स्वामी ध्यान पवन, योगाचार्य, ओशोधारा
नियम : आसन धीमी गति से, आनंद की अनुभूति कर करें. शौच के बाद खाली पेट, सुबह का समय आसन के लिए सबसे उपयुक्त है. भोजन के 4 घंटे बाद भी आसन कर सकते हैं. आसन खुली हवा में, बगीचे में अथवा हवादार कमरे में करें. जब शरीर को फैलाते हैं, तो श्वास लें, जब शरीर को सिकोड़ें, तो श्वास छोड़ें. जहां समझ में न आये, वहां स्वाभाविक श्वास लें. मयूरासन करते समय जमीन के ऊपर मोटा गद्दा अवश्य बिछा लें, ताकि आसन करते समय यदि शरीर असंतुलित हो, तो गिरने पर चोट न लगे. साथ ही शरीर की ऊर्जा पृथ्वी में विसर्जित न हो.
विधि : जमीन पर घुटनों को मोड़कर बैठ जाएं. दोनों पैरों को एक साथ रखें और घुटनों को एक-दूसरे से अलग कर लें. इससे शरीर की स्थिति सिंहासन जैसी होगी. सामने की ओर झुकें और दोनों हथेलियों को घुटनों को मध्य जमीन पर इस प्रकार रखें कि उंगलियों के अग्रभाग पीछे पैरों की तरफ उन्मुख रहेंगे. दोनों कलाइयां और प्रबाहुओं को पेट के इस प्रकार नजदीक लाएं कि वे परस्पर स्पर्श करें अब आगे झुककर कोहनियों के ऊपरी हिस्सों पर पेट को टिका दें. पेट का वह भाग नाभी प्रदेश से कुछ नीचे होगा. भुजाओं के ऊपरी भाग में छाती को टिका दें. दोनों पैरों को एक साथ मिलाकर एवं साधते हुए पीछे की ओर उठाएं व फैलाएं. गहरी श्वास अंदर लें, शरीर की मांसपेशियों को सशक्त करें. धीरे-धीरे धड़, सिर और पैरों को इस तरह उठा लें, जिससे वे एक सीध में जमीन के समांतर स्थिति में हो जाएं. सिर को थोड़ा ऊपर उठाये रखें. संपूर्ण शरीर को हथेलियों पर कोहनियों व भुजाओं पर संतुलित रखें. पैरों को एक साथ मिलाकर तथा सीधे रखते हुए कुछ और ऊपर उठाएं. इसके लिए मांसपेशियों के अधिक प्रयास तथा शरीर के संतुलन को व्यवस्थित करने की आवश्यकता है. यह अंतिम स्थिति है. इस स्थिति में यथासंभव आराम पूर्वक रहे अपना संतुलन बनाये रखने के लिए उंगलियों का उपयोग करें. शरीर में अधिक तनाव न आने दें. थोड़ी देर रुकने के बाद पैरों को धीरे-धीरे जमीन पर वापस ले आएं. अंत में फिरसे प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं व बैठ जाएं. यह मयूरासन की प्रथम आवृत्ति हुई. विश्राम करें, लंबी गहरी श्वास लें और जब श्वास अपनी सहज गति से चलने लगे, तो इसकी दूसरी आवृत्ति शुरू करें. आप इसकी अंतिम स्थिति में तब तक रह सकते हैं, जब तक श्वास को अंदर रोक सकते हैं. जब तक इस स्थिति में धीरे-धीरे गहरी श्वास लेते हुए बिना थकान या तनाव के स्थिर रह सकते हैं.
लाभ: मयूरासन से शरीर की प्रक्रिया में उत्तेजना और जागृति आती है. रक्त संचार और मल निष्करण प्रक्रिया को सक्रिय करता है. रक्त का शुद्धिकरण होता है. शरीर के दाग, चमड़े की सफेदी, फोड़े फुंसियां जैसे चर्मरोग ठीक हो जाते हैं. इस आसन से आंतरिक पाचन तंत्र के सभी अंगों की अच्छी मालिश होती है. इंद्रियों में संतुलन आता है. कोष्ठबद्धता, यकृत की कमजोरी तथा गुर्दे संबंधी विकार ठीक होते हैं. जठराग्नि प्रदीप्त होती है, पेट के रोग, गैस, अम्ल, अपच, कब्ज आदि दूर होता है. इससे मेरूदंड सीधा व लचीला होता है. तिल्ली, यकृत, गुर्दे, अग्नाशय एवं अमाशय सभी लाभांवित होते हैं. मुख पर कांति आती है और शरीर पुष्ट होता है.
इस आसन का अभ्यास खाली पेट व सुबह में करें. मयूर आसन के अभ्यास से रक्त संचार में तीव्रता आती है. यह रक्त के विकारों को अधिक मात्रा में बाहर निकालता है, जो शुद्धिकरण प्रक्रिया का आवश्यक अंग है. इसलिए कोई भी विपरीत आसन करने के तुरंत बाद मयूरासन नहीं करना चाहिए. इससे रक्त संबंधी विकारों के मस्तिष्क की ओर चले जाने की आशंका रहती है. इसका अभ्यास सभी आसनों के अंत में करें. उच्च रक्तचाप, हृदय रोगी, हर्निया, गर्भवती, मासिक चक्र के दौरान, किसी प्रकार की भी बीमारी आदि में इसका अभ्यास न करें.