Nagarwala Scam: 24 मई 1971, सोमवार का दिन, और जगह थी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, 11 संसद मार्ग, नई दिल्ली. भारत के बैंकिंग इतिहास का एक ऐसा दिन, जिसे आज भी ‘नागरवाला कांड’ के नाम से जाना जाता है. यह एक ऐसा जालसाजी का मामला था, जिसमें एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज की नकल कर 60 लाख रुपये ठग लिए. यह घटना उस दौर की सबसे चर्चित और रहस्यमय घटनाओं में से एक बन गई थी और आज भी कभी-कभार इसका जिक्र संसद और मीडिया में होता रहता है.
जब एक फोन कॉल से हिल गई बैंक की नींव
24 मई को स्टेट बैंक के हेड कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा हमेशा की तरह अपनी डेस्क पर काम में व्यस्त थे. सुबह के करीब 11 बजकर 45 मिनट पर अचानक उनके पास एक फोन कॉल आया जिसने उनके पूरे जीवन को बदल दिया. फोन उठाते ही दूसरी तरफ से बताया गया कि “प्रधानमंत्री के सचिव श्री पीएन हक्सर” उनसे बात करना चाहते हैं. इसके बाद लाइन पर खुद को हक्सर बताने वाले व्यक्ति ने मल्होत्रा को बताया कि प्रधानमंत्री को एक “गोपनीय काम” के लिए तत्काल 60 लाख रुपये की जरूरत है और एक विश्वसनीय व्यक्ति यह रकम लेने आएगा. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने निर्देश दिया है कि यह काम तुरंत किया जाए और किसी भी कागज या चेक की आवश्यकता नहीं है रसीद बाद में दे दी जाएगी.
इंदिरा गांधी की आवाज सुनकर भर आया विश्वास
मल्होत्रा थोड़े आशंकित थे, इसलिए उन्होंने कहा कि इस तरह की बड़ी रकम कैसे दी जा सकती है. इस पर सामने वाले व्यक्ति ने कहा कि आप सीधे प्रधानमंत्री से बात कर लें. फिर फोन पर एक जानी-पहचानी महिला की आवाज सुनाई दी, जिसने खुद को इंदिरा गांधी बताया. आवाज में आत्मविश्वास और आदेश था, जिसने मल्होत्रा को विश्वास दिला दिया कि वास्तव में वे प्रधानमंत्री से बात कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के एक महत्वपूर्ण मिशन के लिए 60 लाख रुपये की सख्त जरूरत है और यह अत्यंत गोपनीय मामला है. राशि देने वाले व्यक्ति की पहचान के लिए कोडवर्ड तय किया गया वह व्यक्ति कहेगा, “मैं बांग्लादेश का बाबू हूं” और मल्होत्रा जवाब देंगे, “मैं बार-एट-लॉ हूं.”
कैश निकालने से लेकर ट्रांसफर तक का ताना-बाना
प्रधानमंत्री से बात करने के बाद मल्होत्रा को विश्वास हो गया और उन्होंने अपने दो जूनियर कैशियर की मदद से बैंक के स्ट्रॉन्ग रूम से 60 लाख रुपये नकद निकाले. रकम को दो लोहे के ट्रंकों में रखकर बैंक की एम्बेसेडर कार में फ्री चर्च रोड की ओर रवाना हो गए. वहां पहले से तय जगह पर एक व्यक्ति आया जिसने कोडवर्ड का इस्तेमाल किया और रकम लेकर चला गया. जाते-जाते उसने मल्होत्रा से कहा कि वे प्रधानमंत्री आवास पर जाएं, जहां प्रधानमंत्री खुद उनसे एक बजे मिलेंगी और रसीद देंगी.
जालसाजी का खुलासा और नागरवाला की गिरफ्तारी
मल्होत्रा ने जिस टैक्सी का नंबर देखा वह था DLT 1622, जिसे उन्होंने नोट कर लिया. जैसे ही उन्हें प्रधानमंत्री आवास पर प्रवेश नहीं मिला, उन्हें संदेह हुआ और मामला चाणक्यपुरी थाने तक पहुंच गया. वहां से जांच शुरू हुई और तत्कालीन एसएचओ हरिदेव ने तेजी से कार्रवाई करते हुए आरोपी को दिल्ली हवाई अड्डे से गिरफ्तार कर लिया. उस व्यक्ति का नाम था रुस्तम सोहराब नागरवाला, जो भारतीय सेना का एक सेवानिवृत्त कैप्टन था. उसी ने इंदिरा गांधी की आवाज की नकल करके बैंक अधिकारी को झांसे में लिया था.
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कोर्ट में सुनवाई और रहस्यमयी मौतें
नागरवाला ने अपनी गलती स्वीकार की और कोर्ट ने उसे चार साल की सजा सुनाई. लेकिन सजा पूरी होने से पहले ही तिहाड़ जेल में दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो गई. इस मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी डी.के. कश्यप की भी कुछ समय बाद संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई, जिससे इस कांड को लेकर कई षड्यंत्र और साजिशों की चर्चाएं तेज हो गईं.
‘दी स्कैम दैट शुक द नेशन’ में घटना का विस्तृत उल्लेख
पत्रकार प्रकाश पात्रा और राशिद किदवई की किताब The Scam That Shook the Nation में इस पूरे घटनाक्रम का बहुत ही विस्तार और रोचकता के साथ उल्लेख किया गया है. किताब के पहले अध्याय ‘लूट’ में हेड कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के अनुभवों को हूबहू पेश किया गया है, जिससे यह समझा जा सकता है कि किस तरह एक सुनियोजित साजिश ने एक अनुभवी बैंक अधिकारी को भी भ्रमित कर दिया.
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आज भी अनसुलझा है कई सवालों का जवाब
हालांकि अधिकतर रकम बरामद कर ली गई और आरोपी को सजा भी मिली, लेकिन आज भी यह सवाल बना हुआ है कि नागरवाला अकेले था या उसके पीछे कोई बड़ी ताकत थी. क्या वाकई प्रधानमंत्री कार्यालय से किसी ने मदद की थी? क्या यह मामला पूरी तरह सुलझा? इन सवालों के जवाब आज भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं, और शायद यही कारण है कि ‘नागरवाला कांड’ आज भी भारतीय बैंकिंग और राजनीतिक इतिहास की सबसे रहस्यमयी घटनाओं में गिना जाता है.