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जसवंत सिंह अटल जी के करीबी थे फिर पीएम मोदी के समय क्यों बीजेपी से अलग हुए?

पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह (Jaswant Singh) का आज निधन हो गया. वो 82 वर्ष के थे. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM narendra modi) ने उनके बेटे मानवेंद्र सिंह से फोन पर बात की और शोक प्रकट किया. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उन्हें याद करते हुए दुख जताया इसके साथ और कई बड़े नेताओं ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया है. पर एक बेहरीन व्यक्तित्व वाले जसवंत सिंह ने 2014 में बीजेपी (BJP) को छोड़ दिया था. क्योंकि उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी की ओर से टिकट नहीं मिला.

पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का आज निधन हो गया. वो 82 वर्ष के थे. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके बेटे मानवेंद्र सिंह से फोन पर बात की और शोक प्रकट किया. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उन्हें याद करते हुए दुख जताया इसके साथ और कई बड़े नेताओं ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया है. पर एक बेहरीन व्यक्तित्व वाले जसवंत सिंह ने 2014 में बीजेपी को छोड़ दिया था. क्योंकि उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी की ओर से टिकट नहीं मिला.

जसंवत सिंह पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी के सबसे करीबी और उनके लिए संकटमोचक की भूमिका निभाते थे. एनडीए के कार्यकाल में वे अटल जी के लिए एक संकटमोचक की तरह रहे. 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद जब भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाया गया तो दुनिया को जवाब देने के लिए वाजपेयी ने उन्हें आगे किया था.

कंधार विमान अपहरण कांड के वक्त जसवंत सिंह विदेश मंत्री थे और तीनों आतंकियों को छोड़ने के लिए वो खुद कंधार गये थे. हालांकि जसवंत सिहं आंतकियों से किसी भी प्रकार के समझौते के खिलाफ थे. अपनी पुस्तक में उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि लाल कृष्ण आडवाणी और अरूण शौरी उनके इस फैसले के खिलाफ थे.

जसवंत सिंह का बीजेपी रहते हुए पूरा विवाद उनकी लिखी पुस्तक जिन्ना, इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेंस से शुरु हुआ. किताब को लेकर बीजेपी में ही उनका विरोध हुआ. वर्ष 2009 में इस किताब के लिए उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया. उन्हें पार्टी की चिंतन बैठक में शामिल होने से मना कर दिया गया. हालांकि 2010 में फिर से बीजेपी में उनकी वापसी हुई. 2012 में बीजेपी ने उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया.

पर फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बाड़मेर से उन्हें टिकट नहीं देकर कर्नल सोनाराम चौधरी को मैदान में उतारा इसके बाद उन्होंने बीजेपी को छोड़ दिया और बागी के तौर पर चुनाव लड़ा, पर किसी भी पार्टी में शामिल नहीं हुए. इस तरह से अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे विश्वसनीय नेता को नरेंद्र मोदी के दौर में बीजेपी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

Posted By: Pawan Singh

Prabhat Khabar Digital Desk
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