पूजा कुमारी
क्या कमाल का प्यार है न हम दोनों का…लोग शादी से पहले छुप-छुप कर मिलते हैं और हमें शादी के बाद ऐसा करना पड़ रहा है. वह भी सिर्फ तुम्हारी मां की जिद की वजह से. कहते हुए सुमन ने शिरीष के कंधे पर अपना सिर रख दिया.
‘‘हर मां के अरमान होते हैं अपनी बहू को लेकर, सो मेरी मां के भी थे. पर मैंने उनकी पसंद को छोड़ कर तुमसे शादी कर ली तो उनका गुस्सा तो झेलना ही पड़ेगा ना… पर मुझे पूरा यकीन है जल्दी ही तुम उनका दिल जीत लोगी जैसे बाबूजी का जीता है. है ना?’’
‘‘पर तुम नहीं जानते शिरीष जब तुम हफ्ते भर के लिए अपनी ड्यूटी पर चले जाते हो तो यहां पड़ोस की औरतें आकर मेरे खिलाफ मां के कान भरती रहती हैं. जरा-सा घूंघट ऊपर हुआ नहीं कि मेरे मां-पिताजी और उनके संस्कारों का पोस्टमार्टम शुरू कर देते हैं सब.’’
‘‘सब जानता हूं मैं…बस तुम थोड़ा सब्र करो मैं करता हूं कुछ इसके लिए भी.’’
‘‘वैसे मुझे एक बात का अफ़सोस हमेशा रहेगा.’’ -वो क्या?
‘‘यही कि हमने घर से भाग कर शादी नहीं की. मुझे तो अपनी प्रेम कहानी में सब रंग चाहिए एक्शन, इमोशन, ड्रामा, ट्रेजेडी, सस्पेंस सब कुछ. इसके बिना कोई भी लव स्टोरी इनकम्प्लीट-सी लगती है. अब तुम जाओ, किसी ने हमें यहां इस तरह छत पर साथ बैठे देख लिया तो बिना बात हंगामा हो जायेगा.’’
शिरीष और सुमन एक ही कॉलेज में साथ पढ़ते थे. पढाई के दौरान हुई दोस्ती कब प्यार में बदल गयी पता ही नहीं चला. दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खायीं और घरवालों को भी अपना फैसला सुना दिया. सुमन के घरवाले तो मान गये, लेकिन शिरीष एक बहुत ही छोटे-से गांव का रहनेवाला था. उसके घरवाले खास कर मां बहुत ही पुराने ख्यालोंवाली थी.
जब बेटे ने उनके सामने प्रेम विवाह की इच्छा जताई तो रो-रोकर उन्होंने पूरा घर सिर पर उठा लिया. ‘‘शहर की लड़की के संस्कार कैसे होंगे, सास-ससुर की सेवा करेगी भी कि नहीं’’ जैसे सवालों ने उनकी रातों की नींद उड़ा दी. सबके समझाने पर वह जैसे तैसे मान तो गयी, लेकिन उन्होंने शर्त रख दी कि सुमन को बिलकुल गांव के रीति-रिवाजों के मुताबिक गांव में ही रहना होगा. सुमन मान भी गयी, लेकिन शादी के बाद यही शर्त उसके गले की हड्डी बन गयी. सारा दिन उसे लंबे घूंघट में रहना पड़ता था. वह कहीं आ-जा नहीं सकती थी.
सास की कही हर बात को बिना तर्क-वितर्क के चुपचाप बस मान लेना पड़ता था. गांव में सभी सुमन को ‘नयी बहू’ के नाम से बुलाने लगे. सुमन की सास उसे परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही थी. इसी कोशिश में वह पूरा दिन सुमन से काम करवाती रहती. खाने के वक्त पर उसे पहले दो रोटियां देती. फिर आधी रोटी देते हुए कहती- ‘तीन रोटी नहीं खायी जाती है’. सुमन का मन चिल्लाकर जवाब देने का होता कि वह तीन नहीं, पांच खा सकती है. आखिर दिन भर मेहनत करने के बाद पेट भरने का हक तो है न उसे?
ससुर सब समझते थे, लेकिन पत्नी के सामने उनकी भी जुबान नहीं खुलती थी. शिरीष शहर में पुलिस कॉन्स्टेबल की नौकरी करता था. इतवार की छुट्टी पर वह गांव सबसे मिलने आता था. उसमें भी मां उसे सुमन के पास नहीं जाने देती थी. किसी न किसी बहाने से उसे अपने पास ही बिठाये रखती थी. कुछ ही दिन पहले शहर में शिरीष के एक दोस्त की शादी हुई थी.
उसने उसे अपने घर बुलाया. उन दोनों की छोटी-सी दुनिया और प्यार भरी छेड़ छाड़ देखकर अब शिरीष को अपने और सुमन के कॉलेज के दिन याद आने लगे. ‘‘न जाने कैसे रहती होगी वहां… मां उसका ध्यान रखती भी होगी कि नहीं’’. उसने तय कर लिया अब चाहे जो भी हो, इस बार वह सुमन को अपने साथ शहर ले आयेगा. इतवार को घर आकर उसने मां को जब अपनी यह इच्छा बतायी तो मां ने हमेशा की तरह आंसुओं का ब्रह्मास्त्र चला दिया ‘‘बुढ़ापे में मां-बाप को अकेला छोड़ कर जाना चाहता है…करम ही फूटे हैं हमारे… सुन रहे हो शिरीष के बापू…’’
पर इस बार शिरीष पक्का इरादा करके आया था. दोपहर को छत पर कपड़े सुखाते समय अचानक एक पत्थर से लिपटा कागज़ सुमन के पैरों के पास आकर गिरा. हैरानी से उसने उठाकर देखा तो लिखा था- ‘‘आज रात को तैयार रहना’’… नीचे देखा तो आंगन में शिरीष खड़ा था. सुमन को कुछ समझ ही नहीं आया पर, वह रात होने का इन्तजार करने लगी. आधी रात को जब सब सो गये, तो सुमन के कमरे की खिड़की पर हल्की-सी दस्तक हुई. खिड़की खोली तो सामने शिरीष खड़ा था. उसने चुप रहने का इशारा करते हुए कहा- ‘‘अपना सामान उठाओ और निकलो यहां से.’’
‘‘क्या…तुम मुझे भगाने आये हो?’’
‘‘हां, अब जल्दी चलो.. दोनों खिडकी के रास्ते निकल भागे. कुछ ही दूर गये होंगे कि चौकीदार की नजर दोनों पर पड़ गयी और चोर-चोर का शोर मच गया. लड़की का घूंघट हटा कर देखा तो वह नयी बहू निकली.
फिर क्या था शोर मच गया कि नयी बहू किसी लड़के साथ घर से चोरी करके भाग गयी है… लुटेरी दुल्हन पकड़ी गयी. थानेदार ने आकर दोनों को अपने कब्जे में ले लिया. उधर शिरीष के घर में हंगामा मचा हुआ था. मां ने रो-रोकर जमीन आसमान एक कर रखा था. बार-बार एक ही बात दोहरा रही थी कि ‘‘कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा इस नयी बहू ने.’’ पड़ोस की औरतें इस सुलगती आग में मन भर पेट्रोल डाल रही थीं. इस पूरे घटनाक्रम में किसी का ध्यान शिरीष की तरफ गया ही नहीं. आखिर खबर ही इतनी चटपटी थी. जैसे ही थानेदार दोनों को लेकर वहां पहुंचा सुमन की सास अपना आपा खो बैठी और गुस्से में उसके पास आकर चिल्लाई- ‘‘यही दिन दिखाने के लिए मेरे बेटे से ब्याह किया था तूने? और किसके साथ भाग रही थी हमें लूटकर’’ कहते हुए उसने शिरीष के ऊपर से चादर खींच ली. सामने अपने बेटे को खड़ा देख कर वह सकपका गयी.
‘‘तू..तू यहां क्या कर रहा है?’’
‘‘अरे… मैं कब से यही तो बताने की कोशिश कर रहा हूं कि सुमन को मैं भगा कर ले जा रहा था पर मेरी कोई सुने तब तो..’’
‘‘तुझे इसकी क्या जरूरत पड़ गयी ब्याह कर तो तू पहले ही ला चुका है इसे.’’
‘‘ये तुम पूछ रही हो मां? शादी के बाद से क्या तुमने मुझे कभी सुमन से बात भी करने दी है?’’ मां से अब जवाब देते नहीं बन रहा था.
लोगों को जब सारी बात पता चली तो वे भी हंसते हुए अपने घरों को लौटने लगे. अगले दिन शिरीष सुमन को अपने साथ शहर के लिए लेकर निकल गया और इस बार मां ने उसे रोका भी नहीं. रास्ते में बाइक के पीछे बैठे-बैठे सुमन मन ही मन हंस रही थी. आखिर उसकी लव स्टोरी कम्प्लीट जो हो गयी थी.