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बच्चे को न लग जाये कार्टून देखने की लत
आज ज्यादातर घरों में माता-पिता की शिकायत रहती है कि उनका बच्चा सारा दिन टीवी पर कार्टून देखता है एवं पढ़ाई में रुचि नहीं लेता. यह भी सही है कि आज बच्चे कार्टून देख कर काफी कुछ सीखते हैं. स्मार्ट भी बन रहे हैं, उनमें टेक्निकल नॉलेज की समझ बढ़ रही है. लेकिन शारीरिक गतिविधियों, […]
आज ज्यादातर घरों में माता-पिता की शिकायत रहती है कि उनका बच्चा सारा दिन टीवी पर कार्टून देखता है एवं पढ़ाई में रुचि नहीं लेता. यह भी सही है कि आज बच्चे कार्टून देख कर काफी कुछ सीखते हैं. स्मार्ट भी बन रहे हैं, उनमें टेक्निकल नॉलेज की समझ बढ़ रही है. लेकिन शारीरिक गतिविधियों, खेलकूद से वे कटते जा रहे हैं. उनका व्यवहार चिड़चिड़ा होता जा रहा है.
एक सर्वे में पाया गया कि तीन साल से आठ साल की उम्र में बच्चे का सर्वाधिक समय टीवी (कार्टून) के सामने गुजरता है. जैसे ही वे सोकर उठते हैं, पहला काम टीवी ऑन कर कार्टून देखना होता है. मां अक्सर काम में व्यस्त रहती हैं और बच्चे को टीवी के सामने बैठा कर अपना काम निबटाने में लग जाती हैं. लेकिन जब वहीं बच्चा ज्यादा-से-ज्यादा समय कार्टून देखने में बिताने लगता है, तो फिर पैरेंट को उन पर गुस्सा भी आने लगता है. वे बच्चे की पिटाई भी कर देते हैं.
यह सही है कि कार्टून एवं बच्चों के शोज में कई अच्छी बातें भी दिखायी जाती हैं, लेकिन बच्चों का ध्यान अच्छी बातों पर कम और कार्टून चरित्रों के अजीबो-गरीब हरकतों पर ज्यादा जाता है. वे उनकी नकल करने लगते हैं. तीन साल से बच्चे जो देखते हैं, वहीं सीखते हैं एवं वही उनके जीवन का हिस्सा भी बनने लगता है. बच्चों की जुबान पर कार्टून के हर पात्र का नाम रहता है. यहां तक कि वे अपने फेवरेट कार्टून कैरेक्टर की भाषा बोलने लग जाते हैं.
शानु (चार वर्ष) अजीब भाषा का प्रयोग करने लगा, तो मां को लगा कि हमारे यहां तो ऐसा कोई नहीं बोलता. बाद में पता चला कि ये सब उसने कार्टून से सीखा है. अक्सर कार्टून में दिखाये जानेवाले हिंसक दृश्य बच्चों के कोमल मन में हिंसक प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं.
मारपीट, अजीब करतब करनेवाले कैरेक्टर की नकल करते रहना उन्हें अच्छा लगता है. बच्चे काल्पनिक दुनिया में जीने लग जाते हैं व उनकी भाषा में बातें करने लगते हैं. ज्यादा कार्टून देखने का मतलब है कि बच्चे का ज्यादातर समय टीवी पर व्यतीत होता है. मतलब वह अन्य एक्टिविटीज से दूर होता जा रहा है.
बीच-बीच में मॉनीटरिंग करते रहें
इस प्रतिस्पर्धावाले युग में कहीं आपका बच्चा पीछे न रह जाये, इसकी परवाह हर मां-बाप को होती है. पर जाने-अजाने में बच्चों की आदतों को बिगाड़ने में उनकी भी भूमिका रहती है. आंख तब खुलती है जब बच्चा गुमराह होने लगता है. इसी कारण माता-पिता के सामने गंभीर चेतावनी आ रही है कि वे बच्चों को कितना समय कार्टून देखने दें, इसका उन्हें आत्मविश्लेषण करना चाहिए. इसके कारणों की पहचान करनी होगी. टीवी (कार्टून) के दुष्परिणामों को समझना होगा. बच्चों के सेहतमंद व्यवहार के लिए कदम उठाने होंगे. आप समय-समय पर मॉनीटरिंग करते रहें कि बच्चा टीवी पर क्या देख रहा है. आप भी उसके साथ वहां बैठें. अपनी सुविधा के लिए उसे किसी आदत का गुलाम न बनने दें.
रोशन 15 वर्ष का है, फिर भी उसका ज्यादातर समय कार्टून देखने में जाता है. उसके माता-पिता जब भी उसे खेलने या पढ़ने के लिए कहते हैं, आक्रमक हो जाता है. वह किसी की नहीं सुनता. स्कूल से शिकायत आती है कि वह पढ़ाई में रुचि नहीं ले रहा, न ही किसी प्रश्न का जवाब देता है. उसके दोस्त न के बराबर हैं.
अब तो उसके मार्क्स भी कम आने लगे हैं. रौमी (10 वर्ष) बचपन से कार्टून शोज देखती आ रही है. मजाल नहीं है कि घर में कोई और टीवी का चैनल बदल ले. उसकी मां घर के काम करने में व्यस्त रहती थी, सो उसे टीवी के सामने कार्टून लगा कर बैठा देती थी. अब तो कार्टून देखना उसकी लत बन गयी है. घर में काफी बोलती है, लेकिन बाहरवालों के सामने उसकी जुबान नहीं खुलती. उसका खाना, पढ़ना सब टीवी के सामने ही होता है. काफी जिद्दी हो गयी है.
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