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मायावती का टूटा भरोसा! क्या महागंठबंधन को छोड़ अकेले चल पाएगा हाथी ?

लखनऊ/नयी दिल्ली : लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में हार के बाद सपा-बसपा के रिश्तों में खटास सामने आ गयी है. बसपा प्रमुख मायावती ने लोकसभा चुनाव के नतीजों की समीक्षा की और 11 विधानसभा उपचुनावों में अकेले ताल ठोंकने के निर्देश अपने कार्यकर्ताओं को दी. इसके बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के […]

लखनऊ/नयी दिल्ली : लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में हार के बाद सपा-बसपा के रिश्तों में खटास सामने आ गयी है. बसपा प्रमुख मायावती ने लोकसभा चुनाव के नतीजों की समीक्षा की और 11 विधानसभा उपचुनावों में अकेले ताल ठोंकने के निर्देश अपने कार्यकर्ताओं को दी. इसके बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के टूटने की चर्चाएं राजनीति जगत में होने लगीं हैं.

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी और आरएलडी महागठबंधन को उम्मीदों के अनुसार लोकसभा चुनाव में सीटें नहीं मिलीं हैं. तीनों दलों ने सूबे की 78 सीटों पर अपने उम्मीदवार को उतारा था जिसमें महज 15 पर ही जीत इस गंठबंधन को मिली. सपा के खाते में महज 5 सीटें ही गईं, जबकि बीएसपी को 10 सीटें मिली हैं. राष्ट्रीय लोकदल का एक बार फिर से 2014 की ही तरह धरासाई हो गया.

इस बार बसपा को 2014 के मुकाबले 10 सीटों पर सफलता मिली है, लेकिन यह उसकी उम्मीदों से कम है. मायावती को उम्मीद थी कि उसके उम्मीदवार कम से कम 20 सीटों पर जीत दर्ज करेंगे. मायावती को लगता है कि इन 10 सीटों पर जीत की वजह उनके परंपरागत वोटर हैं जिन्होंने एक बार फिर उनका साथ दिया. सपा के समर्थक वर्ग ने गठबंधन के प्रत्याशियों को वोट नहीं दिया. वोट प्रतिशत की मानें तो बसपा को लोकसभा चुनाव में 19.3% वोट मिले, जबकि सपा को 17.93% वोट मिले.

यदि बसपा पर गौर करें तो समाजवादी पार्टी और अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के मुकाबले उसका दायरा कुछ बड़ा है. बसपा के परंपरागत वोटर उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब में भी है, जहां बड़ा दलित वोट बैंक मायावती पर भरोसा करता है. यही नहीं मध्य प्रदेश में भी बसपा का आधार है, जहां उसने इस बार के विधानसभा चुनावों में दो सीटों पर जीत दर्ज की. बसपा के इस पक्ष पर ध्‍यान देने के बाद जानकारों का मानना है कि मायावती की पार्टी अब अपने दम पर अपने दायरे को बढ़ाने और मजबूत करने पर फोकस करने का प्रयास कर सकती है.

लोकसभा चुनाव में सपा कार्यकर्ताओं का नहीं मिला साथ
मायावती का मानना है कि लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन से पार्टी को कोई लाभ नहीं हुआ है. बसपा को जिन सीटों पर कामयाबी मिली, उसमें सिर्फ पार्टी के परंपरागत वोटबैंक का ही योगदान रहा. गठबंधन के बावजूद बसपा के पक्ष में यादव वोट ट्रांसफर नहीं हुआ है. पार्टी को जाटों के वोट भी नहीं मिले हैं. मायावती ने पार्टी पदाधिकारियों और सांसदों से गठबंधन पर निर्भर रहने के बजाय अपना संगठन मजबूत करने का निर्देश दिया है. उन्होंने कहा कि बसपा अब गठबंधनों पर निर्भरता खत्म कर आगामी उपचुनाव खुद लड़ेगी. मायावती के इस फैसले से यूपी में सपा-बसपा गठबंधन के भविष्य पर सवाल खड़े हो गये हैं.

11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव
उत्तर प्रदेश में भाजपा के नौ और सपा बसपा के एक-एक विधायक के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद राज्य की 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे. बसपा, हालांकि अब तक उपचुनाव नहीं लड़ती थी. इसके मद्देनजर मायावती का यह निर्देश अहम माना जा रहा है.

क्या गंठबंधन तोड़ पाएंगी मायावती
यदि आपको याद हो तो पिछले साल दलितों के उत्पीड़न के मामले में मायावती ने विरोध दर्ज किया था और राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था. वर्तमान में वह राज्यसभा और लोकसभा में से किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं. 2020 में यदि वह एक बार फिर राज्यसभा की सदस्य बनने की चाहत रखतीं हैं तो उन्हें सपा और आरएलडी के समर्थन के अलावा कांग्रेस के हाथ की भी जरूरत होगी. ऐसी स्थिति में देखना होगा कि क्या वह इस गंठबंधन को तोड़ पाएंगी.

पारिवारिक कलह से हारी सपा : मायावती
मायावती ने गठबंधन का अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेख यादव की पारिवारिक कलह को प्रमुख वजह बताया. कहा कि कलह के कारण अखिलेश के पारिवारिक सदस्य भी चुनाव नहीं जीत सके. मायावती ने शिवपाल सिंह यादव की वजह से भी गठबंधन को चुनाव में नुकसान होने की बात कही.

इधर, अखिलेश बोले- बसपा साथ रहेगी
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि हमें जिनसे लड़ना है, वह काफी ताकतवर हैं, जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते. मगर, जिस समय शासन और प्रशासन अन्याय करने लगे, तब हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि हम और बसपा के साथ मिलकर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ेंगे.

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