Madhya Pradesh: भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के एक पूर्व अधिकारी ने दावा किया है कि मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क (KNP) में अफ्रीका से लाये गये चीतों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है. बता दें केएनपी में एक ही महीने से भी कम समय में दो चीतों की मौत हो गई है. एक अधिकारी ने बताया कि देश में महत्वाकांक्षी चीता पुनर्स्थापन परियोजना की निगरानी कर रहे राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने पिछले आठ महीनों में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से केएनपी में स्थानांतरित किए गए 20 चीतों में से दो चीतों की मौत के मद्देनजर नयी दिल्ली में एक बैठक बुलाई गयी है.
कुछ वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार एक चीता को 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की जरुरत होती है. केएनपी का कोर एरिया 748 वर्ग किलोमीटर और बफर जोन 487 वर्ग किलोमीटर है. WII के पूर्व डीन यादवेंद्रदेव विक्रमसिंह झाला ने बताया कि केएनपी के पास इन चीतों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है. झाला पहले चीता पुनर्स्थापन योजना का हिस्सा रह चुके हैं. उन्होंने कहा- इन चीतों के लिए 750 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर्याप्त नहीं है. हमें चीतों की आबादी बढ़ानी भी होगी. इसलिए हमें इन चीतों को देश में तीन-चार जगह रखना बहुत जरुरी है.
यादवेंद्रदेव विक्रमसिंह झाला ने बताया- कूनो एक संरक्षित क्षेत्र है, लेकिन कूनो में चीता जिस लैंडस्केप में रह सकते हैं, वह 5,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसमें कृषि इलाका, जंगल का इलाका एवं रहवासी क्षेत्र शामिल हैं. उन्होंने कहा कि अगर चीता इस माहौल को अपना लेते हैं तो वे केएनपी में फलने-फूलने में सक्षम हो सकेंगे. झाला ने कहा- इसलिए, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हम इस क्षेत्र के रहवासियों का प्रबंधन कैसे करते हैं, यथा- इन लोगों को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ इलाके में इकोटूरिज्म को बढ़ावा देना एवं यह सुनिश्चित करना कि यदि मानव-पशु संघर्ष होता है तो उन्हें उचित रूप से मुआवजा दिया जाए.
चीतों को अन्यत्र बसाये जाने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि केएनपी के अलावा राजस्थान स्थित मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में भी चीतों को रखा जा सकता है. उन्होंने बताया कि इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश में गांधी सागर सैंक्चुअर और नौरादेही वन्यजीव सैंक्चुअरी दो ऐसी जगह हैं, जहां चीतों को रखा जा सकता है. उन्होंने कहा- इनमें से प्रत्येक जगह अपने आप में व्यवहार्य नहीं है. चीतों की एक या दो पीढ़ियों के बाद चीतों को एक जगह से दूसरे जगह स्थानांतरित करने को मेटापॉपुलेशन मैनेजमेंट कहा जाता है ताकि, उनमें आनुवंशिक आदान-प्रदान हो और एक ही परिवार से जुड़े नर-मादा चीते आपस में प्रजनन न करें. यह एक महत्वपूर्ण कार्य है. इसके बिना, हम अपने देश में चीतों का प्रबंधन नहीं कर सकते.
इससे कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश वन विभाग ने केंद्र से केएनपी लाये गये चीतों के लिए संसाधन एवं जगह की कमी का हवाला देते हुए उनके लिए एक वैकल्पिक स्थल की मांग की थी. प्रदेश के एक सीनियर वन अधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया था कि पिछले साल सितंबर से नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से दो जत्थों में लाए गए 20 चीतों के रख-रखाव के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन (लॉजिस्टिक सपोर्ट) नहीं है. अधिकारी ने बताया कि- हमें चौबीस घंटे एक चीते पर नजर रखने के लिए नौ कर्मचारियों की जरुरत है. हमारे पास पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं.
चीतों के लिए जगह की कमी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा- यह मुद्दा गौण है, हमें न केवल जगह, बल्कि बहुत सारे संसाधनों की आवश्यकता है. चीता पुनर्स्थापन परियोजना के तहत सितंबर 2022 में नामीबिया से 8 चीतों और इस साल फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के केएनपी में स्थानांतरित किया गया था. इन 20 चीतों में से दो चीतों की मौत हो गई है, जिससे इनकी संख्या घटकर 18 हो गई.

