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देश के 47वें मुख्य न्यायाधीश बने जस्टिस बोबडे, राष्ट्रपति कोविंद ने दिलायी शपथ

नयी दिल्लीः अयोध्या भूमि विवाद पर ऐतिहासिक फैसला देने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे ने आज देश के 47वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) पद की ली. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जस्टिस बोबडे को भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलवाई. 17 नवंबर को रिटायर हुए पूर्व सीजेआई […]

नयी दिल्लीः अयोध्या भूमि विवाद पर ऐतिहासिक फैसला देने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे ने आज देश के 47वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) पद की ली. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जस्टिस बोबडे को भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलवाई. 17 नवंबर को रिटायर हुए पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने ही जस्टिस बोबडे के नाम की सिफारिश की थी.

बतौर सीजेआई जस्टिस एस. ए. बोबडे के सामने कई बड़े फैसले होंगे, जिनपर उन्हें फैसला सुनाना होगा. हाल ही में अयोध्या विवाद पर फैसला आया है, लेकिन इसपर पुनर्विचार याचिका दायर होने का भी निर्णय मुस्लिम पक्ष ने लिया है. दूसरी ओर सबरीमाला विवाद को अब बड़ी बेंच को सौंपा गया है, ऐसे में बतौर सीजेआई वह इस बेंच का हिस्सा होंगे.

जस्टिस बोबडे ने कई ऐतिहासिक फैसलों में अहम भूमिका निभाई है. 63 वर्षीय जस्टिस बोबडे का कार्यकाल करीब 17 महीने का होगा और वह 23 अप्रैल, 2021 को सेवानिवृत्त होंगे. माना जा रहा है कि उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति या उनके नाम को खारिज करने संबंधी कलीजियम के फैसलों का खुलासा करने के मामले में वह पारंपरिक दृष्टिकोण अपनाएंगे.

वरिष्ठता क्रम की नीति के तहत निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने उनका नाम केंद्र सरकार को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर भेजा था. न्यायमूर्ति बोबडे को सीजेआई पद पर नियुक्त करने के आदेश पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दस्तखत किए जिसके बाद विधि मंत्रालय ने उन्हें भारतीय न्यायपालिका के शीर्ष पद पर नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की.

अयोध्या के अलावा जस्टिस बोबडे और भी कई महत्वपूर्ण मामलों पर फैसला देने वाली पीठ का हिस्सा रह चुके हैं. अगस्त, 2017 में तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस बोबडे ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिया था. वह 2015 में उस तीन सदस्यीय पीठ में शामिल थे, जिसने स्पष्ट किया कि भारत के किसी भी नागरिक को आधार संख्या के अभाव में मूल सेवाओं और सरकारी सेवाओं से वंचित नहीं किया जा सकता.
हाल ही में उनकी अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने बीसीसीआई का प्रशासन देखने के लिए पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय की अध्यक्षता में बनाई गई प्रशासकों की समिति को निर्देश दिया कि वे निर्वाचित सदस्यों के लिए कार्यभार छोड़ें.
पेपर लीक मामले में बनाई समिति
जस्टिस बोबडे ने परीक्षाओं में पेपर लीक की घटनाओं पर चिंता जताते हुए तमाम अथॉरिटी को हरसंभव कदम उठाने के लिए कहा था. भविष्य में पेपर लीक की घटनाएं न हों इसके लिए उन्होंने एक समिति भी बनाई है. फिलहाल समिति इस पर अध्ययन कर रही है.
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नागपुर में हुआ जस्टिस बोबडे का जन्म
जस्टिस बोबडे महाराष्ट्र के वकील परिवार से आते हैं और उनके पिता अरविंद श्रीनिवास बोबडे भी मशहूर वकील थे. उनका का जन्म 24 अप्रैल 1956 को नागपुर में हुआ. उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी से कला व कानून में स्नातक किया. 1978 में महाराष्ट्र बार काउंसिल में उन्होंने बतौर अधिवक्ता अपना पंजीकरण कराया.
हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में 21 साल तक अपनी सेवाएं देने वाले जस्टिस बोबडे ने मार्च, 2000 में बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त जज के रूप में शपथ ली. 16 अक्तूबर 2012 को वह मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने. 12 अप्रैल 2013 को उनकी पदोन्नति सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में हुई.

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