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‘जजों पर केस चलाने के लिए मंजूरी की शर्त पर फिर से विचार हो’ – उपराष्ट्रपति धनखड़

Vice President Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जजों पर मुकदमे की पूर्व अनुमति संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत बताई. जस्टिस यशवंत वर्मा के नकदी बरामदगी मामले में जांच में देरी और एफआईआर न होने पर धनखड़ ने जताई नाराजगी.

Vice President Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर बड़ा बयान देते हुए देश की शीर्ष अदालत के एक ऐतिहासिक फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत जताई है. राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान उन्होंने परोक्ष रूप से सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर सवाल उठाया. जिसमें कहा गया था कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक होगी.

धनखड़ ने जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले का हवाला देते हुए कहा कि न्यायपालिका से जुड़े गंभीर मामलों की जांच में देरी से लोगों के बीच कई सवाल खड़े हो रहे हैं. उन्होंने पूछा, “क्या यह केस दब जाएगा? क्या यह धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाएगा?”

जस्टिस वर्मा केस सवालों के घेरे में जांच प्रक्रिया

दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद उन्हें मार्च 2025 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया था. इस मामले में अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, जिसे लेकर उपराष्ट्रपति ने नाराजगी जताई. उन्होंने इस मामले की जांच कर रही तीन जजों की आंतरिक समिति द्वारा गवाहों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए जाने पर भी सवाल उठाया.

धनखड़ ने कहा, “यह एक गंभीर मसला है. आखिर ऐसा कैसे किया जा सकता है? आपराधिक न्याय प्रणाली में समानता होनी चाहिए.” उन्होंने यह भी कहा कि यह जानना बेहद जरूरी है कि इस मामले के पीछे ‘बड़ा शार्क’ कौन है.

वैज्ञानिक आपराधिक जांच की मांग

धनखड़ ने इस प्रकरण में वैज्ञानिक आधार पर आपराधिक जांच (Scientific Criminal Investigation) की जरूरत पर बल दिया और कहा कि इस मामले में देरी से देश की जनता का भरोसा प्रभावित हो सकता है. उन्होंने कहा, “दो महीने बीत चुके हैं और अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. न्यायपालिका को इस मामले में पारदर्शिता दिखानी चाहिए.”

वीरास्वामी फैसले पर पुनर्विचार की मांग

उपराष्ट्रपति ने साल 1991 के के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ केस का हवाला देते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि इस पर दोबारा विचार किया जाए. इस फैसले के तहत किसी जज पर मुकदमा चलाने से पहले केंद्र सरकार की अनुमति जरूरी है. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता जितनी जरूरी है, उतनी ही जरूरी है उसकी जवाबदेही और पारदर्शिता.

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