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जम्मू कश्मीर: जिस आर्टिकल 35A को लेकर मचा है इतना बवाल, वो है क्या?

धारा 35 A. आजकल चर्चा में है. इस पर हो हल्ला मचा है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर ये क्या है. पहले ये मामला लोकसभा चुनाव के दौरान गरम था. अब ये मामला शुक्रवार से फिर से गरमा गया. दरअसल, शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय का एक आदेश सामने आया जिसके मुताबिक, […]

धारा 35 A. आजकल चर्चा में है. इस पर हो हल्ला मचा है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर ये क्या है. पहले ये मामला लोकसभा चुनाव के दौरान गरम था. अब ये मामला शुक्रवार से फिर से गरमा गया. दरअसल, शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय का एक आदेश सामने आया जिसके मुताबिक, 10,000 अतिरिक्त अर्धसैनिक बल के जवानों को कश्मीर तक ले जाने की बात लिखी थी. इस आदेश के बाद यह कहा जाने लगा कि सरकार अनुच्छेद 35A और अनुच्छेद 370 को हटाने के बारे में सोच रही है.
एक एक कर कश्मीर के नेता सामने आए और केंद्र सरकार के इस फैसले पर हमला बोला. महबूबा मुफ्ती ने खुल्लमखुल्ला कहा कि अगर 35A को हाथ लगाया तो हाथ ही नहीं बल्कि पूरा जिस्म जलकर खत्म हो जाएगा.
ये मामला सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा है. हालांकि, इसपर फैसला अभी आया नहीं है. अनुच्छेद 35-A के खिलाफ 5 साल पहले वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई थी. तब से ये मामला देश में बहस और कश्मीर में विरोध का केंद्र बना हुआ है. ऐसे में ये समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर कश्मीर से जुड़ा संविधान का अनुच्छेद 35-A क्या है?
आइए जानें कि अनुच्छेद 35-A से जुड़ी जरूरी बातें :
अनुच्छेद 35-A संविधान का वह आर्टिकल है जो जम्मू कश्मीर को विशेष अधिकार देता है. 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ. कश्मीर रियासत के महाराज हरि सिंह ने कश्मीर के भारत में विलय को मंजूरी दे दी, जिस पर 27 अक्टूबर 1947 को गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन ने दस्तखत कर दिए.
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए संविधान में एक धारा लाई गयी थी 370. इसके जरिए संसद को अधिकार मिला कि वो रक्षा, विदेश मामले और संचार के बारे में जम्मू-कश्मीर के लिए कानून बना सकती है, जिसे राज्य सरकार की मंजूरी लेनी होती है. ये प्रावधान अब भी लागू है लेकिन जम्मू-कश्मीर से जुड़ा एक और प्रावधान है, जो लागू है और सबसे विवादित भी है. ये प्रावधान है धारा 35 A.
तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई 1954 को एक आदेश के जरिए धारा 35 A को लागू किया. ये धारा जम्मू-कश्मीर की सरकार और वहां की विधानसभा को जम्मू-कश्मीर का स्थायी नागरिक तय करने का अधिकार देती है. इसी धारा के आधार पर 1956 में जम्मू कश्मीर ने राज्य में स्थायी नागरिकता की परिभाषा तय कर दी, जो अब सबसे बड़ी विवाद की जड़ है.
धारा 35 A के मुताबिक जम्मू कश्मीर का नागरिक उसे माना जाएगा, जो 14 मई 1954 से पहले राज्य का नागरिक रहा हो. वो 14 मई 1954 से पहले 10 साल तक जम्मू-कश्मीर में रहा हो और उसके पास जम्मू-कश्मीर में संपत्ति हो. इस नियम के तहत दूसरे राज्यों में भारतीय नागरिकों को जो मूल अधिकार मिल रहे हैं, उनके उल्लंघन को लेकर याचिका भी दाखिल नहीं की जा सकती है. यानी यह धारा दूसरे राज्यों के जैसे नागरिक अधिकार हासिल करने पर पूरी तरह से रोक देती है.
लड़कियां शादी करेंगी तो कश्मीरी नहीं रह जाएंगी
जम्मू-कश्मीर की नागरिकता हासिल की हुई कोई लड़की अगर किसी गैर कश्मीरी से शादी करती है तो एक कश्मीरी को मिलने वाले सारे अधिकार वो खो देती है. जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 2002 में कहा था कि अगर कोई महिला किसी गैर कश्मीरी से शादी करती है तो वो अपने कश्मीरी अधिकार रख सकती है लेकिन उसके बच्चे को कोई अधिकार नहीं मिलेगा.
इस नए नियम की वजह से उन लोगों को खास तौर पर दिक्कत होनी शुरू हुई जो देश विभाजन के बाद पाकिस्तान से हिंदुस्तान आए थे. पाकिस्तान से आए जो लोग जम्मू-कश्मीर पहुंचे, उन्हें धारा 35 A नागरिकता नहीं देती है, क्योंकि जब ये धारा लागू की गई, उस वक्त तक उन्हें आए हुए महज सात साल ही हो पाए थे. ऐसे में हजारों लोगों को नागरिकता नहीं मिल पाई. न तो वो वोटर रहे और न ही उन्हें किसी तरह के अधिकार दिए गए.
राज्य में रह रहे मगर शरणार्थियों की तरह
वहीं जो लोग जम्मू-कश्मीर के अलावा देश के किसी और हिस्से में गए, उन्हें आम हिंदुस्तानी की तरह सारे अधिकार मिल गए. ऐसे में जो लोग पाकिस्तान से हिंदुस्तान बेहतरी की आस में आए थे, वो और उनकी पीढ़ियां 63 साल के बाद भी शरणार्थियों की तरह रहने को मजबूर हैं.
ऐसे में ये लोग न तो जम्मू-कश्मीर में अपने लिए जमीन-जायदाद खरीद सकते हैं, न ही राज्य के लिए होने वाले चुनाव में वोट दे सकते हैं, राज्य में होने वाला चुनाव भी खुद नहीं लड़ सकते हैं. इसके अलावा वो सरकारी नौकरी भी हासिल नहीं कर सकते हैं.
हालांकि ये लोग भारत के नागरिक हैं, लोकसभा के लिए वोट दे सकते हैं और देश के किसी दूसरे राज्य में आने-जाने के लिए स्वतंत्र हैं. ये लोग राज्य के चुनाव में शामिल नहीं हो सकते लेकिन ये लोग राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक हो सकते हैं.
एक आंकड़े के मुताबिक 1947 में 5764 परिवार पश्चिमी पाकिस्तान से आकर जम्मू में बसे थे. इन परिवारों में लगभग 80 प्रतिशत दलित थे, जिनकी चौथी पीढ़ी यहां रह रही है. इसके अलावा गोरखा समुदाय के भी लोग हैं, जिन्हें राज्य के नागरिक होने का कोई अधिकार हासिल नहीं है.
वहीं 1957 में जम्मू-कश्मीर सरकार की कैबिनेट ने एक फैसला लिया था. इसके तहत वाल्मीकि समुदाय के 200 परिवारों को विशेष सफाई कर्मचारी के तौर पर बुलाया गया था. पिछले 60 साल से ये लोग जम्मू में सफाई कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे हैं, जिन्हें जम्मू-कश्मीर के निवासी का दर्जा हासिल नहीं है.

