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डेढ़ महीने बाद रेलवे ने फिर भरी सांस, जानें कैसा रहा है सफर

Indian Railways : भारत में रेलवे का इतिहास 167 साल पुराना है. भारत में ब्रिटिश काल में पहली ट्रेन चली थी तब से लेकर आज तक कभी ऐसा मौका नहीं आया था जब रेल सेवा को इस तरह से डेढ़ महीने से ज्यादा समय के लिए बंद कर दिया गया हो. कोरोना वायरस के इस दौर में जब पूरा विश्व घरों में दुबका है, भारत सरकार ने भी इस वायरस के संक्रमण के चेन को तोड़ने के लिए 22 मार्च को यह घोषणा की थी कि भारत में रेल सेवा बंद की जा रही है. पहली दफा रेल सेवा को 31 मार्च तक के लिए बंद किया गया था, लेकिन लॉकडाउन की अवधि बढ़ने के साथ-साथ रेल सेवा भी प्रभावित हुई और 11 मई तक रेल सेवा बंद रही.

भारत में रेलवे का इतिहास 167 साल पुराना है. भारत में ब्रिटिश काल में पहली ट्रेन चली थी तब से लेकर आज तक कभी ऐसा मौका नहीं आया था जब रेल सेवा को इस तरह से डेढ़ महीने से ज्यादा समय के लिए बंद कर दिया गया हो. कोरोना वायरस के इस दौर में जब पूरा विश्व घरों में दुबका है, भारत सरकार ने भी इस वायरस के संक्रमण के चेन को तोड़ने के लिए 22 मार्च को यह घोषणा की थी कि भारत में रेल सेवा बंद की जा रही है. पहली दफा रेल सेवा को 31 मार्च तक के लिए बंद किया गया था, लेकिन लॉकडाउन की अवधि बढ़ने के साथ-साथ रेल सेवा भी प्रभावित हुई और 11 मई तक रेल सेवा बंद रही.

भारतीय रेल की तरफ से 10 मई को यह घोषणा की गयी कि 12 मई से देश में रेल सेवा पुनर्बहाल की जायेगी जिसके लिए 11 मई से टिकटों की अॅानलाइन बुकिंग हुई. रेलवे पूरे देश को जोड़ता है और एक तरह से आवागमन के साधनों की लाइफलाइन भी है. यही कारण है कि इसके थमते ही पूरा देश थम गया था. आखिर रेलवे में ऐसी क्या बात है कि यह पूरे देश की लाइफलाइन है? अगर आप यह सवाल करते हैं, तो आपको यह जानना पड़ेगा कि रेलवे के जरिये एक दिन में 2.3 करोड़ यात्री हर दिन एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं. वहीं 13 हजार ट्रेन रोज चलती है, जो लोगों को आपस में जोड़ती है. यह बात सिर्फ यात्री ट्रेनों के लिए कही जा रही है, जबकि रेलवे के जरिये ही देश में सबसे ज्यादा माल ढुलाई का काम भी होता है.

वर्ष 2018 में भारतीय रेलवे ने 1.16 बिलियन टन सामानों की ढुलाई की. भारतीय रेल में कर्मचारियों की संख्या 12 से 14 लाख के बीच है. इन आंकड़ों से रेलवे कितना बड़ा है इसकी जानकारी हमें मिल जाती है. यही कारण रहा कि सरकार ने यह माना कि रेलें अगर चलती रहीं तो कोरोना वायरस का प्रसार तेजी से होगा. ‘जान है तो जहान है’ को आधार मानकर सरकार ने भारी नुकसान सहते हुए भी रेलवे का परिचालन बंद कर दिया. अब जबकि रेलवे ने एक बार फिर सांस भरी है, कुछ पुरानी बातें याद आती हैं.

भारत में रेलवे का इतिहास : भारत में पहली पैसेंजर ट्रेन 16 अप्रैल 1853 में चली थी. यह ट्रेन बंबई से थाणे के लिए चली थी जिसने 34 किलीमीटर की यात्रा तय की थी. यह ट्रेन तीन स्टीम इंजन के जरिये चली थी और इसमें कुल 14 कैरेज थे जिसपर कुल 400 यात्री सवार थे. इन तीनों इंजन को नाम दिया गया था साहिब, सिंध और सुल्तान. हालांकि देश में पहली ट्रेन मालगाड़ी के रूप में चली थी जिसका परिचालन 1837 में माल ढुलाई के लिए चली थी.

1974 में हुई रेलवे की हड़ताल ने सबको परेशान कर दिया था : कोरोना वायरस के कारण रेल सेवा डेढ़ महीने से भी ज्यादा समय से बंद है, जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है. यह घटना रेलवे के उस हड़ताल की याद दिलाती है, जिसके होने से तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा घबरा गये थे और उसे अर्थव्यवस्था को चकनाचूर करने वाला बताया था. वह हड़ताल आठ से 27 मई तक हुई थी. इस हड़ताल के प्रणेता थे भारत के दिग्गज राजनेता जॉर्ज फर्नांडिस. उस वक्त जॉर्ज अॅाल इंडिया रेलवे मेंस फेडेरेशन के अध्यक्ष थे. यह हड़ताल लोकोमोटिव स्टॉफ के काम के घंटे को निर्धारित करने और वेतन में बढ़ोत्तरी के लिए हुई थी. फेडेरेशन ने काम के घंटे को आठ करने की मांग की थी और लंबित वेतन आयोग की सिफारिश को लागू करने को कहा था. यह हड़ताल इतनी जबरदस्त थी कि देश थम सा गया था. विभाग के 70 प्रतिशत कर्मचारी हड़ताल पर थे और सेना और पुलिस को अलर्ट पर रखा गया था. इस वक्त जॉर्ज ने नारा दिया था रेल से बेहतर जेल.

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