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कोरोना और लॉकडाउन के कारण बहुत कम डोली थी धरती, क्या अनलॉक के बाद फिर शुरू हो जाएगा कंपन

Seismic Sound Earth, earth, pollution, vibration, earthquake, Coronavirus, lockdown : 117 देशों में किए गए एक अध्ययन के अनुसार शोधकर्ताओं ने पाया है कि भूकंपीय गतिविधि या शोर लॉकडाउन के दौरान कम हुई. दरअसल, यह स्टडी कोरोना काल में लॉकडाउन से प्रकृति को हुए फायदों को दर्शाती है. आपको बता दें कि यहां भूकंप की गतिविधि या शोर का मतलब पृथ्वी के कंपन से है जो आम इंसानों की ही देन है. आइये जानते हैं इस स्टडी के बारे में विस्तार से..

Seismic Sound Earth, earth, pollution, vibration, earthquake, Coronavirus, lockdown : 117 देशों में किए गए एक अध्ययन के अनुसार शोधकर्ताओं ने पाया है कि भूकंपीय गतिविधि या शोर लॉकडाउन के दौरान कम हुई. दरअसल, यह स्टडी कोरोना काल में लॉकडाउन से प्रकृति को हुए फायदों को दर्शाती है. आपको बता दें कि यहां भूकंप की गतिविधि या शोर का मतलब पृथ्वी के कंपन से है जो आम इंसानों की ही देन है. आइये जानते हैं इस स्टडी के बारे में विस्तार से..

दरअसल, कुछ शोधकर्ताओं ने पाया कि लॉकडाउन के दौरान धरती में कंपन और शोर काफी कम महसूस की गयी. यह प्रकृति की कोई विशेष माया नहीं थी बल्कि ये इंसानों से मिली प्रकृति को छूट के कारण ही संभव हो पाया.

इसके लिए शोधकर्ताओं ने भूकंपीय यंत्रों द्वारा कंपन को मापा. गौरतलब है कि धरती में कंपन भूकंप और ज्वालामुखी के अलावा बमों से ब्लास्ट व दैनिक मानव गतिविधि जैसे मोटर गाड़ियों व ट्रेनों आदि के परिचालन आदि के कारण भी होता हैं.

जर्नल साइंस में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि लॉकडाउन के दौरान कारखानों, उद्योग धंधों और पर्यटन आदि बंद होने से धरती और प्रकृति को काफी फायदा हुआ. इस दौरान कंपन पहले के मुताबिक कम महसूस की गयी. इसके लिए बेल्जियम के रॉयल ऑब्जर्वेटरी और इम्पीरियल कॉलेज लंदन (ICL) सहित दुनिया भर के पांच अन्य संस्थानों के नेतृत्व में यह शोध किया गया था.

इसके लिए शोधकर्ता की टीम ने वैश्विक रूप से 117 देशों के 268 भूकंपीय स्थानों को परखा तो पाया कि भूकंपीय आंकड़े 185 स्थानों पर पहले के मुताबिक लॉकडाउन में काफी कम हो गये थे.

सिस्मोमीटर एक प्रकार का यंत्र है जो स्थानीय शोर को मापने के काम आता है. इस शोध में इसका भी विशेष प्रयोग किया गया. आपको बता दें कि अप्रैल में, जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार बेल्जियम में लॉकडाउन शुरू होने के बाद मानव शोर करीब 30 प्रतिशत की कमी देखी गयी थी.

हालांकि, अब लगभग सभी संस्थान, कारखाने, परिवहन, यात्राएं आदि चालू हो रही हैं. वापस से विकास के नाम पर बम ब्लास्ट किए जाएंगे. ऐसे में प्रकृति हमें अगर स्वच्छ, साफ-सुथरी जिंदगी चाहिए तो प्राकृतिक के साथ-साथ तालमेल बनाकर विकास कार्य करने होंगे.

Note : उपरोक्त जानकारियां वेदर डॉट कॉम के आधार पर है.

Posted By : Sumit Kumar Verma

Prabhat Khabar Digital Desk
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