आर्टिकल 35A को हटाने का मुख्य कारण?
पहला इसे संसद के जरिए लागू नहीं करवाया था और दूसरा देश के बंटवारे के समय पाकिस्तानी से लोगों की बड़ी संख्या भारत में दाखिल हुई, इनमें से जो लोग जम्मू-कश्मीर में हैं उन्हें वहां की नागरिकता भी प्राप्त हो चुकी है. बता दें अनुच्छेद 35A के जरिए जम्मू-कश्मीर सरकार ने 80 फीसदी पिछड़े और दलित हिंदू समुदाय के भारतीय नागरिकों को राज्य के स्थाई निवासी प्रमाणपत्र से वंचित कर दिया.
साथ ही जम्मू कश्मीर सरकार अनुच्छेद 35A की आड़ लेकर उन लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है जो विवाह कर महिलाएं यहां आती है.
जानकारों के भी हैं अपने-अपने तर्क
संविधान के जानकारों के मुताबिक संविधान में 35 (a) का जिक्र है, जो जम्मू-कश्मीर से जुड़ा हुआ नहीं है. राष्ट्रपति ने जम्मू-कश्मीर से जुड़ा जो आदेश दिया है, वो आर्टिकल 35 (A) है. वहीं संविधान में जब-जब संशोधन किया जाता है, उसका जिक्र संविधान की किताब में किया जाता है. अब तक के हुए संशोधनों में आर्टिकल 35 (A) का जिक्र नहीं है. हालांकि इस धारा को संविधान के परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है.

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