-रजनीश आनंद-
नयी दिल्ली : भारत का अहम राज्य उत्तर प्रदेश आज अपने अविस्मरणीय योगदानों के लिए बल्कि यहां प्रतिदिन महिलाओं के साथ होने वाले अनाचार के लिए पूरे देश में चर्चित है. विगत एक पखवाड़े से उत्तर प्रदेश में महिलाओं के साथ दुष्कर्म की जितनी घटनाएं हो रही हैं,वह वहां की सरकार की भूमिका पर कई सवाल खड़े करती है.
हैवानियत की हद तो तब हो गयी जब उत्तर प्रदेश के बदायूं में दो बहनों के साथ दुष्कर्म करने के बाद उनके शव को गांव के ही एक पेड़ से लटका दिया गया था. इस घटना के बाद प्रदेश में दुष्कर्म की घटनाओं की बाढ़ सी आ गयी. बदायूं के बाद मुजफ्फरनगर, मीरापुर,बहराइच, मुरादाबाद सहित कई इलाकों में दुष्कर्म की घटनाएं सामने आयीं. इन घटनाओं के बाद प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे.
इसी बीच प्रदेश में तीन भाजपा नेताओं की भी हत्या कर दी गयी. इन घटनाओं के बाद उत्तर प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल बसपा की सुप्रीमो मायावती ने प्रदेश में गिरती कानून व्यवस्था को लेकर अखिलेश सरकार को बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है. उत्तर प्रदेश में लगातार हो रही दुष्कर्म की घटनाओं से केंद्र भी चिंतित है और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने प्रदेश के डीजीपी आनंद लाल बनर्जी को तलब किया. उसके बाद प्रधानमंत्री ने प्रदेश की स्थिति की जानकारी के लिए मुख्यमंत्री को बुलाया. हालांकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है कि प्रदेश में ऐसी कोई घटना नहीं हुई, जिसको लेकर इतना बवाल मचाया जाये और उनकी सरकार को बर्खास्त किया जाये.
अखिलेश का कहना है कि प्रदेश में जिस तरह की आपराधिक घटनाएं हुईं या महिलाओं के साथ जो अन्याय हुआ, वैसी घटनाएं अन्य प्रदेशों में भी हो रही हैं. प्रदेश के डीजीपी का भी कहना है कि दुष्कर्म की ऐसी घटनाएं आम हैं. इन तमाम दावों-प्रतिदावों के बीच यह सवाल लाजिमी है कि क्या उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए? लेकिन यहां यह सवाल भी उठता है कि क्या राष्ट्रपति शासन में दुष्कर्म की घटनाएं नहीं रूक सकती, तो फिर एक निर्वाचित सरकार की बलि क्यों दी जाये?
आखिर क्यों होता है बलात्कार
इन तमाम सवालों के बीच एक सवाल और उठता है कि आखिर महिलाएं क्यों दुष्कर्म की शिकार होती हैं? इस पर बड़ी बहस छिड़ जाती है. कोई यह कहता नजर आता है कि हमारा समाज पश्चिमी सभ्यता से इस कदर प्रभावित है कि वह महिलाओं को भोग्या समझ कर उनके साथ दुष्कर्म करता है. लेकिन यहां ध्यान वाली बात यह है कि बलात्कार हमारे समाज में आज नहीं हो रहे हैं, देश में कई ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकीं हैं, जहां पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव का कोई असर नजर नहीं आता है.
1973 में मुंबई में एक नर्स अरुणा शानबाग के साथ जिस बर्बरता के साथ अस्पताल के वार्ड ब्वॉय ने रेप किया, वह मानव समाज पर कलंक के समान है. उस दरिंदे ने कुत्ते के चेन से अरुणा के गले को बांधकर रखा था. उसके इस कृत्य के कारण अरुणा आज भी कोमा में है. महाराष्ट्र के ही चंद्रपुर जिले में 1972 में मथुरा नाम की एक नाबालिग लड़की के साथ दो पुलिसकर्मियों ने थाने में बलात्कार किया था. वर्ष 2012 में दिल्ली में चलती बस में जिस प्रकार एक युवती के साथ बलात्कार किया और जिस तरह से उसकी हत्या की कोशिश की गयी, वह कई सवाल खड़े करती है. इसमें कोई दो राय नहीं है हमारे देश में बलात्कार की घटनाएं आम हैं और यह भी एक कटु सच है कि बलात्कार की जितनी घटनाएं रोज होती हैं, उनमें से पचास प्रतिशत भी प्रकाशित नहीं हो पातीं.
कैसी रूकेगी दुष्कर्म की घटनाएं
सरकारें महिलाओं को सुरक्षा देने की बात करती हैं, कई कठोर कानून भी महिलाओं को सुरक्षित करने के लिए बनाये गये हैं, बावजूद इसके बलात्कार की घटनाएं लगातार हो रहीं हैं आखिर क्यों? इस सवाल का जवाब अगर हम तलाशने की कोशिश करें, तो यह पायेंगे कि वैसी घटनाएं जिन्हें विशुद्ध रूप से बलात्कार की संज्ञा दी जा सकती है, उसके पीछे पितृसत्तामक समाज की सोच काम करती है.
जहां महिलाएं सिर्फ भोग्या हैं. उनका शरीर पुरुषों के लिए मनोरंजन की सामग्री है, जिसे इस्तेमाल करके फेंक देना उनकी फितरत. जब तक यह सोच बदलेगी नहीं दिल्ली और बदायूं जैसी घटनाएं रूकेंगी नहीं. इसके लिए सबसे जरूरी है कि महिलाएं खुद को सशक्त करें, जब तक वे खुद को मजबूत नहीं करेंगी, उनके शरीर का दोहन होता रहेगा. साथ ही हमें इस मानसिकता में भी बदलाव लानी होगी कि बलात्कार के बाद जीवन समाप्त हो जाता है.
बलात्कार एक ऐसा अपराध है, जिसके लिए महिलाएं कहीं से भी दोषी नहीं है. जहां तक बात किशोरियों या बच्चियों के साथ होने वाली दुष्कर्म की है, तो इसके लिए हमें जागरूक होना होगा. साथ ही सरकार को भी प्रयास करना होगा कि वह एक ऐसे समाज का निर्माण करवाये, जहां महिलाएं सुरक्षित हों. संभवत: इन प्रयासों से बलात्कार की घटनाओं पर कुछ हद तक लगाम कसी जा सके?