इसका ऑनलाइन इस्तेमाल किया जा सकता है.
यह कार्यक्रम सेवाओं और मंचों के एकीकरण- यूआइडीएआइ (आधार), पेमेंट गेटवे (बिलों के भुगतान) आदि में मददगार साबित होगा. साथ ही सभी प्रकार के डाटाबेस और सूचनाओं को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से मुहैया कराया जायेगा.
5. इ-क्रांति- सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी : इसमें अनेक बिंदुओं को फोकस किया गया है. इ-एजुकेशन के तहत सभी स्कूलों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने, सभी स्कूलों (ढाई लाख) को मुफ्त वाइ-फाइ की सुविधा मुहैया कराने और डिजिटल लिटरेसी कार्यक्रम की योजना है. किसानों के लिए रीयल टाइम कीमत की सूचना, नकदी, कजर्, राहत भुगतान, मोबाइल बैंकिंग आदि की ऑनलाइन सेवा प्रदान करना.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में ऑनलाइन मेडिकल सलाह, रिकॉर्ड और संबंधित दवाओं की आपूर्ति समेत मरीजों की सूचना से जुड़े एक्सचेंज की स्थापना करते हुए लोगों को इ-हेल्थकेयर की सुविधा देना. न्याय के क्षेत्र में इ-कोर्ट, इ-पुलिस, इ-जेल, इ-प्रोसिक्यूशन की सुविधा. वित्तीय इंतजाम के तहत मोबाइल बैंकिंग, माइक्रो-एटीएम प्रोग्राम.
6. सभी के लिए जानकारी : इस कार्यक्रम के तहत सूचना और दस्तावेजों तक ऑनलाइन पहुंच कायम की जायेगी. इसके लिए ओपेन डाटा प्लेटफॉर्म मुहैया कराया जायेगा, जिसके माध्यम से नागरिक सूचना तक आसानी से पहुंच सकेंगे. नागरिकों तक सूचनाएं मुहैया कराने के लिए सरकार सोशल मीडिया और वेब आधारित मंचों पर सक्रिय रहेगी. साथ ही, नागरिकों और सरकार के बीच दोतरफा संवाद की व्यवस्था कायम की जायेगी.
7. इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में आत्मनिर्भरता : इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से जुड़ी तमाम चीजों का निर्माण देश में ही किया जायेगा. इसके तहत ‘नेट जीरो इंपोर्ट्स’ का लक्ष्य रखा गया है ताकि 2020 तक इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके. इसके लिए आर्थिक नीतियों में संबंधित बदलाव भी किये जायेंगे. फैब-लेस डिजाइन, सेट टॉप बॉक्स, वीसेट, मोबाइल, उपभोक्ता और मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्ट एनर्जी मीटर्स, स्मार्ट कार्डस, माइक्रो-एटीएम आदि को बढ़ावा दिया जायेगा.
8. रोजगारपरक सूचना प्रौद्योगिकी : देशभर में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार से रोजगार के अधिकांश प्रारूपों में इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है. इसलिए इस प्रौद्योगिकी के अनुरूप कार्यबल तैयार करने को प्राथमिकता दी जायेगी. कौशल विकास के मौजूदा कार्यक्रमों को इस प्रौद्योगिकी से जोड़ा जायेगा.
संचार सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनियां ग्रामीण कार्यबल को उनकी अपनी जरूरतों के मुताबिक प्रशिक्षित करेगी. गांवों व छोटे शहरों में लोगों को आइटी से जुड़े जॉब्स के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा. आइटी सेवाओं से जुड़े कारोबार के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जायेगा. इसके लिए दूरसंचार विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है.
9. अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम्स : डिजिटल इंडियाकार्यक्रम को लागू करने के लिए पहले कुछ बुनियादी ढांचा बनाना होगा यानी इसकी पृष्ठभूमि तैयार करनी होगी.
डिजिटल इंडिया की राह में प्रमुख चुनौतियां
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को इसके लक्ष्य तक पहुंचाने की राह में कई चुनौतियां से जूझना पड़ेगा. इसमें मानव संसाधन यानी कर्मचारियों की कमी का मसला सबसे अहम हो सकता है.
देश में सूचनाओं को प्रेषित करने वाली संस्था नेशनल इंफोर्मेटिक्स सेंटर (एनआइसी) के पास इस टास्क को पूरा करने की क्षमता नहीं है. इसलिए सबसे पहले इसके पुनर्निर्माण की जरूरत है. सभी स्तर पर प्रोग्राम मैनेजर्स की जरूरत होगी, जिसकी अभी तक कोई व्यवस्था नहीं है. वरिष्ठ स्तर पर कम से कम चार अधिकारियों की जरूरत होगी. साथ ही इसके लिए सभी मंत्रालयों को मुख्य सूचना अधिकारी/ मुख्य तकनीकी अधिकारी की जरूरत होगी.
इसके अलावा, एक अहम मसला वित्तीय संसाधनों से जुड़ा है. नेसकॉम के मुखिया आर चंद्रशेखर का कहना है कि देश के सभी ढाई लाख पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने के लिए 20,000 करोड़ से ज्यादा का खर्च आ सकता है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था व्यापक रूप से प्रभावित हो सकती है.
सभी संस्थाओं को इसमें शामिल करने की जरूरत
।। देवेंद्र सिंह भदौरिया ।।
सरकार ने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की घोषणा अब की है. ऐसे में यह सवाल बनता है कि डिजिटल इंडिया क्यों? डिजिटल इंडिया से क्या बदलेगा? डिजिटल इंडिया के लक्ष्य क्या हैं? डिजिटल इंडिया की सबसे ज्यादा जरूरत कहां हैं?
