नयी दिल्ली : Chronic obstructive pulmonary disease यानी फेफड़े से संबंधित ऐसी बीमारी जिसके कारण भारत में मृत्यु दर दूसरे स्थान पर है. बावजूद इसके भारत के लोग इस बीमारी के बारे में ज्यादा नहीं जानते. चौंकाने वाली बात यह है कि भारत COPD का कैपिटल बन चुका है, बावजूद इसके लोग इस बीमारी के प्रति लापरवाही बरतते हैं. पुणे के चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन (CRF) के निदेशक डॉ.सुदीप साल्वी ने बताया कि पूरी दुनिया में सीओपीडी के सबसे अधिक मामले भारत में देखने को मिलते हैं. लेकिन देश के 99.15% लोग सीओपीडी के बारे में नहीं जानते.
डॉ साल्वी ने बताया कि सीओपीडी को पहले ‘धूम्रपान करने वालों का रोग’ माना जाता था, लेकिन आंकड़े यह बताते हैं कि धूम्रपान न करने वालों में भी सीओपीडी के मामले बढ़ रहे हैं. यह भारत जैसे विकासशील देश के लिए चिंता का विषय है. यह भी देखा गया कि सीओपीडी से पीड़ित एक-चौथाई रोगियों ने कभी धूम्रपान नहीं किया था.भारत के दो तिहाई से अधिक परिवार खाना पकाने के लिए बायोमास ईंधन का उपयोग करते हैं, जिसके कारण वायु प्रदूषण होता है और खाने बनाने वाली महिलाएं उस धुएं को सांस के जरिये अपने शरीर में लेकर जाती हैं. वायु प्रदूषण के मामले भी देश में बहुत बढ़े हैं, जिसके कारण सीओपीडी के मरीज देश में लगातार बढ़ रहे हैं. दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 20 शहरों में से 10 भारत में स्थित हैं.
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 1990-2016 के अनुसार, महिलाएं घरेलू वायु प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित होती हैं, जबकि धूम्रपान और व्यावसायिक जोखिम पुरुषों में अधिक होता हैं.सीओपीडी का पता स्पायरोमीटर के जरिये लगाया जा सकता है, यह मापता है कि स्पाइरोमीटर की मदद से आप अपने फेफड़ों से कितनी जल्दी और कितनी मात्रा में हवा छोड़ सकते हैं.डॉ.साल्वी ने बताया कि COPD का निदान जागरूकता से ही संभव है. इसके लक्षण और कारण के बारे में सही तरह से मालूम नहीं होने के कारण भी यह बीमारी भयावह रूप ले रहा है. लेकिन जागरूकता और सही तरह से स्पायरोमेट्री के प्रयोग सीओपीडी का निदान संभव है. इन्हेल करने वाली दवाएं भी इस बीमारी में सबसे कारगर हैं.