पटना : पिता जीवन है, संबल है, शक्ति है. पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है. पिता उंगली पकड़े बच्चे का सहारा है, पिता कभी खट्टा, कभी खारा है. पिता पालन है, पोषण है, परिवार का अनुशासन है, पिता धौंस से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है. पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है. पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है. पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं, पिता हैं तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं.
कवि ओम व्यास ओम की पिता पर आधारित इस कविता में पिता शब्द की अहमियत समायी हुई है. यह रिश्ता किसी भी इंसान के जीवन में बेहतर अहम और अहमियत रखने वाला है. आज फादर्स डे है. इस खास मौके पर प्रभात खबर पिता के प्रेम और त्याग से जुड़ी कुछ ऐसी ही कहानियां सामने लाया है.
हैंडलूम कॉरपोरेशन के टेक्निकल अफसर ने बेटे को बनाया अभिनेता
पूर्णिया के मल्डीहा गांव से 1972 में पटना पहुंचे कृष्ण किशोर सिंह की नौकरी बिहार स्टेट हैंडलूम कॉरपोरेशन में टेक्निकल अफसर के रूप में लगी थी. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से परिवार को खड़ा किया और बेटे सुशांत को उन्होंने सुप्रसिद्ध बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत बना दिया. सुशांत ने दसवीं तक की पढ़ाई की. प्लस टू के लिए दिल्ली डीएवी से किया. इसके बाद दिल्ली स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग से बैचलर की डिग्री ली. इसके बाद पिता ने एक्टिंग और डांसिंग का कोर्स दिल्ली के श्यामक डाबर और बेरी जोंस के इंस्टीट्यूट से कराया और आज वे बॉलीवुड के फेमस स्टार हो गये हैं.
पढ़ा-लिखा कर बेटे निशांत को बनाया जीआइजेड जर्मनी का कंट्री हेड
जीआइजेड यानी जर्मन कॉरपोरेशन ऑफ इंटरनेशनल को-ऑपरेशन इंडिया के कंट्री हेड पटना के ही निशांत जैन हैं. यह संस्थान जर्मनी के अंतरराष्ट्रीय सहयोग सेवाओं का प्रमुख सेवा प्रदान करने वाला संस्थान है. वे इस संस्थान में हेल्थ और सोशल सिक्यूरिटी विभाग को देखते हैं. निशांत के पिता मुनेश जैन ने अपने बुनियादी संघर्षों से तालमेल बिठाते हुए बेटे को इस काबिल बनाया कि निशांत ने भारत सरकार की महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत योजना की ड्राफ्टिंग टीम में भी शामिल थे. मुनेश जैन कहते हैं कि निशांत बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का था. संत जेवियर्स स्कूल से स्कूलिंग और साइंस कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद आइआइएम अहमदाबाद से उन्होंने एमबीए किया, इसके बाद से उनके सफलता का सफर जारी है.
खेती कर बैंकटेश पांडे ने बेटा अंकित को पढ़ाया
कहते हैं कि जब हौसला बुलंद हो तो सभी मुश्किलें पीछे रह जाती हैं और इंसान को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. कुछ ऐसी ही कहानी औरंगाबाद के बैंकटेश पांडे के साथ सही बैठती है. बैंकटेश एक गरीब किसान हैं. खेती से जो पैसे आते हैं उससे चार बच्चों का पालन-पोषण होता है. उनका बड़ा बेटा अंकित पटना में रह कर पढ़ाई करता है. उसने पहली बार में ही जेइइ एडवांस निकाल लिया. इस बारे में वे कहते हैं कि बेटा पढ़ाई में शुरू से काफी तेज था. उसकी पढ़ने की ललक को देखते हुए मैंने कर्ज लेकर उसकी पढ़ाई पूरी करवायी. उसने जेइइ की तैयारी पटना सुपर 30 में रह कर किया. बेहतर रिजल्ट आने के बाद घर में खुशी का माहौल है. इस बारे में अंकित की मां रीता देवी कहती हैं कि अंकित के पापा एक हाथ से विकलांग हैं फिर भी वे मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटते.
गल्ला बेचकर बेटे को सामाजिक न्याय मंत्रालय पहुंचाया
यह राजधानी के इंद्रपुरी मुहल्ले में रहने वाले मूल रूप से हिलसा, नालंदा के निवासी फकीरा साह की कहानी है. उन्होंने अपने बेटे-बेटियों की परवरिश संघर्षों से जूझते हुए की. कभी हिलसा में गली-गली गल्ला यानी अनाज खरीदने बेचने का कारोबार करने वाले फकीरा साह ने शिक्षा का महत्व समझा और बच्चों को पटना, दिल्ली और इलाहाबाद में पढ़ाया. वहां से इनके बड़े बेटे सुधीर हिलसायन ने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में बड़े पद पर पहुंचे. अन्य बेटे सुबोध गुप्ता और संतोष गुप्ता मल्टीनेशनल कंपनियों में कई राज्यों के प्रमुख के तौर पर कार्यरत हैं.