17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नेहरू विजनरी नेता थे मोदी अच्छे मैनेजर हैं

देश के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में सफलता के बाद अपने अलग-अलग संबोधनों में कई दफा यह बात कही है. दूर दृष्टि, काम करने का जज्बा और भारत निर्माण का यह उत्साह.. देश ने ऐसा ही उत्साह बल्कि इससे कहीं ज्यादा उमंग तब देखा था जब देश को आजादी मिली थी. पहले […]

देश के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में सफलता के बाद अपने अलग-अलग संबोधनों में कई दफा यह बात कही है. दूर दृष्टि, काम करने का जज्बा और भारत निर्माण का यह उत्साह.. देश ने ऐसा ही उत्साह बल्कि इससे कहीं ज्यादा उमंग तब देखा था जब देश को आजादी मिली थी. पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश के संतुलित विकास का खाका खींचा था. अब तक दूसरी वजहों से चर्चित नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान और जीत के बाद अपने उद्बोधनों को विकास और भारत निर्माण तक केंद्रित रखा है. गुजरात विधानसभा में विदाई के दौरान मोदी कमोबेश इस बात की पुष्टि करते नजर आते हैं, वे कहते हैं- आजादी के बाद देश में बड़े पैमाने पर संस्थानों का निर्माण हुआ था, लेकिन हाल के दिनों में वह काम रुक गया है. उनके बयान का आशय स्पष्ट है. वे फिर से वही माहौल लाने की बात कर रहे हैं, जो नेहरू ने आजादी के बाद शुरू किया था.

हालांकि नरेंद्र मोदी आरएसएस से हैं, इसलिए उनके प्रधानमंत्री बनने से बहुत से लोगों के मन में आशंकाएं भी हैं, लेकिन हमें इंतजार करना चाहिए कि मोदी क्या करते हैं. फिलहाल मोदी ने जो काम गुजरात में किया है वह कुशलता के साथ किया है. एक मैनेजर के रूप में मोदी बहुत अच्छे हैं, जबकि पंडित नेहरू विजनरी थे. यह दोनों प्रधानमंत्रियों में मूलभूत अंतर है.नेहरू सैद्धांतिक रूप से मजबूत नेता थे, जबकि नरेंद्र मोदी कार्ययोजना को लागू करने में बेहतर रहे हैं.

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने चुनौतियां अलग-अलग हैं. तब पंडित नेहरू को देश निर्माण करना था, जबकि आज के प्रधानमंत्री को देश को आगे ले जाना है. हालांकि, जिस वक्त नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने यानी 1947 में और जिस वक्त नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं यानी अब 2014 में यदि कोई समानता नजर आ रही है, तो वह है सेंस ऑफ पॉसिबिलिटीज. उस वक्त भी देश के लोगों को प्रधानमंत्री से ढेर सारी आशाएं थीं और आज भी लोगों को नये प्रधानमंत्री से बहुत उम्मीदें हैं. पंडित नेहरू को देश का निर्माण करना था.आजादी से पहले कांग्रेस पार्टी एक किस्म की मूवमेंट थी. यह पार्टी फ्रीडम मूवमेंट से बनी थी. आजादी के बाद एक बड़ी चुनौती थी देश को टूटने से बचाने की. पंडित नेहरू, सरदार पटेल आदि ने इसके लिए बड़ी कोशिशें कीं. नेहरू एक सेक्युलर देश बनाना चाहते थे. यह सबसे बड़ा चैलेंज था. तब बहुत से लोग कहते थे नेहरू के बाद तो बहुत से राज्य अपनी अलग राह पकड़ लेंगे. तमिलनाडु एक नया देश बन जायेगा. ऐसी बातों के बीच देश को एकजुट बनाये रखना बहुत बड़ी चुनौती थी, जिसका सफलतापूर्वक सामना करना नेहरू की बहुत बड़ी कामयाबी रही. यानी नेहरू की बहुत बड़ी अचीवमेंट थी सेकुलरिज्म. उन्होंने देश को हिंदू राष्ट्र नहीं बनने दिया. आज मोदी का जो नारा है- सबका साथ सबका विकास, सही मायने में उसे नेहरू ने आगे बढ़ाया था.

हालांकि, उस वक्त नेहरू ने विकास के लिए जिस तरह से समाजवाद की राह पकड़ी, अब मैं मानता हूं कि वह गलत फैसला था, लेकिन उस वक्त लोगों को पता नहीं था कि इस राह पर चल कर आगे क्या नुकसान होगा. तब सोवियत संघ का उदाहरण सामने था, जिसके विरोधाभास सोवियत संघ के विघटन के साथ सामने आये. चीन में माओ के नेतृत्व में जो कुछ हुआ, उसका पता नहीं था उस वक्त. इस तरह मुङो लगता है कि तात्कालिक परिस्थितियों में नेहरू का देश के निर्माण में योगदान अतुलनीय रहा है. नेहरू की बड़ी उपलब्धि यह भी थी कि जो हमारी इंस्टीटय़ूशंस (संस्थाएं) हैं- पार्लियामेंट, ज्यूडिशियरी, पुलिस, ब्यूरोक्रेसी आदि, जो हमें अंगरेजों से मिली थीं- उसे उन्होंने मजबूत कर दिया, तोड़ा नहीं. इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लागू कर इन संस्थाओं को तोड़ने की कोशिश जरूर की. नेहरू ने गलती यह की उन्होंने पब्लिक सेक्टर पर जोर देकर देश में लाइसेंस-परमिट राज बना दिया. उनके समय में देश में जो औद्योगीकरण हुआ था, वह बहुत ही अकुशल था.

