नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि ब्रिटेन, कई लातिन अमेरिकी देशों और ऑस्ट्रेलियाई राज्यों से मृत्युदंड खत्म किया जाना भारत के कानून से इसे खत्म किये जाने का कोई आधार नहीं है.
निर्भया मामले में चार दोषियों में से मौत की सजा के खिलाफ तीन की पुनर्विचार याचिका खारिज करनेवाली शीर्ष अदालत ने कहा कि जब तक दंड संहिता में मृत्युदंड का प्रावधान है, तब तक उचित मामलों में सजा-ए-मौत देने में अदालतों को कोई गैर कानूनी काम करने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति आर भानुमति तथा न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने शीर्ष अदालत की संविधान पीठ के एक फैसले का हवाला दिया और कहा कि दंड संहिता में मृत्युदंड की मौजूदगी, संवैधानिक प्रावधानों और अंतरराष्ट्रीय नियमों पर अच्छी तरह से विचार करने के बाद यह पाया गया कि मृत्युदंड ‘संवैधानिक रूप से वैध’ है.
शीर्ष अदालत ने यह बात तब कही जब दोषियों विनय शर्मा और पवन कुमार गुप्ता की ओर से पेश अधिवक्ता एपी सिंह ने भारत में मृत्युदंड खत्म किये जाने को लेकर चर्चा की. पीठ ने विनय और पवन की पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘(एपी) सिंह का यह कहना कि ब्रिटिश संसद ने 1966 में मौत की सजा खत्म कर दी थी और कई लातिन अमेरिकी देशों तथा ऑस्ट्रेलियाई राज्यों ने भी मृत्युदंड खत्म कर दिया है, यह हमारे देश की विधान पुस्तक से मृत्युदंड खत्म करने का कोई आधार नहीं है.’ शीर्ष अदालत ने इन दो दोषियों के अतिरिक्त एक अन्य दोषी मुकेश की पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी.