नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेरविवारको दीनदयाल उपाध्याय के जन्म के 100 साल पूरे होने के मौके पर उनके संदेश का प्रसार करने के लिए उनके कार्यों की एक श्रृंखला का विमोचन किया. इस मौके परपीएममोदी ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय संपूर्ण वाङ्मय की 15 किताबें उनकी जीवन यात्रा की त्रिवेणी है. उन्होंने कहा कि दीनदयाल का जीवनकाल लंबा नहीं था लेकिन उन्होंने एक विचार को विकल्प बना दिया.
इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वो कहते थे कि राष्ट्र में जो सेना है, वो सेना अत्यंत सामर्थ्यवान होनी चाहिए, तब जाकर राष्ट्र सामर्थ्यवान बनता है. उन्होंने आगे कहा कि मैंने सुना है कि गुजरात में जनसंघ का मजाक उड़ाते हुए कहते थे कि दीवार पर दीपक बनाने से क्या जीत जाओगे. यह पंडित जी का ही विश्वास था कि आज हमारी विचार यात्रा यहां पहुंची है. उन्होंने कहा कि एक वक्त में जनसंघ के नेता जमानत बचने पर पार्टी करते थे. यह अपने विचार के प्रति अद्भुत श्रद्धा का परिणाम था. पीएम मोदी ने कहा कि सेना अत्यंत सामर्थवान हो, हमारा देश शक्तिमान हो. सामर्थवान भारत समय की मांग है.
नरेंद्र मोदी ने कहा कि सुदर्शन चक्रधारी मोहन से चरखा धारी मोहन तक जो हम सुनते आए हैं पंडित जी ने उसे आधुनिक अर्थों में प्रस्तुत किया है. मैं चाहूंगा कि हिंदुस्तान का विश्लेषक वर्ग राज्यों की सरकारों को कसौटी को परखे. मुझे विश्वास है कि पंडित दीनदयाल ने जिस दल को सींचा है वह खरा उतरेगा. पंडित जी ने कहा था ज्ञान, विज्ञान और संस्कृति सभी क्षेत्रों में अपने जीवन के विकास के लिए जो भी आवश्यक होगा हम उसे स्वीकार करेंगे. यही हमारी मूलभूत सोच है.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि मेरे पास दो दीनदयाल होते तो मैं देश की राजनीति का चरित्र बदल देता. कोई भी पंडित जी के बारे में सोचता है तो सादगी की छवि उभर कर आती है. मुझे तो उनके दर्शन करने का सौभाग्य नहीं मिला. दीनदयाल का जीवनकाल लंबा नहीं था लेकिन उन्होंने एक विचार को विकल्प बना दिया. इतने कम समय में एक राजनीतिक दल विपक्ष से लेकर विकल्प की यात्रा तय कर ले यह छोटी बात नहीं और यह पंडित जी के प्रयासों का परिणाम है.
15 संस्करण वाले ‘द कम्प्लीट वर्क्स ऑफ दीनदयाल उपाध्याय’ संग्रह में उपाध्याय के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और 1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध, ताशकंद समझौता और गोवा की मुक्ति जैसी अहम घटनाओं समेत देश और जन संघ की यात्रा को रेखांकित किया गया है. इसके अंतिम में पहले वाले संस्करण में उपाध्याय के 1967 में जनसंघ प्रमुख बनने के तुरंत बाद उनकी हत्या संबंधी घटनाओं की भी जिक्र किया गया है.