पुनर्निर्माण की दिशा में देश को पंडित नेहरू की देन

हीराकुंड डैम

आजाद हिन्दुस्तान का पहला बड़ा प्रोजेक्ट है. इसकी नींव जवाहरलाल नेहरू ने 12 अप्रैल 1948 को रखी थी. 1953 में डैम का निर्माण कार्य पूरा हो गया था.

यह संभवत: एशिया का सबसे बड़ा डैम है जिससे एक साथ सिंचाई और बिजली उत्पादन दोनों होते है. डैम 1956 में ही काम करने लगा था, लेकिन इसका उद्घाटन जवाहरलाल ने 13 जनवरी 1957 को किया था.

भाखरा डैम

हिमाचल प्रदेश में स्थित भाखरा डैम का निर्माण कार्य 1948 में शुरू हो गया था लेकिन कुछ वजहों से आगे नहीं बढ़ पाया. 18 नवंबर 1955 को जवाहरलाल नेहरू ने इसकी आधारशिला रखी थी. इसका निर्माण कार्य 1963 में पूरा हो गया था. 1963 के अक्टूबर में इस डैम को राष्ट्र को समíपत करते हुए नेहरू ने कहा था – इस डैम को मानव जाति के कल्याण के लिए बनाया गया है, इसलिए इसकी पूजा की जानी चाहिए. आप इसे मंदिर, मसजिद या गुरुद्वारा भी कह सकते हैं.

नागाजरुना सागर डैम

आंध्र प्रदेश के कृष्णा नदी पर स्थित इस डैम की नींव नेहरू ने 10 दिसंबर 1955 को रखी थी. बारह वर्षों बाद 1967 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस डैम का उद्घाटन किया था. इस डैम से भी बिजली के साथ-साथ सिचाई के लिए पानी मिलाता है. आंध्र प्रदेश के चार जिलों को इस डैम से सिचाई के लिए पानी मिलता है और नैशनल ग्रिड को बिजली सप्लाई की जाती है.

भिलाई स्टील प्लांट

यह देश का पहला प्रमुख स्टील उत्पादन करने वाला संयंत्र है. देश में रेल ट्रैक सप्लाई करने वाला यह एकमात्र स्टील प्लांट है. औद्योगिकरण में स्टील के महत्व को समझते हुए नेहरू ने पूर्व सोवियत संघ के सहयोग से इस प्लांट का निर्माण करवाया था. इस संयंत्र का उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 4 फरवरी 1959 को किया था. इस प्लांट की शुरुआती क्षमता एक मीलियन टन स्टील की थी. इस प्लांट को ग्यारह बार प्रधानमंत्री पुरस्कार भी मिला है.

राउरकेला स्टील प्लांट

इस स्टील प्लांट को जर्मनी के सहयोग से बनाया गया था. यह एशिया का पहला प्लांट है जहां ऊर्जा की कम खपत करने वाली तकनीक से स्टील का उत्पादन हुआ. इस प्लांट का उद्घाटन 3 फरवरी 1959 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था. इस प्लांट के साथ एक खाद कारखाना भी है जो नाइट्रोजनस खाद बनाती है. यह सेल का पहला एकीकृत स्टील प्लांट है.

आइआइटी

तकनीकी शिक्षा के लिए नेहरू के मन में राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों को बनाने का विचार आया. सबसे पहला आइआइटी 1950 में खड़गपुर में बना. 15 सितंबर 1956 को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेकAोलॉजी बिल पारित करते हुए इसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा दिया. 1956 में इसके पहले दीक्षांत समारोह में भी जवाहरलाल नेहरू मौजूद थे. इसके बाद मुंबई (1958), चेन्नई (1959), कानपुर (1959) और दिल्ली (1961) में आइआइटी की स्थापना हुई.

योजना आयोग

यह कोई संवैधानिक संस्था नहीं है बल्कि भारत सरकार का ही एक अंग है. योजना आयोग का निर्माण संविधान के अनुच्छेद 39 के तहत किया गया है. यह सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है. इसका गठन 15 मार्च 1950 को हुआ था और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इसके अध्यक्ष थे. और पहली पंचवर्षीय योजना 1951 में शुरू हुई थी. योजना आयोग के पहले अध्यक्ष थे पीसी महालोनोबिस.

एटॉमिक एनर्जी एस्टैबलिशमेंट

परमाणु ऊर्जा और तकनीक के महत्व को समझते हुए जवाहरलाल नेहरू ने 3 जनवरी 1954 को इसकी स्थापना ट्रॉम्बे में की. 1966 में होमी जहांगीर भाभा के निधन हुआ. इसके बाद 22 जनवरी 1967 को इसका नाम भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर रखा गया. इसका काम परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए अनुसंधान करना है. भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर में परमाणु कचरे से सुरक्षित तरीके से निजात पाने पर भी रिसर्च होता है.

गुरचरन दास

जाने-माने अर्थशास्‍त्री एवं स्तंभकार

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें