-हरिवंश-
कन्हाई यादव दोआबा (गंगा-घाघरा का दियारा) के एक किसान हैं. सरकारी खाते के मुताबिक 10 एकड़ के जोतदार. हालांकि गंगा के कटाव के कारण 1982 में उनकी आठ एकड़ जमीन पानी में डूब चुकी है. फिलहाल दो एकड़ के जोतदार हैं, यह भी गंगा से लगी है. इस जमीन के कटाव का भी खतरा है. अब कन्हाई के परिवार के सामने दो जून के भोजन का सवाल है. बच्चे की पढ़ाई, लड़की की शादी या किसी आकस्मिक खर्च के लिए कर्ज के अलावा कन्हाई के पास दूसरा विकल्प नहीं है. कर्ज भी गांवों में आजकल कौन देता है? बैंक, सहकारी समितियां, भूमि विकास बैंक आदि गांव के बड़े जोतदारों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं की देखरेख में चलते हैं.
वहां कन्हाई जैसे लोगों की आवाज नहीं पहुंचती. स्कूल में फीस माफ कराने के लिए भी मास्टर जी को खुश करने का सवाल है. यह क्षमता भी कन्हाई में नहीं, अत: बच्चे का नाम स्कूल से कटा लिया. बाढ़ के कारण दोआबा में साल में एक ही फसल होती है. इस बार सरकारी बीज-खाद खराब मिले, इस कारण फसल भी मारी गयी. इससे भी बड़ा संकट कन्हाई के सामने है, सरकारी तकावी की वसूली के लिए अमीन के हरकारे की रोज-रोज दौड़धूप. उसे भी कभी-कभार नजराना देना पड़ता है. धौंस सुननी पड़ती है.
अमीन बार-बार पानी में गिरे खेत का लगान जमा करने के लिए दबाव डालता है. कन्हाई यादव यह नहीं कहते कि पिछले पांच साल से जो जमीन पानी में है, उसका लगान नहीं जमा करूंगा, बल्कि चार साल का लगान जमा भी कर दिया है, बकाया सिर्फ एक साल का है. कन्हाई का कहना है, ‘‘थोड़ी मोहलत दीजिए हुजूर! कर्ज रख कर भला मैं अपनी दीन-दुनिया-भविष्य बिगाड़ूंगा!’’ घटिया सरकारी बीज-खाद के कारण इस बार फसल भी नहीं हुई, फिर भी वे इसे आगे चुकता करने का आश्वासन देते हैं, पर तहसीलदार के सरकारी कारिंदे इस ‘अपराध’ के लिए कन्हाई को बार-बार धमकाते हैं.
दूसरी तरफ हाल में केद्रीय मंत्री दलबीर सिंह (राज्यमंत्री, नगर विकास) ने लोकसभा में बयान दिया कि 453 नये-पुराने सांसदों ने बिजली-पानी और सरकारी आवासों का किराया जमा नहीं किया है. इनमें कई पूर्व व वर्तमान वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री, विरोधी नेता भी शामिल हैं.
जगन्नाथ पहाड़िया पर तकरीबन 50 हजार रुपये घर-किराया, पानी व बिजली का महसूल बाकी है. सरकारी किराया चुकता न करनेवालों में रामचंद्र रथ, बालेश्वर राम, राम जेठमलानी, चंद्रजीत यादव, ऑस्कर फर्नांडिस, बीजू पटनायक, सुब्रह्मण्यम स्वामी, ब्रह्मानंद रेड्डी, चंद्रशेखर सिहं, जार्ज फर्नांडिस आदि कई जाने-माने नाम हैं. कुछ वर्ष पूर्व उत्तरप्रदेश सरकार ने भी एक सूची जारी की थी, जिसमें सरकारी आवासों का किराया जमा न करनेवालों का नाम था. इस सूची में राज्य के कई पूर्व मुख्यमंत्रियों, वरिष्ठ मंत्रियों, विरोधी राजनेताओं समेत कई नामी पत्रकारों के भी नाम थे. मध्यप्रदेश में तो सरकारी आवासों के आवंटन के बाद कुछ पत्रकारों ने सरकारी किस्त जमा करना ही बंद कर दिया. सरकार प्रतिवर्ष आय कर चुकता न करनेवालों की सूची जारी करती है. इस सूची में देश के जाने-माने नाम होते हैं. कई पर तो लाखों रुपये की सरकारी धनराशि बकाया है, लेकिन सरकार सूची जारी कर अपना फर्ज पूरा कर देती है.
जो सरकार चलाते हैं, जो मुल्क के भाग्य विधाता हैं, ऐसे लोग ही सरकारी बकाये का भुगतान न करें, सरकारी सुविधाओं का हर स्तर पर दुरुपयोग करना अपना मौलिक अधिकार समझें और कन्हाई यादव जिस जमीन से पिछले चार साल से कोई फसल न काटते हों, सरकार जबरन उस जमीन का लगान उनसे मांगें, तब भी वह ना-नुकुर नहीं करते, भविष्य में पानी में डूबी जमीन का लगान भुगतान करने का आश्वासन देते हैं, फिर भी सरकारी कारिंदे उन्हें धमकाते हैं. बड़े-बड़े लोगों पर करोड़ों रुपये बकाया है, लेकिन उन पर सरकारी कारिंदे रौब नहीं दिखाते. चूंकि गरीब मजदूर, किसान और पिछड़ों की कोई आवाज नहीं है, अत: इन पर हर तरह का जुल्म होता है.
इतना ही नहीं, सरकारी कर्मचारी खुलेआम सरकारी कोषों में हेराफेरी करते हैं. बिहार के महालेखाकार ने करोड़ों के गबन के मामले की जांच के लिए सीबीआइ को लिखा. बार-बार इसकी तहकीकात के लिए अनुरोध किया, लेकिन सीबीआइ का कहना है कि उसके पास फिलहाल जांच के लिए अनेक मामले हैं, अत: महालेखाकार द्वारा अग्रसारित मामले की वे जांच नहीं कर सकते. मुख्य महालेखाकार के अनुसार इमरजेंसी में इस कार्यालय से सरकारी कर्मचारियों को महज छह लाख रुपये चिकित्सा भत्ता के रूप में भुगतान किया गया था. अब कुछ सालों से चिकित्सा-भत्ता भुगतान की राशि बढ़ कर औसतन प्रतिवर्ष 70 से 90 लाख रुपये हो गयी है. पांच वर्ष पूर्व ही महालेखाकार ने सीबीआइ को इस संदर्भ में लिखा, पर कुछ नहीं हुआ. तब इस कार्यालय ने आयकर विभाग को उन डॉक्टरों-दुकानदारों की सूची भेजी, जिन्हें बड़ी राशि मिली है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन डॉक्टरों-दुकानदारों ने आयकर विभाग को अपनी आय का ब्योरा दिया है या नहीं! राज्य सरकार को भी एक ऐसी सूची दी गयी और ‘बिक्री कर चोरी’ पता करने का अनुरोध किया गया, लेकिन किसी स्तर पर कार्रवाई नहीं हुई.
सरकारी खजाने की खुली लूट हो, उस विभाग का प्रधान संबंधित सरकारी एजेंसियों को कानूनी कार्रवाई के लिए बार-बार लिखे, सीबीआइ व्यस्तता दिखा कर जांच से कन्नी काट जाये, दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई न हो, लेकिन अकाल-सूखे और बाढ़ से जूझते किसानों को सरकारी हरकारे वसूली के लिए तंग करें, लोकतांत्रिक, समाजवादी और न्यायप्रिय कहलानेवाली भारत सरकार के राज में ही संभव है.