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अफगान पर तालिबानी कब्जे के बाद खतरे में भारत की आंतरिक सुरक्षा, सिमी जैसे संगठन फिर फैला सकते हैं ‘फन’

भारतीय आतंकवाद विरोधी विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान समय में सिमी पर प्रतिबंध है और यह अस्तित्व में नहीं है, लेकिन इसके कई आतंकी वहादत-ए-इस्लाम में शिफ्ट हो गए हैं.

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पूरा विश्व चिंतित है. अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की वापसी को लेकर भारत सरकार भी चिंता में है और ऑपरेशन देवी शक्ति के तहत उन्हें वापस लाया जा रहा है. अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा के लिए आज सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसमें सभी दलों ने एक सुर में कहा कि अफगानिस्तान से भारतीयों की सुरक्षित निकासी प्राथमिकता में शामिल हो. इस बैठक में संभवत: तालिबान को लेकर भारत को जो खतरा हो सकता है उसपर भी बात हुई.

तालिबान के उदय से पाकिस्तान का हौसला बढ़ा

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान के हौसले बुलंद हैं. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने तालिबान के उदय के बाद कहा था कि तालिबान ने गुलामी की जंजीरें तोड़ी हैं. अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद वहां खुशी है. इमरान खान की पार्टी की एक नेता नीलम इरशाद ने बयान दिया है कि अब वे तालिबान की मदद से कश्मीर हासिल करेंगी. कहने का आशय यह है कि सीधे युद्ध में भारत से हमेशा परास्त होने वाला पाकिस्तान अब तालिबान के बल पर छद्म युद्ध के सपने देख रहा है जो वह आतंकवादी गतिविधियों के जरिये करता ही रहा है.

सिमी संगठन एक बार फिर सक्रिय हो सकता है

सिमी यानी स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) का गठन 1977 में हुआ था. इसे भारत सरकार ने आतंकवादी संगठन घोषित कर 9/11 के हमले के बाद बैन कर दिया था. हिंदुस्तान टाइम्स में छपी खबर के अनुसार भारतीय आतंकवाद विरोधी विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान समय में सिमी पर प्रतिबंध है और यह अस्तित्व में नहीं है, लेकिन इसके कई आतंकी वहादत-ए-इस्लाम में शिफ्ट हो गए हैं. सिमी के कई आतंकी इंडियन मुजाहिदीन में शामिल हुए है या यूं कहें कि इंडियन मुजाहिदीन सिमी का ही बदला हुआ स्वरूप है तो गलत नहीं होगा. यह सभी संगठन तालिबान को अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं और उनके संपर्क में हैं या उनसे संपर्क कर सकते हैं. ऐसे में यह मसला देश के लिए खतरा साबित हो सकता है, क्योंकि यह संगठन एक बार फिर देश में अपनी सक्रियता बढ़ा सकते हैं और उनके सिर पर पाकिस्तान के साथ-साथ तालिबान का भी हाथ होगा.

चीन ने भी दिया तालिबान को मान्यता

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद चीन वो पहला देश था जिसने यह कहा कि वह तालिबान के साथ काम करना चाहता है. चीन ने अफगानिस्तान की स्थिति पर टिप्पणी की थी कि वह तालिबान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है. चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुवा चुनियांग ने कहा है कि चीन अफगानिस्तान के लोगों का अपने भविष्य के बारे में फैसला करने के अधिकार का सम्मान करता है. हम चीन और अफगानिस्तान के मैत्रीपूर्ण संबंध की कामना करते हैं. चीन ने यह उम्मीद भी जतायी थी कि तालिबान अपना वादा निभायेगा और वहां एक समावेशी इस्लामिक सरकार स्थापित करेगा. चीन बीआरआई परियोजना के तहत चीन को सड़क, रेल एवं जलमार्गों के माध्यम से यूरोप, अफ्रीका और एशिया से जोड़ना है और इसके लिए वह अफगानिस्तान का इस्तेमाल करना चाहता है. चूंकि चीन का रवैया भारत के प्रति अच्छा नहीं रहा है इसलिए चीन और तालिबान की दोस्ती भारत के लिए चिंता का विषय है.

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Posted By : Rajneesh Anand

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