हम पिछले कई वर्षो से यह महसूस कर रहे हैं कि सूचनाओं के संप्रेषण से लोगों के जीवन में बदलाव आया है. लोग अपने अधिकार के प्रति सजग हुए हैं. आम जनता के हित में केंद्र और राज्य सरकारों की बहुत सारी कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं. कोशिश यही है कि समाज के सबसे हाशिये पर बैठे लोगों के जीवन में बदलाव आये.
हालांकि, भ्रष्टाचार के दीमक के कारण और अपने अधिकार के विषय में सूचना के अभाव के कारण लोगों को इसका वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा है. ज्यादातर पैसा उन लोगों तक नहीं पहुंचा जो कि इसके हकदार थे.
यदि सूचनाओं को डिजिटल कर दिया जाए और संप्रेषण को आसान बना दिया जाए, तो सरकार की योजनाओं के विषय में लोगों को जानकारी होगी. गांव-पंचायत में चलाये जाने वाले कार्यक्रमों-मसलन मनरेगा, इंदिरा आवास, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मिड डे मिल आदि कई ऐसी योजनाएं हैं, जो गांवों में चलायी जाती हैं.
शिक्षा से लेकर गरीबी उन्मूलन तक विकास की 29 ऐसी योजनाएं हैं, जिन्हें लागू करने के लिए हम पंचायतों पर निर्भर हैं. देश के ग्रामीण तभी इन योजनाओं का लाभ उठा पायेंगे, जब उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी होगी. अगर ग्रामीणों को इन योजनाओं की सही जानकारी दी जाये, इनमें खर्च की जाने वाले राशि और होने वाले काम के विषय में जानकारी हो तो वे अपने अधिकार मांग सकते हैं.
यदि हर पंचायत में इंटरनेट हो, उनकी अपनी वेबसाइट हो, उस वेबसाइट में गांव-पंचायत से जुड़ी सभी सूचनाओं, योजनाओं, उनके निष्पादन की स्थिति का वर्णन हो तो गांव को इससे काफी फायदा होगा.
सरकारी सेवा तक न हो सीमित
पिछले कुछेक वर्षो में मोबाइल ने लोगों के जीवन को सरल बनाया है. आज मोबाइल का इस्तेमाल करने वालों की संख्या काफी है. इसके जरिये हम जनता से जुड़ी सेवाओं की जानकारी लोगों तक पहुंचा सकते हैं. भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है. इससे बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार भी मिलेगा. पिछले कई वर्षो से इस विषय पर हम देश के अलग-अलग राज्यों में काम कर रहे हैं.
हमारा मानना है कि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को सिर्फ सरकारी योजनाओं या सरकारी कर्मचारियों तक सीमित रखने से बात नहीं बनेगी. इसके तहत कुछेक स्टेक होल्डर्स को भी शामिल किया जाना चाहिए. अगर कुछ विशेष क्षेत्रों को चिह्न्ति करके सरकार इस दिशा में आगे बढ़े तो एक निश्चित समय सीमा के तहत इसका काफी फायदा हो सकता है.
मसलन सरकार को इस डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में एनजीओ को भी शामिल करना चाहिए. इस देश में लगभग 3.3 मिलियन एनजीओ हैं. प्रत्येक 600 व्यक्ति पर लगभग एक एनजीओ है. इन एनजीओ के जरिये कई बिलियन डॉलर देश-विदेश से आये पैसे को खर्च किया जाता है.
समाज से जुड़े इस क्षेत्र की पहुंच गांव-गांव तक है. इसलिए इनकी निगरानी भी उतनी ही जरूरी है. एक तरफ सरकार सभी विभागों की सारी सूचनाएं वेबसाइट पर डालने की बात कर रही है. विकास कार्यक्रमों में एनजीओ की भी भागीदारी है, जिनके जरिये बड़े पैमाने पर रकम खर्च की जा रही है. यदि इन्हें इस कार्यक्रम में शामिल नहीं किया जाता है तो डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को नुकसान पहुंचेगा.
दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र पब्लिक लाइब्रेरी है. देश के सभी पब्लिक लाइब्रेरी को डिजिटल इंडिया से जोड़ना चाहिए, ताकि न सिर्फ ज्ञान का संवर्धन हो, बल्कि युवा तकनीकी रूप से भी दक्ष होंगे और इस कार्यक्रम को मजबूती मिलेगी. मिल्ंिाडा गेट्स फाउंडेशन के सौजन्य से उत्तर प्रदेश में हमने आठ पब्लिक लाइब्रेरी को और पश्चिम चंपारण में इन्हें डिजिटल करने का काम शुरू किया है, और इसका फायदा भी हुआ है. इसी तरह मदरसा आधुनिकीकरण की बात कही जा रही है.
मदरसे को अगर डिजिटल इंडिया कार्यक्रम से जोड़ा जाये तो एक उन्हें अपने परंपरागत शिक्षा माध्यमों को फायदा मिलेगा, और दूसरी तरफ वे इंटरनेट से जुड़कर आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से परिचित होंगे. इसी तरह सामुदायिक रेडियो को बढ़ाना चाहिए. यह दूरस्थ इलाकों के लिए मोबाइल की तरह डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में सहयोगी हो सकता है. सरकार ने जन-धन योजना शुरू करने की बात कही है.
इसका लक्ष्य है, लोगों के खातों में कैश ट्रांसफर हो. इसलिए डिजिटल इंडिया के तहत जितना मशीनीकरण होगा, कार्यक्रमों की मॉनिटरिंग उतनी ही आसान होगी और लोगों तक योजनाओं का लाभ पहुंचेगा. (देवेंद्र सिंह भदौरिया डिजिटल भारत प्रोग्राम, इंडिया डेवलपमेंट अल्टरनेटिव फांउडेशन के संस्थापक निदेशक हैं.)
(संतोष कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित)

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