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चंद्रबाबू नायडू आखिर सबसे दोस्ती और सबसे दूरी की नीति पर क्यों चल रहे हैं?

नयी दिल्ली: आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मंगलवार को संसद के सेंट्रल हॉल में एनसीपी चीफ शरद पवार सहित कई दूसरे नेताओंसे मुलाकात की. उनकी इन तसवीरों पर गौर किया गया अौर इसे फेडरल फ्रंटके अनुकूल माना गया. फिर बुधवार सुबह नायडू ने आम आदमी पार्टी के मुखिया व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल […]

नयी दिल्ली: आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मंगलवार को संसद के सेंट्रल हॉल में एनसीपी चीफ शरद पवार सहित कई दूसरे नेताओंसे मुलाकात की. उनकी इन तसवीरों पर गौर किया गया अौर इसे फेडरल फ्रंटके अनुकूल माना गया. फिर बुधवार सुबह नायडू ने आम आदमी पार्टी के मुखिया व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भेंट की.दोनों नेताओं की यह मुलाकत आंध्र भवन मेंहुई. इसमें भी नये राजनीतिक समीकरण बनने की संभावनाएं तलाशे जाने लगे. लेकिन,चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के अंदर से ही मीडिया मेंयह खबर आयी है कि वे फिलहाल किसी मोर्चे या संयुक्त विपक्ष से जुड़ने के मूड में नहीं हैं.

विकल्प खुला रखने की नीति

चंद्रबाबू नायडूदेश के सबसे तेज-तर्रार नेताओं मेंएक माने जाते हैं और अपने लिए विकल्प कभी बंद नहीं होने देते. वे संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान उसके संयोजक थे और राष्ट्रीय राजनीति में उस दौर में उनका महत्वपूर्ण हस्तक्षेप था, लेकिन उसके बाद वे अटल सरकार के दौरान भी अपनी प्रासंगिकताबनाये रखने में कामयाब रहे. उनके लगभग सभी दलों से अच्छे राजनीतिक ताल्लुकात रहे हैं.

नायडूके एक करीबी नेता ने कहा है, ‘‘ नायडू फिलहाल कुछ फैसला करने के मूड में नहीं हैं. वह लोकसभा चुनाव के नतीजे का इंतजार करेंगे और तब अपने कदम पर निर्णय लेंगे. फिलहाल वह बस आंध्रप्रदेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं.’

दरअसल, चंद्रबाबू नायडू कीपार्टी नेसंसद में मोदी सरकार के खिलाफ आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा देनेकी मांग पर अविश्वास प्रस्ताव लाने का कई दफा प्रयास किया. उनकी पार्टी के इस प्रयास को स्पीकरसुमित्रा महाजन ने मंजूरी नहीं दी और इसकी एकअहम वजहटीडीपी व आंध्र की दूसरी अहम पार्टी वाइएसआर कांग्रेस का हंगामा ही बना. स्पीकर ने व्यवस्था नहीं होने की बात कह कर उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

दरअसल, चंद्रबाबूऔर उनकी पार्टी यह दिखाना चाहते हैं कि भारतीयजनता पार्टीने आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देकर अन्याय किया है और इस होड़ मेंजगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाइएसआर कांग्रेस भी शामिल है. नायडू ने तृणमूल कांग्रेस, राकांपा, द्रमुक, अन्नाद्रमुक, सपा और बसपा के नेताओं से इस मुद्दे पर समर्थन के लिए बात की है और पूरा प्रयास करते दिख रहे हैं.


चुनाव की चिंता

चंद्रबाबूनायडू का यह प्रयास साल भर बाद होने वाले लोकसभा चुनाव व विधानसभा में उनके लिए कारगर साबित होगा. दोनों चुनाव एक ही समय है. इस चुनावके लिए नायडू ने तैयारी शुरू कर दी है और भाजपा से दूर जाना जमीन बनाने के लिए उठायागया पहला जरूरी कदम था.भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के जरिये जिसतरह राज्यों में पावं पसारे हैं वह बात भी चंद्रबाबू को परेशान करने वाली है. इसलिए चुनावी साल में प्रवेश करनेके साथ उन्होंनेक्षेत्रीय अस्मिता व राज्य हित पर पर भाजपा से दूरी बढ़ा ली, लेकिनचुनाव बाद अपने अनुकूलकेंद्र में किसी के साथ जाने के विकल्प उन्होंने अब भी खुले रखे हैं.

फिलहाल भाजपा से अलग होने के बाद जिस तरह चंद्रबाबूनायडू सभी दलों के नेताओं से मिल रहे हैं और दूसरी ओर उनकी पार्टी के नेता ऑफ द रिकार्ड बयान दे रहे हैं, उससे यह साफ है कि वे सबसे दोस्ती और सबसे दूरीकी नीति पर चल रहे हैं.

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