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उच्च न्यायालय ने 79 द्रमुक विधायकों के निलंबन पर रोक लगाने से मना किया

चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु विधानसभा से 79 द्रमुक विधायकों के निलंबन पर अंतरिम रोक लगाने से आज इनकार किया। हालांकि न्यायालय ने विपक्ष के नेता एम.के. स्टालिन और एक अन्य द्रमुक सदस्य द्वारा दायर याचिकाओं पर राज्य के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया. इन याचिकाओं में इन्होंने विधानसभा से अपने सामूहिक […]

चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु विधानसभा से 79 द्रमुक विधायकों के निलंबन पर अंतरिम रोक लगाने से आज इनकार किया। हालांकि न्यायालय ने विपक्ष के नेता एम.के. स्टालिन और एक अन्य द्रमुक सदस्य द्वारा दायर याचिकाओं पर राज्य के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया. इन याचिकाओं में इन्होंने विधानसभा से अपने सामूहिक निलंबन को चुनौती दी है और सभी कार्यवाहियों को अवैध, अधिकारातीत और असंवैधानिक घोषित करने का निर्देश देने की मांग की है.

अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा, ‘‘ चूंकि यह सदन के कामकाज का मामला है और यह आदेश विधानसभा अध्यक्ष द्वारा पारित किया गया है, इसलिए हम अंतरिम आदेश पारित करने को तैयार नहीं हैं.”
‘‘ हालांकि, प्रार्थना को निष्फल बनाने का कोई सवाल नहीं होगा क्योंकि अंतत: प्रस्ताव की वैधता पर निर्णय करना ही होगा क्योंकि इसके अन्य प्रभाव हो सकते हैं.” पीठ ने याचिकाकर्ताओं- स्टालिन और द्रमुक विधायक त्यागराजन को विधानसभा अध्यक्ष पी. धनपाल और तमिलनाडु विधानसभा सचिव को निजी नोटिस जारी करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई की तारीख एक सितंबर मुकर्रर की. मामला जब सुनवाई के लिए सामने आया, स्टालिन के वरिष्ठ अधिवक्ता मोहन परासरन ने कहा कि यह विधानसभा के इतिहास में पहली बार है कि विपक्षी पार्टी द्रमुक के सभी विधायकों के सामूहिक निलंबन का प्रस्ताव पारित किया गया.
अपनी याचिका में स्टालिन ने खुद को और अन्य निलंबित विधायकों को सदन के मौजूदा सत्र में शामिल होने की अनुमति का एक अंतरिम निर्देश देने की न्यायालय से मांग की थी। उन्होंने कहा कि जब सदन में ध्वनिमत से यह प्रस्ताव पारित किया गया था तो उस समय वह और द्रमुक के ज्यादातर विधायक सदन में मौजूद नहीं थे.
बीते 17 अगस्त को राज्य की विधानसभा में तब काफी हंगामा हुआ था जब विधानसभा अध्यक्ष पी धनपाल ने द्रमुक के सभी विधायकों को सदन की कार्रवाई में कथित तौर पर खलल डालने के लिए सदन से बाहर कर दिया था और उन्हें एक हफ्ते के लिए निलंबित भी कर दिया था.
शुरुआत में 80 विधायकों को निलंबित किया गया था लेकिन बाद में एक विधायक का निलंबन वापस ले लिया गया क्योंकि हंगामे के दौरान वह सदन में उपस्थिति ही नहीं था। यह हंगामा अन्नाद्रमुक के एक विधायक की स्टालिन के खिलाफ टिप्पणियों के बाद शुरु हुआ था. अपने विधायकों के निलंबन के खिलाफ द्रमुक ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और कहा था कि सभी विधायकों का एक साथ निलंबन गैरकानूनी है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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