Tribal: देश में आदिवासियों की कला, संस्कृति और उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार की ओर से कई तरह के कदम उठाए जा रहे हैं. आदिवासी उत्पादों को बाजार मुहैया कराने के लिए केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्रालय के पहल का असर दिख रहा है. इस कड़ी में जनजातीय कार्य मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय जनजातीय छात्र शिक्षा समिति (नेस्ट्स) की ओर से सोमवार से तीन दिवसीय ‘जीआई-टैग जनजातीय कला कार्यशाला एवं प्रदर्शनी-सांस्कृतिक उत्सव’ कार्यक्रम का आगाज हुआ. यह कार्यक्रम 24-26 नवंबर तक आयोजित होगा और इसमें देश भर के एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) के चयनित 139 छात्र, 34 कला एवं संगीत शिक्षक और 10 कुशल कारीगर भारत की भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग जनजातीय कला परंपराओं का उत्सव मनाने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए एक मंच पर आए हैं.
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में ईएमआरएस छात्रों द्वारा ओडिशा का ढेमसा नृत्य , उत्तराखंड का जौनसारी नृत्य, मिजोरम का मिजो लोक नृत्य सहित अन्य राज्यों की लोक कला की प्रस्तुति पेश की. इन प्रदर्शनों में आदिवासी युवाओं की कलात्मक प्रतिभा का प्रदर्शन हुआ और यह ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना पर आधारित था. कार्यक्रम में नेस्ट्स के संयुक्त आयुक्त (प्रशासन) विपिन कुमार, संयुक्त आयुक्त (सिविल) बिपिन रतूड़ी, नेस्ट्स के अपर आयुक्त प्रशांत मीणा और नेस्ट्स के आयुक्त अजीत कुमार श्रीवास्तव के अलावा नेस्ट्स की सहायक आयुक्त (शैक्षणिक) डॉक्टर रश्मि चौधरी मौजूद रही.
जीआई-टैग कला को बढ़ावा देना है मकसद
केंद्र सरकार की कोशिश आदिवासी कला के जीआई टैग के लिए छात्रों, कुशल कारीगरों के मार्गदर्शन में गोंड, वारली, मधुबनी, पिथोरा, चेरियाल, रोगन, कलमकारी, पिचवाई, ऐपण, रंगवाली पिचोरा, कांगड़ा, बशोली, मैसूर चित्रकला, बस्तर ढोकरा और कच्छी कढ़ाई सहित पारंपरिक जीआई- मान्यता प्राप्त कला के लिए लोगों को प्रशिक्षित करना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कौशल विकास, व्यावसायिक शिक्षा और सांस्कृतिक विरासत को मुख्यधारा की शिक्षा में एकीकृत करने की सोच पर आधारित है. आदिवासी छात्रों को जीआई-टैग वाली पारंपरिक कलाओं को सीखने में सक्षम बनाकर, नेस्ट्स युवा आदिवासी कलाकार-उद्यमियों की एक पीढ़ी का पोषण कर रहा है और इससे सांस्कृतिक गौरव सशक्त होने के साथ ही कलाकारों को स्थायी आजीविका हासिल करने में सक्षम बना रहा है.
सांस्कृतिक रूप से आधारित आवासीय शिक्षा के जरिये ईएमआरएस आदिवासी बच्चों में आकांक्षा, सशक्तिकरण और राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने वाले संस्थान के तौर पर काम कर रहा है. आधुनिक शिक्षा और पारंपरिक कला दोनों से परिचित होने से छात्रों में पहचान और अपनेपन की गहरी भावना विकसित होती है, जिससे कुछ क्षेत्रों में अलगाव की ऐतिहासिक भावनाओं में कमी आती है. इस कार्यक्रम में जीआई-टैग छात्र कला प्रदर्शनी-सह-बिक्री, इंटरैक्टिव आगंतुक संलग्नताएं और एक लाइव आर्ट वर्कशॉप शामिल है. यह प्रदर्शनी 24 से 26 नवंबर 2025 तक आम जनता के लिए खुली रहेगी.
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