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कर्नाटक के ”दंगल” में कांग्रेस के ये तीन नेता साबित हुए दिग्गज

नयी दिल्ली : कर्नाटक के दंगल में शनिवार को जब येदियुरप्पा की भाजपा सरकार महज दो दिनों में ही गिर गयी तो कांग्रेस कैंप में बस 3 राजनेताओं की चर्चा होने लगी. ”जी हां” ये तीन नेता हैं अभिषेक मनु सिंघवी, गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत जिन्होंने कर्नाटक की सत्ता में काबिज होने के […]

नयी दिल्ली : कर्नाटक के दंगल में शनिवार को जब येदियुरप्पा की भाजपा सरकार महज दो दिनों में ही गिर गयी तो कांग्रेस कैंप में बस 3 राजनेताओं की चर्चा होने लगी. ”जी हां” ये तीन नेता हैं अभिषेक मनु सिंघवी, गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत जिन्होंने कर्नाटक की सत्ता में काबिज होने के लिए आक्रामक रुख अख्तियार कर चुकी भाजपा को रोका. यही नहीं इन तीनों ने चुनावी लड़ाई में पिछड़ने के बावजूद कांग्रेस को आगे कर दिया.

यदि आपको याद हो तो 15 मई को कर्नाटक रिजल्ट के रुझान आने शुरू होने के साथ ही कांग्रेस नेतृत्व ने गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत को दिल्ली से रवाना कर दिया था. इन नेताओं को नेतृत्व ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में उन्हें मोर्चा संभाल कर भाजपा को किसी भी तरह सरकार बनाने से रोकना होगा. जैसे ही त्रिशंकु विधानसभा की तस्वीर साफ हुई इन दोनों नेताओं ने बिन समय गंवाए पूर्व पीएम देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी को मुख्‍यमंत्री पद का ऑफर देते हुए जेडीएस के साथ चुनाव बाद गठबंधन का ऐलान कर दिया.

ऐसा उस वक्त हुआ जबकि भाजपा बहुमत के जादुई आंकड़े से महज 7 सीटें दूर थीं. कांग्रेस के ये दोनों दिग्गज यहीं नहीं रुके. उन्होंने सूबे के राज्यपाल और भाजपा के खिलाफ ‘मर्डर ऑफ डिमॉक्रेसी’ कैंपेन चलाकर पर्सेप्शन गेम का भी नेतृत्व करने का काम किया. गुलाम नबी और गहलोत के ऐक्टिव मोड ने भगवा पार्टी पर लगातार दबाव बनाया. इतना सब करने के दौरान कांग्रेस की टॉप लीडरशिप के इन दो नामों ने अपने विधायकों को भाजपा के संपर्क में आकर टूटने से भी बचाया. इन सबमें कर्नाटक कांग्रेस के कद्दावर नेता डीके शिवकुमार ने एक बार फिर अपनी ताकत दिखायी. इगल्टन रिजॉर्ट में जैसे उन्होंने 2017 में गुजरात राज्यसभा के दौरान वहां के कांग्रेसी विधायकों को सुरक्षित रखने का काम किया था, ठीक वही भूमिका इस बार उन्होंने कर्नाटक के जंग में भी दिखायी.

हालांकि इनसब के बीच यहां सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता जिसके हस्तक्षेप के कारण येदियुरप्पा सरकार को बहुमत साबित करने के लिए मिला वक्त कम हुआ और पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता के दायरे में रखी गयी. इस संदर्भ में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और ऐडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी की भूमिका अहम रही और वह पार्टी के लिए तीसरे दिग्गज साबित हुए. वह सिंघवी ही थे जिन्होंने कर्नाटक के राज्यपाल के फैसले के खिलाफ आधीरात सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

सिंघवी ने न्यायपालिका की मदद उस परिस्थिति में प्राप्त की जब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ अवमानना प्रस्ताव लाकर कांग्रेस अपनी काफी किरकिरी करा चुकी थी. सिंघवी ने न केवल केस लड़ने का काम किया बल्कि अपनी बुद्धि से सुप्रीम कोर्ट को इस राजनीतिक मामले में हस्तक्षेप के लिए राजी करने में भी सफलता प्राप्त की. यहां चर्चा कर दें कि पोस्ट पोल अलायंस के रूप में कांग्रेस और जेडीएस प्लस ने बहुमत होने का दावा किया था लेकिन राज्यपाल ने सबसे बड़े दल के नेता के रूप में भाजपा के येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. तीनों पार्टियों के पास क्रमश: 78, 38 और 104 सीटें हैं.

राज्यपाल ने येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का वक्त भी दे दिया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करके शनिवार को बहुमत हसिल करने को कहा. गुरुवार को येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण से पहले कांग्रेस ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए शनिवार शाम 4 बजे फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दे डाला. भाजपा की तरफ से अधिक समय की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. जानकारों की मानें तो यह उन बड़ी वजहों में से एक रहा जिसकी वजह से भाजपा कर्नाटक में नंबर गेम में पिछे रह गयी.

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