कोडरमा. 75वें गोपाष्टमी पूजा के अवसर पर श्री कोडरमा गोशाला समिति की ओर से रविवार की रात बाईपास रोड स्थित शिव वाटिका में हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसमें देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे कवियों ने अपनी प्रस्तुति से लोगों को खूब लोटपोट किया. देर रात तक आयोजन स्थल काव्य के मधुर स्वर, श्रोताओं की गूंजती वाह-वाह और भावों से भीगी आंखों से अलग रूप में दिखा. कवियों ने शब्दों का ऐसा महाकुंभ सजाया कि साहित्य प्रेमी मंत्रमुग्ध हो उठे. पं अशोक नागर (मध्यप्रदेश) ने मधुरता ही मानवता का सार है’ बोल मीठे न हों तो हिचकियां नहीं आतीं…कीमती मोबाइल में घंटियां नहीं आतीं, घर बड़ा हो या छोटा, गर मिठास न हो, तो आदमी क्या आये. चिट्ठियां भी नहीं आती के माध्यम से सभी को आनंदित किया. उन्होंने हास्य और जीवन दर्शन से भरे अपने काव्य से श्रोताओं का दिल जीत लिया. नागर ने कहा कि इंसान की असली पहचान उसके शब्दों की मिठास से होती है. रिश्तों की डोर वाणी की कोमलता से ही मजबूत रहती है, वरना जीवन का वैभव भी फीका पड़ जाता है. वहीं पवन बांके बिहारी कोलकाता ने निगरानी तय करो फिजाओं की, फिर जरूरत नहीं होगी दबाव की, चराग जलता रहे अनवरत, नजर न लगे बदचलन हवाओं की..के माध्यम से अपनी रचना से समाज को एक सशक्त संदेश दिया. मुकेश मालवा (इंदौर) ने समुद्र मंथन से कपिला कामधेनु का उद्भव हुआ, सृष्टि में ‘मां’ शब्द का गान गो माता से अभिनव हुआ, सूर्यवंशी रघुकुल में धनुरक्षक राम मिले, नंद के घर घनश्याम मिले, न यूरोप, न अमेरिका, न श्रीलंका, ढाका या वर्मा में कर्दम ऋषि का दरबार मंदिर कोडरमा में है..के माध्यम से भारतीय संस्कृति, धर्म और आस्था की पताका ऊंची की. उन्होंने गोमाता, मर्यादा पुरुषोत्तम राम और श्रीकृष्ण का उल्लेख करते हुए यह बताया कि आध्यात्मिकता की जड़ें इसी भूमि में हैं. कुंवर जावेद कोटा राजस्थान ने जो उग्रवाद को जिहाद कहता है, वह मुसलमान हो नहीं सकता के माध्यम से अपने तेवरदार शब्दों में बताया कि सच्चा धर्म वह है जो प्रेम, करुणा और इंसानियत सिखाये, जो व्यक्ति हिंसा को धर्म का नाम देता है, वह न किसी मजहब का रह सकता है, न खुद का. उनके शब्दों ने सभागार में सन्नाटा और फिर लंबी तालियां बिखेरी. श्रद्धा सौऱ्य नागपुर ने सुनो के कैसी जली पद्मिनी, शील बचाने के खातिर, तुमने सारी शर्म बेच दी, रिल बनाने के खातिर के माध्यम से अपने प्रखर शब्दों में आधुनिक दौर की खोखली मानसिकता पर प्रहार किया. उन्होंने कहा कि जिस समाज ने कभी पद्मिनी जैसी नारी के त्याग को नमन किया, वही आज लज्जा को प्रदर्शन का साधन बना चुका है यह स्त्री अस्मिता के लिए सबसे बड़ा खतरा है. रजनी सिंह अवनी (दिल्ली) ने कल तक घर के भीतर थी, अब कदम बढ़ाना सीख गयी. लाख रुकावटें आयी, फिर भी आगे जाना सीख गयी. नारी को कमजोर समझना भूल तुम्हारी है, अब वो तो नज़र से भी नज़र मिलाना सीख गई के माध्यम से नारी सशक्तीकरण की लौ जलाये. उन्होंने यह बताया कि स्त्री अब अबला नहीं, वह हर बाधा को पार कर आत्मविश्वास से आगे बढ़ रही है. कवियों ने भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, वंशवाद, प्रेम में पवित्रता, स्वच्छता अभियान और सामाजिक उत्तरदायित्व जैसे विषयों पर भी तीखी, लेकिन संवेदनशील कविताएं प्रस्तुत कीं. कार्यक्रम का मंच संचालन पं. अशोक नागर और संजय अग्रवाल ने किया. परियोजना निदेशक मनोज केडिया एवं संजय अग्रवाल ने आयोजन का संयोजन किया. मौके पर गौशाला समिति के अध्यक्ष प्रदीप केडिया, संरक्षक मकसूदन दारूका, श्याम सुंदर सिंघानिया, सुरेश जैन, महेश दारूका, बिनोद बजाज, ओमप्रकाश खेतान, मनोज केडिया, पप्पू केडिया, प्रदीप खाटुवाला, पवन चौधरी, सज्जन शर्मा, मुरारी बड़गवे, उदय सोनी, अनिल पांडेय, मनीष कपसीमे, सीटी मैनेजर लेमांशु कुमार, दिलीप सिंह, अजय अग्रवाल, डॉ. राजीवकांत पांडेय, रामरतन महर्षि, संजय अग्रवाल, दीपक सिंघानिया, राजेश शर्मा, कैलाश चौधरी, वीरेंद्र यादव, चंद्रशेखर जोशी, अरविंद चौधरी, दिनेश मिश्रा, विद्यापति अस्थाना, अरुण ओझा, प्रदीप भारद्वाज, प्रदीप हिसारिया, अश्विनी मोदी, शशि भूषण प्रसाद, अरुण मोदी, लड्डू पेडिवाल, श्रेया केडिया, सारिका लढ्ढा, शालू चौधरी के अलावा जय सियाराम सत्संग समिति, प्रेरणा शाखा, मारवाड़ी युवा मंच के सदस्य व अन्य गणमान्य मौजूद थे.
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