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चीन के नये सिल्क रूट पर ‘बेल्ट एंड रोड फोरम’ में भाग नहीं लेगा भारत

बीजिंग : भारत ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ (सीपीइसी) पर संप्रभुता संबंधी अपनी चिंताओं के मद्देनजर 14 मई से यहां शुरू हो रहे हाइ-प्रोफाइल ‘बेल्ट एंड रोड फोरम’ शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेगा. सीपीइसी ‘बेल्ट एंड रोड फोरम’ (बीआरएफ) पहल की अहम परियोजना है. इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन जानकारी रखनेवाले सूत्रों […]

बीजिंग : भारत ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ (सीपीइसी) पर संप्रभुता संबंधी अपनी चिंताओं के मद्देनजर 14 मई से यहां शुरू हो रहे हाइ-प्रोफाइल ‘बेल्ट एंड रोड फोरम’ शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेगा. सीपीइसी ‘बेल्ट एंड रोड फोरम’ (बीआरएफ) पहल की अहम परियोजना है.

इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन जानकारी रखनेवाले सूत्रों ने कहा कि भारत इस सम्मेलन में भाग नहीं लेगा. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पहले घोषणा की थी कि भारत का एक प्रतिनिधि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रतिष्ठित पहल ‘बेल्ट एंड रोड फोरम’ में भाग लेगा.

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वांग ने 17 अप्रैल को यहां संवाददाताओं से कहा था, ‘भारतीय नेता यहां नहीं हैं, लेकिन भारत का एक प्रतिनिधि इसमें हिस्सा लेगा.’ उन्होंने यह नहीं बताया था कि भारत का प्रतिनिधित्व कौन करेगा.

भारत के लिए यह एक मुश्किल फैसला था, क्योंकि पिछले कुछ दिनों में चीन ने कई पश्चिमी देशों को इसमें शामिल होने के लिए राजी कर लिया है. इनमें अमेरिका भी शामिल है. अमेरिका ने लाभकारी व्यापार सौदा करने के बाद अपना एक शीर्ष अधिकारी भेजने पर सहमति जतायी है.

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बैठक में भारत की अनुपस्थिति को अधिक तवज्जो नहीं देते हुए चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गांग शुआंग ने शुक्रवार को मीडिया को बताया कि भारतीय विद्वान बैठक में भाग लेंगे.

पूर्वी चीन सागर के विवादित द्वीपों को लेकर पिछले कुछ वर्षों से चीन की कड़ी आलोचना झेलनेवाले जापान ने भी एक उच्चस्तरीय राजनीतिक प्रतिनिधिमंडल भेजने पर सहमति जता दी है.

ज्ञात हो कि पूरी दुनिया में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए एशिया, यूरोप और अफ्रीका के 65 देशों को जोड़ने की चीन की इस परियोजना को ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना का नाम दिया गया है. इसे ‘न्यू सिल्क रूट’ भी कहा जा रहा है.

कई बड़े देश सम्मेलन में भाग लेंगे

सम्मेलन में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और यूरोपियन यूनियन को भी बुलाने में कामयाब रहा.पड़ोसी मुल्कों जापान और दक्षिण कोरिया के साथ छत्तीस का आंकड़ा होने के बावजूद इन देशों के नुमाइंदे सम्मेलन में शरीक होने जा रहे हैं. चीन का दावा है कि सम्मेलन में 29 देशों के राष्ट्राध्यक्ष शरीक होंगे. चीन की कम्युनिस्ट सरकार की मानें, तो सम्मेलन में कुल 60 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे. इसके अलावा दुनिया के कई मुख्य संगठनों की नुमाइंदगी भी सम्मेलन में होगी.

इसलिए है भारत को ऐतराज

चीन का दावा है कि ‘वन बेल्ट, वन रोड’ परियोजना सभी भागीदार देशों के लिए फायदे का सौदा है. लेकिन, नयी दिल्ली के रणनीतिकार ड्रैगन के इरादों को शक की नजर से देखते रहे हैं. भारत का सबसे बड़ा ऐतराज पाकिस्तान को चीन से जोड़नेवाले चीन-पाकिस्तान इकाॅनोमिक कॉरिडोर को लेकर है. यह कॉरिडोर पाकिस्तानी कब्जेवाले कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान इलाके से गुजरेगा. भारत इसे अपनी स्वायत्ता का हनन मानता है. सीइपीसी के तहत बन रहे ग्वादर बंदरगाह को लेकर भी भारत को शंका है. चीन साफ कर चुका है कि वह बंदरगाह के पूरा होने के बाद यहां अपने नौसैनिक तैनात करेगा. इसके अलावा न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता पर चीन एक साल से अड़ंगा लगा रहा है. नयी दिल्ली में पाकिस्तान में बैठे आतंकी अजहर मसूद पर यूएन में पाबंदी लगाने की कोशिशों के खिलाफ चीन के रुख को लेकर भी गुस्सा है. पिछले महीने दलाई लामा के अरुणाचल दौरे के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ा है.

काम नहीं आया चीन का मान-मनव्वल

‘वन बेल्ट, वन रोड’ परियोजना को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट माना जाता है. जिनपिंग को इस साल दूसरे कार्यकाल के लिए चुना जाना है. इससे पहले अगर ओबीओआर के मंसूबे हकीकत की शक्ल लेते हैं, तो घरेलू मोरचे पर जिनपिंग की ताकत में इजाफा होगा. लेकिन, इस परियोजना की कामयाबी के लिए भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था की भागीदारी अहम है. यही वजह है कि चीन ने साफ किया कि इस प्रोजेक्ट के बाद भी कश्मीर को लेकर उसके रुख में बदलाव नहीं होगा. चीनी राजनयिक हाल ही में सीपीइसी का नाम तक बदलने की पेशकश कर चुके हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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