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वापस आजा, रहिबो संग : अपनाइयत के गीत, भटके युवकों को लौटा लाने की कोशिश

रायपुर : छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों को स्थानीय भाषा में लिखे अपनाइयत भरे गीतों के जरिये हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में आने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. क्षेत्र के कोंडागांव जिले में जारी गीतों का एलबम न सिर्फ आदिवासियों की पीड़ा व्यक्त करता है, बल्कि बड़े मार्मिक अंदाज […]

रायपुर : छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों को स्थानीय भाषा में लिखे अपनाइयत भरे गीतों के जरिये हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में आने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. क्षेत्र के कोंडागांव जिले में जारी गीतों का एलबम न सिर्फ आदिवासियों की पीड़ा व्यक्त करता है, बल्कि बड़े मार्मिक अंदाज में ‘भाई’ को घर वापस भी बुलाता है. मजेदार तथ्य यह है कि पुलिस द्वारा जारी इस अलबम में जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (नक्सल अभियान) महेश्वर नाग ने अपनी आवाज दी है.

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इस अलबम का विमोचन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने किया. ‘उठो उठो उठो होगे बेर, चलो बनाबो सुंदर देस, हरियर हरियर खेत, मन ल लुभाए हमर देस वंदे मातरम छोड़के कैसन, तै हा गाये लाल सलाम, क्रांतिकारी कहिके कैसन, देश विद्रोही कमाये नाम वापस आजा, रहिबो संग म, भाई भाई एक समान.’ छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कोंडागांव जिले से गुजरें, तो इसी तरह के गीतों के बोल आपको बरबस आकर्षित करेंगे. छत्तीसगढ़ी में गाये इस गाने का अर्थ है: ‘उठो, उठो सुबह होगयी है. हम सब मिलकर एक सुंदर देश बनायें. हमारी धरती हरियाली ओढ़े हुए है. हमारा देश मन को मोहने वाला है.’

गीत में नक्सलियों से बंदूक छोड़ने का आग्रह करते हुए कहा गया है कि वंदेमातरम छोड़कर तुमने अचानक लाल सलाम गाना शुरू कर दिया है. खुद को क्रांतिकारी कहते हो, लेकिन लोग तुम्हें देशद्रोही के रूप में जानते हैं. गीत में कहा गया है कि अब भी देर नहीं हुई है. वापस आ जाओ, सभी साथ में भाई-भाई की तरह रहेंगे. यह गाना उस एलबम का हिस्सा है, जिसे कोंडागांव जिले की पुलिस ने नवा बिहान के नाम से जारी किया है. छत्तीसगढ़ी शब्द नवा बिहान का मतलब नया सवेरा होता है. इस एलबम में कुल पांच गाने हैं, जिसमें दो गाने छत्तीसगढ़ी में तथा तीन स्थानीय बोली हल्बी में हैं. गौर करने लायक बात है कि इस एलबम में जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (नक्सल अभियान) महेश्वर नाग ने अपनी आवाज दी है.

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एलबम के तीन गाने महेश्वर नाग ने गाये हैं और दो स्थानीय गायक आशु मधुराज ने. इस एलबम में उठो होगे बेर नवा बिहान, सुना सुना हो, जय छत्तीसगढ़, सुना दादा सुना दीदी और जय जोहार जैसे बोल वाले गाने हैं. इन गानों में बस्तर में अभावों में जीने वाले आदिवासियों का दर्द है. वहां के आदिवासी चाहते हैं कि उनके परिजन नक्सलियों का साथ नहीं दें. मुठभेड़ में मारे गये नक्सलियों के परिजनों का दुख भी इसमें शामिल है और वे बार-बार अपने बेटे-बेटियों से कहते हैं कि वापस आ जाओ, अभी भी देरी नहीं हुई है.

इन गानों को एक सूत्र में पिरोने को लेकर कोंडागांव जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक महेश्वर नाग कहते हैं कि नक्सलियों का चेतना नाट्य मंच गांव-गांव जाकर नक्सलियों का प्रचार प्रसार करता है और इसके माध्यम से नक्सली सरकार के विरुद्ध लोगों को भड़काते हैं. स्वाभाविक है कि ऐसे में कुछ भोले-भाले आदिवासी उनकी बातों में आ जाते हैं और हथियार थाम लेते हैं. चेतना नाट्य मंच के इस प्रभाव को समाप्त करने के लिए जिला पुलिस ने तय किया कि क्यों न ऐसे गीतों की रचना की जाये, जो सुनने में भी अच्छा लगे और यहां के आदिवासियों के घावों पर मरहम का काम करे. साथ ही भटके हुए लोगों को वापस मुख्यधारा में जोड़ने की कोशिश भी हो.

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नाग बताते हैं कि इस विचार के साथ ही एलबम बनाने की कोशिश शुरू हुई और एक अच्छे गीतकार ने यहां आमतौर पर समझी जाने वाली भाषाओं छत्तीसगढ़ी और हल्बी में गाने लिखने की हामी भर दी. लेकिन, उसने शर्त रख दी कि एलबम के कवर में उसका नाम न हो. इसलिए उसका काल्पनिक नाम रूप कोयतूर रख दिया गया. बाद में हेमंत और रवींद्रकांत ने कर्णप्रिय संगीत की रचना की.

पुलिस अधिकारी बताते हैं कि पिछले दिनों लोक सुराज अभियान के दौरान क्षेत्र में मुख्यमंत्री रमन सिंह का आगमन हुआ और उन्होंने ही इस एलबम का विमोचन किया. विमोचन के कुछ देर बाद ही यह गाने क्षेत्र के सभी पुलिसकर्मियों के मोबाइल में लोड कर दियेगये. वह बताते हैं कि अब तो यह सुखद अनुभव होता है कि जब वह और क्षेत्र के जवान नक्सल विरोधी अभियान में निकलते हैं, तब कुछ गांवों में, शादियों में इन गानों को आसानी से सुना जा सकता है. क्षेत्र के आदिवासी युवाओं ने इन गानों को अपने मोबाइल फोन का रिंग टोन भी बना लिया है.

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नाग कहते हैं कि उनका उद्देश्य इन गानों की लोकप्रियता नहीं, बल्कि लोगों तक खासकर नक्सलियों तक संदेश पहुंचाना है कि अब घर आ जाओ. यदि इससे प्रेरित होकर एक भी नक्सली मुख्यधारा में शामिल होता है, तो वह अपने उद्देश्य में सफल हो जायेंगे. बस्तर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक विवेकानंद सिन्हा कहते हैं कि नक्सली अपने आंदोलन का प्रचार गीत नाटकों के माध्यम से करते हैं और यह एलबम एक तरह से उनका जवाब है.

हालांकि, अब क्षेत्र में नक्सली गतिविधियों से ऊब रहे युवाओं के लिए गानों के साथ नाटक और अन्य विद्याओं का भी सहारा लिया जा रहा है. छत्तीसगढ़ में नक्सल मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर कहते हैं कि यह अच्छा प्रयास है कि किसी न किसी माध्यम से नक्सलियों से कहा जा रहा है कि वे हथियार छोड़ें और शांति की दिशा में आगे बढ़ें. लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है वहां सामाजिक आर्थिक खाई को पाटना. इसके लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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