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Sukhdev Jayanti 2023: आज मनाई जा रही है सुखदेव जयंती,आइए जानें उनकी जिंदगी से जुड़े रोचक तथ्य

Sukhdev Thapar Birth Anniversary 2023: आज 15 मई को सुखदेव थापर की जयंती मनाई जा रही है. सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907 को लुधियाना, पंजाब में हुआ था. आइए जानें सुखदेव थापर की जिंदगी से जुड़े रोचक तथ्य

Sukhdev Thapar Birth Anniversary 2023: स्वतंत्रता के लिए कई लोगों ने अपने जीवन का त्याग किया। इन सभी में जो नाम सर्वाधिक विख्यात हैं वे हैं- सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु। सभी को एक साथ 23 मार्च, 1931 को फांसी दी गई. आज 15 मई को सुखदेव थापर की जयंती मनाई जा रही है. सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907 को लुधियाना, पंजाब में हुआ था. आइए जानें सुखदेव थापर की जिंदगी से जुड़े रोचक तथ्य

जानें सुखदेव थापर के बारे में 

सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907 को लुधियाना, पंजाब में हुआ था. उनके पिता का नाम रामलाल थापर था. इनकी माता रल्ला देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं. जब सुखदेव तीन वर्ष के थे, तभी इनके पिताजी का देहांत हो गय था. जिसके बाद उनका लालन-पालन उनके ताऊ लाला अचिन्त राम ने किया था.

इस घटना का पड़ा जीवन पर गहरा असर

वर्ष 1919 में, जब सुखदेव महज 12 वर्ष के थे, अमृतसर के जलियांवाला बाग में भीषण नरसंहार के कारण देश में भय तथा आतंक का वातावरण बन गया तो सुखदेव के मन पर इस घटना का बहुत गहरा असर हुआ.

ऐसे हुई भगत सिंह से दोस्ती

स्कूल के बाद इन्होंने 1922 में लाहौर के नैशनल कॉलेज में प्रवेश लिया जहां भगत सिंह से इनकी मुलाकात हुई. दोनों एक ही राह के पथिक थे, अत: शीघ्र ही परिचय गहरी दोस्ती में बदल गया.

हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे

बताया जाता है, वह लाहौर के नेशनल कॉलेज में युवाओं में देशभक्ति की भावना भरते और उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ने के लिए प्रेरित करते थे. इसी के साथ वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सदस्य थे.

सुखदेव ने भगत सिंह और राजगुरु के साथ मिल कर स्कॉट से बदला लेने के योजना बनाई। दिसम्बर, 1928 में भगत सिंह और राजगुरु ने स्कॉट की गोली मारकर हत्या करने का प्लान बनाया लेकिन गोली गलतफहमी में जे.पी. सांडर्स को लग गई.

कालान्तर में सुखदेव को इस पूरे प्रकरण के कारण लाहौर षड्यंत्र में सह-आरोपी बनाया गया. 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश सरकार के बहरे कानों तक आवाज पहुंचाने के लिए दिल्ली में केंद्रीय सभा में बम फेंककर धमाका किया और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए. दोनों ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की. इसके बाद चारों ओर गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया. 15 अप्रैल, 1929 को सुखदेव, किशोरी लाल तथा अन्य क्रांतिकारियों को पकड़ा गया. कोर्ट द्वारा भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. उसी समय इन पर लाहौर का भी केस चल रहा था इसलिए इन्हें लाहौर भेजा गया.

जेल में मिलता था खराब भोजन

लाहौर जेल में मिलने वाले खराब भोजन और जेलर के अमानवीय व्यवहार के विरोध में कैदियों ने भूख हड़ताल शुरू कर दी जो 63 दिन तक चली और उसमें क्रांतिकारी यतिंद्र नाथ दास शहीद हो गए.

अंतत: 7 अक्तूबर, 1930 को निर्णय सुनाया गया जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को फांसी की सजा देनी तय की गई.

इस दिन मिली थी फांसी की सजा

पंजाब के होम सैक्रेट्री ने इनकी फांसी की सजा की तिथि 23 मार्च, 1931 कर दी क्योंकि ब्रिटिश सरकार को जनता की ओर से बड़ी क्रांति का डर था. इस कारण सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु को निर्धारित समय से एक दिन पूर्व चुपचाप फांसी दे दी गई और इनके शवों को जेल के पीछे सतलुज के तट पर जला दिया गया.

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