Kargil Vijay Diwas 2022: करोड़ों देशवासियों की आंखों में आज आंसू हैं और सिर गर्व से ऊंचा हो रहा है. जिन वीर योद्धाओं ने अपने खून से इस माटी को सींचा है, आज पूरा देश उनकी वीर गाथा गा रहा है. हिमालय की ऊंची बर्फीली चोटी से रेगिस्तान के तपते रेत देश के वीर जवानों की शहादत को याद कर रहे हैं. जी हां, आज पूरा देश विजय दिवस मना रहा है. आज ही के दिन कारगिल जंग में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों को सम्मानित करने और जंग में जीत की याद को विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है.
1999 में जब पाकिस्तान ने पीठ पर वार करते हुए कारगिल द्रास समेत कई भारतीय भूभाग पर कब्जा कर लिया तो देश के वीर जवानों ने मोर्चा संभालते हुए न सिर्फ उन क्षेत्रों को फिर से हासिल किया बल्कि पाकिस्तान को हार का ऐसा स्वाद चखाया जिसे उसकी भगौड़ी और कायर सेना ताउम्र याद रखेगी. भारत कारगिल युद्ध (Vijay Diwas) जीतने की खुशी यानी 26 जुलाई को हर साल विजय दिवस के रूप में मनाता है. देश के कई वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत की आन-बान और शान को कायम रखा था. कारगिर युद्ध में देश के लिए अपनी जान लुटाने वालों सैनिकों की फेहरिस्त काफी लंबी है. उन वीरों में कुछ ऐसे हैं जिनकी वीरता पूरी दुनिया के लिए मिसाल है. कुछ ऐसे ही नाम जिनका हम जिक्र करने जा रहे हैं, जिन पर पूरे देश को फक्र है.
देश के जवानों के वीरता की बात हो और कैप्टन विक्रम बत्रा का जिक्र न हो, ऐसा भला कैसे हो सकता है. विक्रम बत्रा 13वीं जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स में थे. जंग में दुश्मनों के छक्के छुड़ाते हुए भारत माता के इस सपूत ने कारगिल के प्वाइंट 4875 पर तिरंगा फहराया था. इनकी वीरता के कारण ही इस चोटी का नाम भी बत्रा टॉप कर दिया गया. 4875 पर तिरंगा फहराते हुए इन्होंने कहा था “ये दिल मांगे मोर”. इनकी शहादत को पूरा देश आज भी नमन कर रहा है. मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
देश में जब-जब संकट के बादल छाये हैं हमारे वीर जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाकर उस आफत से लोहा लिया है. ऐसे ही दिलेर सपूत थे शहीद मनोज पांडे. 11 जून को बटालिक सेक्टर में मनोज पांडे ने दुश्मनों पर ऐसा जोरदार हमला बोला की उनके पांव उखड़ गये. मनोज पांडेय की अगुवाई में ही सेना की टुकड़ी ने जॉबर टॉप और खालुबर टॉप पर वापस कब्जा जमाया. मनोज पांडे ने अपने घावों और पहते खून की परवाह किए बिना ही दुश्मनों से लोहा लेते रहे. देश के इस सपूत को भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
कारगिल युद्ध के असल हीरो की गिनती में कैप्टन अनुज नय्यर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. कारगिल की लड़ाई में टाइगर हिल के पश्चिम में प्वाइंट 4875 के एक हिस्से पिंपल कॉम्प्लेक्स को दुश्मनों के चंगुल से छुड़ाने की जिम्मेदारी अनुज नय्यर को मिली थी. ये 17 जाट रेजिमेंट से थे. 7 जुलाई 1999 को नय्यर अपने साथियों के साथ टाइगर हिल पर दुश्मनों पर टूट पड़े. कैप्टन अनुज की वीरता को सरकार ने मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया.
कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस के लिए राजपूताना राइफल्स रेजीमेंट के जवान हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया की शहादत हमेशा याद रहेगी. करगिल युद्ध की खबर सुनकर उन्होंने अपनी छुट्टी कैंसिल कर मोर्चे पर जा डटे. अपनी बटालियन के साथ उन्होंने दुश्मनों को रौंदते हुए टोलोलिंग पहाड़ी पर द्रास सेक्टर में बनी चौकी को आजाद करा दिया. खुद शहीद हो गये लेकिन इस चौकी पर तिरंगा लहरा दिया. उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
कारगिल युद्ध के नायकों में मेजर राजेश सिंह अधिकारी का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है. उनकी शहादत पर पूरे मुल्क को फक्र है. मेजर राजेश सिंह 18 ग्रेनेडियर्स के जवान थे. इन्हें टोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करने का मिशन मिला था. दुश्मनों को ढेर करते उन्होंने अपने मिशन को पूरा किया. उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.
राइफल मैन संजय कुमार, मेजर पदमपानी आचार्य, शहीद लांस नायक करन सिंह, कैप्टन एन केंगुर्सू, मेजर विवेक गुप्ता, लांस नायक दिनेश सिंह भदौरिया, सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव. अपने खून से देश की रक्षा करने वाले शहीदों और वीरों की फेहरिस्त काफी लंबी है. इनकी बहादुरी और कुर्बानी को एक लेख में नहीं समेटा जा सकता है. पूरा देश इनके अमोघ बलिदान का ऋणी है. शायद इसलिए देश के ऐसे मतवाले वीरों के लिए कहा जाता हैं. शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा…