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गंगेश ठाकुर टिप्पणीकार बचपन में पढ़ा था कि खेल जिंदगी को स्वस्थ तरीके से जीने का रास्ता है. लेकिन यह आत्महत्या का जरिया होगा, कभी नहीं सोचा था. मोबाइल फोन ने जहां विकास की नयी इबारत लिख दी है, वहीं इसने हमारे समाज में इतना बिखराव पैदा कर दिया है कि अब लोगों को एक-दूसरे […]

गंगेश ठाकुर
टिप्पणीकार
बचपन में पढ़ा था कि खेल जिंदगी को स्वस्थ तरीके से जीने का रास्ता है. लेकिन यह आत्महत्या का जरिया होगा, कभी नहीं सोचा था. मोबाइल फोन ने जहां विकास की नयी इबारत लिख दी है, वहीं इसने हमारे समाज में इतना बिखराव पैदा कर दिया है कि अब लोगों को एक-दूसरे से मिलने का समय ही नहीं है. हर उम्र का व्यक्ति इसके सुनहरे मकड़जाल में फंसा हुआ है. आये दिन होनवाली वारदातों के वीडियो जिस तरह से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, वह कई सवाल खड़े कर रहा है. तकनीक का इस्तेमाल गलत नहीं है, लेकिन इससे समाज में बढ़ती दूरी चिंता का विषय है.
आज के किशोर और युवा खेलकूद में कम और आभासी गेम व्यवस्था के साथ ज्यादा जुड़ते चले जा रहे हैं. तकनीक का विकास समस्याओं को पैदा करने या उन्हें बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि जीवन को सुविधापरक बनाने के उद्देश्य से किया जाता है. लेकिन, जिस तरह से तकनीक ने समाजिक परिवेश में बदलाव किया है, वह चिंता का विषय है. स्थिति इतनी विकट हो गयी है कि देश में मोबाइल फोन पर खेले जानेवाले गेम अपको आत्महत्या करने तक के लिए मजबूर करने लगे हैं.
मुंबई में 14 साल के बच्चे की खुदकुशी के बाद ऑनलाइन गेम ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ को लेकर बड़ा विवाद छिड़ गया है. ऑनलाइन गेम ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ भारत में हाल ही में चर्चा में आया है, लेकिन रूस, अर्जेंटीना, ब्राजील, चिली, कोलंबिया, चीन, जॉर्जिया, इटली, केन्या, पराग्वे, पुर्तगाल, सऊदी अरब, स्पेन, अमेरिका, उरुग्वे जैसे देशों में कम उम्र के कई बच्चों ने इस चैलेंज की वजह से अपनी जान गंवायी है.
आप समझ सकते हैं कि तकनीक के इस विकास ने आपके जीवन को अपने तरीके से चलाने की पैरोकारी शुरू कर दी है. और तो और, अब मौत भी इसी के इशारे पर निर्भर होनेवाला है. लोग हैरत में हैं कि कोई ऑनलाइन गेम किसी के दिमाग पर इस तरह कब्जा कैसे कर सकता है कि वह खुदकुशी पर मजबूर हो जाये.
इस गेम में प्रतियोगियों को 50 दिनों में 50 अलग-अलग टास्क पूरे करने होते हैं और हर एक टास्क के बाद अपने हाथ पर एक निशान बनाना होता है.
इस गेम का आखिरी टास्क आत्महत्या होता है. यानी जो मैंने आपसे ऊपर कहा, अब आपकी जिंदगी पर भी आपका अधिकार नहीं है. वह सुदूर बैठे किसी के इशारे का मोहताज है. हालांकि, इन जानलेवा गेम्स से निपटने के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने कदम उठाये हैं.
अभिभावकों को भी इसी तरह से इसका निदान ढूंढ़ना होगा. क्योंकि आप तकनीक के मकड़जाल में उलझ चुके हैं उससे बाहर आना आपके और आपकी आनेवाली पीढ़ी के लिए अब मुश्किल है. हां, उचित सावधानी आपके बचाव का रास्ता हो सकता है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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