कोयला नगर दुर्गा मंदिर में गुरुवार को महिलाओं ने धुनुची नृत्य कर मां का आवाहन किया. इस दौरान “ढाक बाजा कासोर बाजा उलू दिये शंख बाजा शारदीय ते मोन नाचे, ढाके ताले कोमोर डोले खुशी ते नाचे मोन…” गीत पर महिलओं ने धुनुची गीत पर ताल मिलाया. नवरात्र में धुनुची नृत्य की खास परंपरा है. धुनुची नृत्य मां दुर्गा को बहुत प्रिय है. कोलकाता से शुरू हुई धुनुची नृत्य की परंपरा आज पूरे देश में निभायी जा रही है. मान्यता है कि देवी इस नृत्य से अत्यंत प्रसन्न होती हैं और साधक की मनोवांछित कार्यों की सिद्धि होती है. कोयलांचल के खास पूजा-पंडालों में भी सप्तमी पूजा की संध्या आरती के बाद धुनुची नृत्य प्रारंभ हो जाता है. सप्तमी से नवमी पूजा तक धुनुची नृत्य मां के दरबार में भक्तों द्वारा किया जाता है.
शक्ति का परिचायक है धुनुची नृत्य
धुनुची नृत्य को शक्ति नृत्य माना जाता है. यह नृत्य मां भवानी की शक्ति और ऊर्जा को बढ़ाने के लिए किया जाता है. पुराणों के अनुसार, महिषासुर बहुत ही बलशाली था. उसे कोई नर या देवता मार नहीं सकते थे, मां भवानी उसका वध करने जाती है. इसलिए मां के भक्त उनकी शक्ति और ऊर्जा को बढ़ाने के लिए धुनुची नृत्य करते हैं. धुनुची में नारियल का बूरादा, हवन सामग्री रखा जाता है. उसी से मां की आरती की जाती है. धुनुची नृत्य सप्तमी से शुरू होता है नवमी तक चलता है.बिना किसी प्रशिक्षण के होता है नृत्य
बंगाल में भी एक बहुत पुरानी परंपरा है, जिसे धुनुची नाच कहा जाता है. यह नवरात्र में दुर्गा पूजा के दौरान किया जाने वाला नृत्य है. दुर्गा पूजा पंडालों में धुनुची नृत्य का नजारा देख आंखे ठहर जाती है. पुरुष-महिला सभी यह नृत्य करते हैं. दोनों हाथों के बीच धुनुची लेकर विभिन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं. धुनुची के साथ नृत्य करने वाली का संतुलन काबिले तारिफ होता है. नृत्य के लिए न तो कोई प्रक्षिक्षण होता है न अभ्यास. ढाक का साथ और हाथों में जलती धुनुची के साथ भक्तजन नृत्य कर मां के चरणों में अपनी भक्ति समर्पित करते हैं.मिट्टी से बना खास पात्र होता है धुनुची
धुनुची मिट्टी से बना खास पात्र होता है. धुनुची में सूखे नारियल का छिलका, कपूर और धूना को रखकर जलाया जाता है. इसके बाद मां का आवाहन किया जाता है. इसे दोनों हाथों में लेकर लेकर श्रद्धालु ढाक की थाप पर नृत्य करते हैं.श्रद्धालुओं ने कहा…
शारदीय नवरात्र आते ही मन उल्लासित हो जाता है. पूरी आस्था व भक्ति के साथ भक्त मां के दरबार पहुंचकर धुनुची नृत्य कर देवी के चरणों में भक्ति समर्पित करते हैं. हम मां से सभी की खुशहाली की कामना करते हैं. – ताप्ति चक्रवर्तीधुनुची नृत्य के बिना मां की भक्ति पूरी नहीं होती. पहले कोलकाता के पूजा पंडालों मैं धुनुची नृत्य का प्रचलन था. बदलते समय के साथ अब सभी पूजा पंडालों में भक्त ढाक की थाप पर धुनुची नृत्य करते है. – शर्मिला बनर्जी
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