नयी दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को लोकसभा में जम्मू-कश्मीर की मौजूदा समस्याओं के लिए पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया. शाह ने लोकसभा में घाटी पर चर्चा के जवाब में कहा कि धर्म के नाम देश का बंटवारा करना नेहरू की ऐतिहासिक भूल थी. शाह के इस बयान पर कांग्रेस के सदस्यों ने सदन में खूब हंगामा किया.
इस पर अमित शाह ने कहा कि मैंने जो कहा है, सच ही कहा है. शाह ने कहा कि आप कहते हैं कि हम लोगों को विश्वास में लिये बिना फैसले लेते हैं, लेकिन तब नेहरूजी ने कश्मीर पर फैसला लेने से पहले गृह मंत्री को विश्वास में नहीं लिया था. अगर तत्कालीन गृह मंत्री को विश्वास में लिया होता तो पूरा कश्मीर हमारा होता.
इधर, जम्मू-कश्मीर में छह महीने के लिए राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने के प्रस्ताव को लोकसभा ने मंजूरी दे दी. यह तीन जुलाई से लागू होगा. सदन में गृह मंत्री अमित शाह ने प्रस्ताव रखा था जिस पर हुई बहस के बाद इसे पास कर दिया गया. इससे पहले राष्ट्रपति शासन की अवधि को बढ़ाने का आग्रह करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि जम्मू- कश्मीर में लोकतंत्र बहाल रहे, यह भाजपा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और इसमें सरकार जरा भी लीपापोती नहीं करेगी.
उन्होंने कहा कि सरकार वहां शांति, कानून का शासन और आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने को लेकर कटिबद्ध हैं. लोकसभा में शाह दो प्रस्ताव लेकर आये जिसमें से एक वहां राष्ट्रपति शासन की अवधि को बढ़ाने और दूसरा जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 5 और 9 के तहत जो आरक्षण का प्रावधान है उसमें भी संशोधन करके कुछ और क्षेत्रों को जोड़ने का प्रावधान शामिल है.
जम्मू-कश्मीर में फिर बढ़ा राष्ट्रपति शासन
प्रस्ताव का विरोध करते हुए लोस में कांग्रेस के नेता मनीष तिवारी ने कहा कि आज हालत यह हो गयी है कि हमें हर छह महीने में जम्मू और कश्मीर में राष्ट्रपति शासन को बढ़ाना पड़ रहा है. इसकी वजह 2015 में पीडीपी और भाजपा के बीच अलायंस में छिपी है. अगर आतंक के खिलाफ आपकी कड़ी नीति है तो हम इसका विरोध नहीं करते हैं लेकिन आपको यह ध्यान में रखने की जरूरत है कि लड़ाई तभी जीती जा सकती है जब लोग आपके साथ हों.
आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी : शाह
शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में बहुत समय बाद आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनायी गयी है. एक साल के भीतर सरकार ने आतंकवाद को जड़ों से उखाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पहले वहां कई साल तक पंचायत चुनाव नहीं कराये जाते थे, लेकिन यही एक साल के अंदर वहां शांतिपूर्ण पंचायत चुनाव कराये गये हैं. उन्होंने कहा कि 40 हजार पदों के लिए वहां चुनाव हुआ और एक भी जान नहीं गयी.