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पहले तीन महीनों में थायरॉयड गर्भवती के लिए है खतरनाक

डॉ रागिनी अग्रवाल क्लिनिकल डायरेक्टर, गायनोकोलॉजी डिपार्टमेंट, डब्लू प्रतीक्षा हॉस्पिटल, गुड़गांव, हरियाणा थायरॉयड गले का रोग है, जो हार्मोन के अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाने के कारण होता है. थायरॉयड की समस्या को नियंत्रि‍त करने के लिए जरूरी है सही इलाज और व्यायाम. साथ ही खान-पान पर भी ध्यान देना जरूरी होता है. प्रेग्नेंसी के […]

डॉ रागिनी अग्रवाल
क्लिनिकल डायरेक्टर, गायनोकोलॉजी डिपार्टमेंट, डब्लू प्रतीक्षा हॉस्पिटल, गुड़गांव, हरियाणा
थायरॉयड गले का रोग है, जो हार्मोन के अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाने के कारण होता है. थायरॉयड की समस्या को नियंत्रि‍त करने के लिए जरूरी है सही इलाज और व्यायाम. साथ ही खान-पान पर भी ध्यान देना जरूरी होता है. प्रेग्नेंसी के शुरुआती तीन महीने में थायरॉयड काफी खतरनाक माना जाता है. अकसर प्रेग्नेंसी में थायरॉयड के कारण मोटापा बढ़ जाता है, जिसकी वजह से कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
जिन महिलाओं को थायरॉयड संबंधी समस्या पहले से है, उन्हें गर्भधारण के पहले जांच करा लेनी चाहिए. जरूरत हो, तो गर्भावस्था के हर महीने भी जांच कराते रहना चाहिए. ऐसा करने से गर्भावस्था के शुरुआती दौर में होनेवाली कई परेशानियों को रोका जा सकता है. जांच के अनुसार ही हार्मोन को कंट्रोल करने के लिए दवाई की मात्रा को बढ़ायी या घटायी जा सकती है. इससे जच्चा और बच्चा दोनों को इसके प्रभाव से बचाया जा सकता है.
क्या है थायरॉयड : हमारे गले के बिल्कुल सामने की ओर एक ग्रंथि होती है, जो हमारे शरीर के मेटाबॉल्जिम को नियंत्रित करती है. यहीं से हमारे शरीर में खास तरह के हॉर्मोन टी-3, टी-4 और टीएसएच का स्राव होता है. इसकी वजह से शरीर की सभी कोशिकाएं सही ढंग से काम करती हैं. जो भी भोजन हम खाते हैं यह ग्रंथि उन्हें ऊर्जा में बदलने का काम करती है, लेकिन जब इनकी मात्रा अत्यधिक बढ़ या घट जाती है, तो यह हमारी सेहत पर बुरा असर डालना शुरू कर देती है.
इसके स्राव में कमी और अधिकता का सीधा असर व्यक्ति की भूख, नींद और मनोदशा पर पड़ता है. इसके अलावा यह आपके दिल, मांसपेशियों, हड्डियों और कोलेस्ट्रॉल को भी प्रभावित करती है. पाचन क्रिया पर भी इसका बहुत ज्यादा असर पड़ता है. थायरॉयड बीमारी के दौरान पाचनक्रिया सामान्य से 50 फीसदी कम हो जाती है. इसलिए गर्भवती महिला की हर महीने थायरॉयड की जांच जरूरी है.
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ऐसे करें बचाव
प्रेग्नेंसी में इस तरह की समस्या को नियंत्रित करने के लिए सही समय पर इसका इलाज जरूरी है. अगर महिला को पहले से ही थायरॉयड होने की जानकारी हो, तो उन्हें गर्भधारण करने से पहले तो जांच करानी ही चाहिए. नियमित रूप से दवाओं का सेवन करना चाहिए, जिससे होनेवाले बच्चे पर थायरॉयड का प्रभाव न पड़े और जच्चा-बच्चा सुरक्षित रहें. थायरॉयड की समस्या न होने पर भी हर महिला को साल में एक बार थायरॉयड की जांच करानी चाहिए.
गर्भधारण करने से पहले एक बार जांच जरूर करवाएं और अगर थायरॉयड की समस्या है, तो डॉक्टर की सलाह से दवाई खाएं क्योंकि इसकी वजह से मिसकैरिज, एनीमिया और शिशु में जन्मजात मानसिक विकृतियां हो सकती हैं. जन्म के बाद तीसरे से पांचवें दिन के बीच शिशु की भी जांच कराएं. समस्या ज्यादा ही गंभीर हो, तो अंतिम विकल्प आयोडिन थेरेपी या सर्जरी हो सकता है.
थायराॅयड के लक्षण
– व्यवहार में चिडचिड़ापन और उदासी.
– एसी में भी पसीना निकलना.
– जरूरत से ज्यादा थकान और नींद न आना.
– तेजी से वजन का बढ़ना या कम होना.
– पीरियड में अनियमितता.
– मिसकैरिज या कंसीव न कर पाना.
– कोलेस्ट्रॉल बढ़ना.
– दिल का सही ढंग से काम न करना.
– शरीर और चेहरे पर सूजन.

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