24.7 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Mahalaya Amavasya 2023 : क्यों मनाते हैं पितृविसर्जन अमावस्या, जानें इस साल की तिथि, समय, अनुष्ठान और महत्व

Why Mahalaya Amavasya Celebrated : हिन्दू धर्म में महालया अमावस्या का काफी महत्व है. क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों मनाया जाता है, पितृविसर्जन अमावस्या ? इसका अनुष्ठान नहीं करने वालों पर क्या बुरा प्रभाव पड़ सकता है. कहा जाता है कि उन्हें अपने जीवन में बुरे अनुभवों से भी गुजरना पड़ सकता हैं.

 पितृविसर्जन अमावस्या, जिसे सर्वपितृ अमावस्या, पितृ मोक्ष अमावस्या या पितृ अमावस्या के नाम से भी जानते है. यह एक हिंदू परंपरा है जो ‘पितरों’ या पूर्वजों को समर्पित है. दक्षिण भारत में प्रचलित अमावस्यांत कैलेंडर के अनुसार, यह ‘भाद्रपद’ महीने की अमावस्या (अमावस्या दिन) को मनाया जाता है. उत्तर भारत में जहां पूर्णिमांत कैलेंडर का उपयोग किया जाता है. यह ‘अश्विन’ महीने के दौरान और ग्रेगोरियन कैलेंडर में सितंबर-अक्टूबर के महीनों में मनाया जाता हैै. महालया अमावस्या 15 दिवसीय श्राद्ध अनुष्ठान का अंतिम दिन होता है.

14 अक्टूबर, दिन शनिवार को मनाया जाएगा महालया अमावस्या

शनिवार 14 अक्टूबर को मनाया जाएगा  पितृविसर्जन अमावस्या.  पितृविसर्जन अमावस्या पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने और शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन के लिए मनाया जाता हैं. इसे पितृ पक्ष के आखिरी दिन मनाया जाता है जिसे ‘पूर्वजों का पखवाड़ा’ भी कहा जाता है. यह दिन पितरों को आदर और सम्मान देने के उद्देश्य से अत्यधिक श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है. बंगाल में इसे ‘महालय ‘ के रूप में मनाया जाता है जो भव्य दुर्गा पूजा समारोह की शुरुआत का प्रतीक है. तो वही तेलंगाना राज्य में बथुकम्मा उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है.

ऐसे की जाती है महालया अमावस्या की पूरी रश्में

इस दिन, उन मृत परिवार के सदस्यों के लिए तर्पण और श्राद्ध अनुष्ठान किया जाता है जिनकी मृत्यु ‘चतुर्दशी’, ‘अमावस्या’ या ‘पूर्णिमा’ तिथि पर हुई हो. पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन, व्रतकर्ता जल्दी उठते हैं और सुबह की रस्मों को पूरा करते है. वे इस दिन पीले वस्त्र पहनते हैं और ब्राह्मण को अपने घर पर आमंत्रित करते हैं. श्राद्ध समारोह परिवार के सबसे बड़े पुरुष द्वारा मनाया जाता है. जैसे ही ब्राह्मण आते है, अनुष्ठान का पर्यवेक्षक उनका पैर धोता है और उन्हें बैठने के लिए एक साफ जगह प्रदान कराता है. देव पक्ष के ब्राह्मण पूर्व दिशा की ओर अपना मुख करके बैठते हैं, जबकि पितृ पक्ष और मातृ पक्ष के ब्राह्मण उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठते हैं.

महालया अमावस्या पर ‘पितरों’ की धूप, दीया और फूलों से पूजा की जाती है. पितरों को प्रसन्न करने के लिए जल और जौ का मिश्रण भी अर्पित किया जाता है. दाहिने कंधे पर एक पवित्र धागा पहना जाता है और एक पट्टी दान में दी जाती है. इस आयोजन के लिए विशेष भोजन तैयार किया जाता है और पूजा अनुष्ठान पूरा करने के बाद ब्राह्मणों को दिया जाता है. जिस फर्श पर ब्राह्मण बैठते हैं उस पर भी तिल छिड़के जाते हैं.

यह दिन पूर्वजों के सम्मान में मनाया जाता है और परिवार के सदस्य उनकी याद में यह दिन बिताते हैं. पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंत्रों का जाप किया जाता है. इस दिन लोग अपने पूर्वजों को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने उनके जीवन में योगदान दिया है. वे अपने पूर्वजों से माफ़ी भी मांगते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उनकी आत्मा को शांति मिले.

महालया अमावस्या 2023: इस समय का रखना होगा खास ध्यान

  • सूर्योदय 14 अक्टूबर, प्रातः 6:27 बजे

  • सूर्यास्त 14 अक्टूबर, शाम 5:58 बजे

  • अमावस्या तिथि का समय 13 अक्टूबर, रात्रि 09:51 – 14 अक्टूबर, रात्रि 11:25 बजे

  • अपराहन काल 14 अक्टूबर, रात्रि 01:22 बजे – रात्रि 03:40 बजे

  • कुतुप मुहूर्त 14 अक्टूबर, सुबह 11:49 बजे – दोपहर 12:36 बजे

  • रोहिना मुहूर्त 14 अक्टूबर, दोपहर 12:36 – 01:22 बजे

जानें क्यों मनाया जाता है महालया अमावस्या 

महालया अमावस्या के अनुष्ठान आशीर्वाद, कल्याण और समृद्धि प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं. इस अनुष्ठान को करने वाले को भगवान यम का भी आशीर्वाद मिलता है और उनके परिवार को सभी बुराइयों से बचाया जाता है.

हिंदू धर्मग्रंथों में यह बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति पहले 15 दिनों के दौरान अपने पूर्वजों का श्राद्ध नहीं कर पाता है या मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, तो उनकी ओर से ‘तर्पण’ ‘सर्वपितृ मोक्ष’ के दिन किया जा सकता है. हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है कि महालया अमावस्या के दिन पितर और पूर्वज अपने घर आते हैं और यदि उनकी ओर से उनका श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है, तो वे अप्रसन्न होकर लौट जाते हैं.

ज्योतिष शास्त्र में भी बताया गया है कि यदि पूर्वज कोई गलती करते हैं तो इसका असर उनकी संतान की कुंडली में ‘पितृ दोष’ के रूप में दिखता है. परिणामस्वरूप वे अपने जीवन में बुरे अनुभवों से पीड़ित होते हैं. इन पूर्वजों की आत्माओं को मोक्ष नहीं मिलता और इसलिए वे शांति की तलाश में भटकते रहते हैं. हालांकि महालया अमावस्या पर श्राद्ध कर्म करने से इस ‘पितृ दोष’ को दूर किया जा सकता है और मृत आत्मा को मोक्ष भी मिलता है. बदले में पूर्वज उनके परिवार को आशीर्वाद भी देते हैं और उन्हें जीवन में सभी खुशियाँ प्रदान करते हैं.

Also Read: Navratri Ke Upay: इस नवरात्रि में होगी धन की बरसात, बस कर लें ये काम

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें