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ब्रेस्ट केलॉयड नहीं है कैंसर
एक 38 साल की महिला को चर्म रोग ओपीडी में ब्रेस्ट में गांठ बता कर एवं त्वचा में अन्य जगहों पर उभर आये खुजली युक्त पुराने चकत्तों के इलाज हेतु भेजा गया. महिला पूरी घबरायी हुई और डिप्रेस्ड नजर आ रही थी. पुरानी रिपोर्ट देखने पर पता चला कि महिला का इलाज कैंसर विभाग में […]
एक 38 साल की महिला को चर्म रोग ओपीडी में ब्रेस्ट में गांठ बता कर एवं त्वचा में अन्य जगहों पर उभर आये खुजली युक्त पुराने चकत्तों के इलाज हेतु भेजा गया. महिला पूरी घबरायी हुई और डिप्रेस्ड नजर आ रही थी. पुरानी रिपोर्ट देखने पर पता चला कि महिला का इलाज कैंसर विभाग में हो रहा था, परंतु ब्रेस्ट कैंसर के सारे जांच निगेटिव थे.
जांच में पाया गया कि महिला के बायें ब्रेस्ट पर 8 सेमी लंबा एवं 4 सेमी चौड़ा एक चकत्तानुमा गांठ था, जिसमें बहुत खुजली होती थी. दर्द भी था. कभी-कभी अंदर से जलन का अनुभव होता था. यह पिछले एक-दो वर्षों से बढ़ता जा रहा था. महिला डरी हुई थी और खुद को कैंसर रोगी मान रही थी. बेचैनी, अनिद्रा, अवसाद के लिए मानसिक रोग चिकित्सक से भी इलाजरत थी. महिला की लिवर, किडनी, चीनी जांच का रिजल्ट नॉर्मल था, परंतु आजीइ बढ़ा हुआ था. यह केलॉयड नामक बीमारी है जो ब्रेस्ट (स्तन) पर भी होता है.
महिला को यह बताया गया कि यह बीमारी कैंसर नहीं है और जानलेवा भी नहीं है. हां, दिक्कत तो जरूर देती है जिसे दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है. इस बीमारी को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है, परंतु दवाओं और कुछ सुझावों की मदद से मरीज सामान्य जीवन जी सकता है. मरीज को इंट्रालीजनल स्टेरॉयड इन्जेक्शन (ट्राइएमसीनोलोन एवं हाइलूरोनीडेज) मिला कर 15-15 दिन पर लेने, फेक्सोफेनाडाइन खाने एवं सिलिकॉन जेल लगाने हेतु दिया गया, जिससे सारे लक्षणों में बहुत सुधार हुआ.
क्या होता है केलॉयड
सामान्य तौर पर चोट लगने, छिलने पर घाव होता है, तो वहां सामान्य स्कार होता है. स्कार होने पर त्वचा की एपिडर्मिस यानी ऊपरी लेयर खत्म हो जाती है. फ्राइब्रोब्लास्ट नामक कोशिका द्वारा बनाये गये फाइबर यानी कोलेजेन से एक बार स्कार हो जाये, तो वह हमेशा के लिए हो जाता है. उसका रूप परिवर्तित किया जा सकता है, पर पूरी तरह हटाया नहीं जा सकता. परंतु जिन मरीजों को केलॉयड की प्रवृत्ति होती है, उनमें मोटा स्कार बनता है. कभी-कभी घाव की परिधि के बाहर जाकर यह मोटा स्कार बढ़ता जाता है. इसे ही केलॉयड कहते है. इसे नियंत्रित कर मरीज सामान्य जीवन जी सकता है.
कैसे होता है इलाज
यह कहीं भी घाव, घर्षण, तनाववाली जगहों पर हो सकता है. पिंपल (एक्ने) के घाव भरने पर यह हो सकता है. कान, गरदन के नीचे और छाती पर भी यह होता है.
इलाज : सर्जरी से हटाने से यह और बढ़ जाता है. अत: सामान्य सर्जरी संभव नहीं है. इस रोग में स्टेरॉयड (ट्राइएमसीनोलोन) एवं हायलूरोनीडेज का इन्जेक्शन दिया जाता है, जिससे यह पतला हो जाता है. इससे कोलेजेन का बनना रुक जाता है. इसमें ब्लीयोमायसिन एवं फाइव फ्लूरो यूरेसिल का इन्जेक्सन भी दिया जाता है. यह केलॉयड को गलाता है. नाइट्रोजन गैस को -196 डिग्री सेल्सियस तापमान पर द्रव बना कर उसे स्प्रे करने पर केलायड टिशू बर्फ बन जाता है और उसमें फोका बन जाता है. वह गल कर पतला हो जाता है. इसे क्रायोथेरेपी कहते हैं.
स्टेराॅयड इन्जेक्शन 15-15 दिन पर दिया जाता है और जब यह पतला हो जाता है, तो उसे नहीं बढ़ने देने के लिए सिलिकॉन जेल लगाया जाता है. केलॉयड में खुजली न हो इसके लिए फेक्सोफेनाडाइन की गोली (180 एमजी) सुबह-शाम दो-तीन महीने या आइजीइ लेवल के हिसाब से ज्यादा दिनों के लिए भी दिया जा सकता है, क्योंकि खुजली होने पर केलॉयड के और बढ़ने की भी आशंका रहती है. (त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ क्रांित से बातचीत)
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