नयी दिल्ली : डाक विभाग की पिछले सप्ताह हुई एक परीक्षा का माध्यम केवल हिंदी और अंग्रेजी रखने के विरोध में मंगलवार को राज्यसभा में अन्नाद्रमुक, द्रमुक सहित कई दलों के सदस्यों के हंगामे के कारण कार्यवाही कई बार बाधित हुई. हालांकि, बाद में सरकार द्वारा इस परीक्षा को रद्द करने और विभिन्न भारतीय भाषाओं में नये सिरे से परीक्षा कराने की घोषणा के बाद सदन में सामान्य तरीके से कामकाज होने लगा.
इस मुद्दे पर चार बार के स्थगन के बाद फिर शुरू हुई बैठक में संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदन में घोषणा की कि 14 जुलाई को हुई परीक्षा रद्द कर दी गयी है और नये सिरे से होने वाली परीक्षा तमिल सहित सभी क्षेत्रीय भाषाओं में होगी. विभिन्न दलों के हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही भोजनावकाश के पहले पूरी तरह से बाधित रही. भोजनावकाश के बाद भी हंगामे के कारण एक बार सदन की बैठक आधे घंटे के लिए स्थगित की गयी. इसके बाद रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर गौर किया और 14 जुलाई को डाक विभाग के लिए हुई परीक्षा को रद्द कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि आगे नये सिरे से होने वाली परीक्षा सभी क्षेत्रीय भाषाओं में होगी.
उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी नीत सरकार तमिल सहित सभी क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान करती है. उनकी इस घोषणा के बाद अन्नाद्रमुक नेता नवनीत कृष्णन और वी मैत्रेयन, माकपा नेता टी रंगराजन, द्रमुक नेता टी शिवा, भाकपा नेता डी राजा और कांग्रेस नेता आनंद शर्मा, भाजपा नेता भूपेंद्र यादव, सपा नेता रामगोपाल यादव आदि ने सरकार को यह संवेदनशील मुद्दा सुलझाने के लिए धन्यवाद दिया. हालांकि, रामगोपाल यादव ने मांग की कि भोजपुरी भाषा को आधिकारिक भाषा की सूची में शामिल किया जाये. इसके बाद सदन में सुचारू रूप से कामकाज हुआ.
उल्लेखनीय है कि इस मुद्दे पर हंगामे के कारण सुबह शून्यकाल और प्रश्नकाल नहीं चल पाये थे. सुबह बैठक शुरू होते ही अन्नाद्रमुक, द्रमुक, भाकपा और माकपा सदस्यों ने तमिलनाडु में डाकिया और अन्य पदों के लिए हुइर्झ डाक विभाग की परीक्षा रद्द करने की मांग की. इन सदस्यों ने कहा कि यह परीक्षा नये सिरे से ली जानी चाहिए जिसमें प्रश्न हिंदी, अंग्रेजी के साथ साथ तमिल में भी पूछे जाने चाहिए. सभापति ने हंगामा कर रहे सदस्यों से शांत रहने और शून्यकाल चलने देने की अपील की. उन्होंने कहा कि सदस्य सरकार को अपनी मांग पर जवाब देने के लिए आदेश नहीं दे सकते. नियमों में ऐसा नहीं कहा गया है. मैं आदेश नहीं दे सकता, यह उचित नहीं है. बाद में प्रश्नकाल में भी यही नजारा देखने को मिला और विभिन्न विपक्षी दलों के सदस्य आसन के समीप आकर नारेबाजी करते रहे.

