GPS Spoofing: हवाई यात्रा की सुरक्षा को लेकर एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने हम सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है. पिछले कुछ समय से दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बड़े हवाई अड्डों के पास उड़ानों ने जीपीएस स्पूफिंग (GPS Spoofing) का सामना किया है. नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने भी राज्यसभा में माना कि करीब 800 उड़ानें इससे प्रभावित हुई हैं. लेकिन इस पूरे मामले में एक आवाज ऐसी है, जिसने सबसे पहले इस खतरे को पहचाना और अब भी इसे गंभीरता से लेने की अपील कर रही है – वह हैं साइबर सिक्योरिटी फोरेंसिक एक्सपर्ट अंकुर चंद्रकांत (Ankur Chandrakant).
अब जब सरकार ने 800 उड़ानों के प्रभावित होने की बात मान ली है, तो चंद्रकांत का संदेश और भी ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है. उनका सीधा कहना है: “इसे लाइटली नहीं लेना चाहिए, इसे गंभीरता से लेना चाहिए.”
क्यों है यह इतना गंभीर? निशाने पर कौन?
जीपीएस स्पूफिंग का मतलब है, आपके विमान को नकली जीपीएस सिग्नल भेजना, जिससे पायलट को गलत जानकारी मिले कि वह कहां है. कल्पना कीजिए, आप कहीं और जाने की तैयारी कर रहे हैं और आपका नेविगेशन सिस्टम आपको कहीं और दिखा रहा है—यह ज़मीन पर भी खतरनाक है, आसमान में तो पूछिए ही मत!
अंकुर चंद्रकांत की सबसे बड़ी चिंता यह है कि हमलावर इस तकनीक को बड़े लोगों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. उन्होंने स्पष्ट कहा: “बड़ा बिजनेसमैन , पॉलिटिशियन, साइंटिस्ट , सहित तमाम हस्तियां एयरट्रवेल करती हैं, अटैकर्स इसे हथियार बना सकते हैं.” यानी, देश के बड़े उद्योगपति, नामचीन हस्तियां, और राजनेता, जो अक्सर हवाई यात्रा करते हैं, उनकी सुरक्षा दांव पर लग सकती है. यह केवल विमान को भटकाने का मामला नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन सकता है.
राहत की बात यह है कि हमारे हवाई अड्डों पर अभी भी पुराने और भरोसेमंद नेविगेशन सिस्टम (जैसे VOR, DME) काम कर रहे थे, इसलिए किसी भी उड़ान के ऑपरेशन पर असर नहीं पड़ा. यह बैकअप सिस्टम ही वह दीवार साबित हुआ जिसने हमें किसी बड़े हादसे से बचा लिया.
लेकिन अब सवाल यह है कि आगे क्या? क्या हम सिर्फ़ पुराने सिस्टम के भरोसे बैठे रहेंगे?
साइबर एक्सपर्ट्स और सरकार को मिलकर अब एंटी-स्पूफिंग और एंटी-जैमर तकनीकों पर तेजी से काम करना होगा. अंकुर चंद्रकांत जैसे लोग जो आवाज़ उठा रहे हैं, उनकी बातों को सुनना और उन पर तुरंत एक्शन लेना वक़्त की ज़रूरत है.
जीपीएस स्पूफिंग अब सिर्फ़ एक तकनीकी शब्द नहीं है, यह हमारी हवाई सुरक्षा के लिए एक ठोस चुनौती बन गया है, जिसे हमें ‘हल्के में’ लेने की गलती बिल्कुल नहीं करनी चाहिए.
अंकुर चंद्रकांत जैसे विशेषज्ञों की चेतावनी को अब सिर्फ़ एक ‘वायरल रील’ नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरे की घंटी माना जाना चाहिए. आसमान में उड़ने वाली हमारी उम्मीदों की सुरक्षा के लिए, अब ‘हल्के में’ लेने का समय निकल चुका है.

