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International Day for the Eradication of Poverty 2022 आज, जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है ये दिन

International Day for the Eradication of Poverty 2022: इस वर्ष, महासभा द्वारा 22 दिसंबर 1992 के संकल्प 47/196 में, 17 अक्टूबर को गरीबी उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित घोषणा की 27वीं वर्षगांठ है.

International Day for the Eradication of Poverty 2022: आज यानी 17 अक्तूबर के दिन हर साल गरीबी उन्मूलन अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. इस दिन का उद्देश्य दुनिया भर में, विशेष रूप से विकासशील देशों में गरीबी और गरीबी उन्मूलन की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है.

International Day for the Eradication of Poverty: दिन का इतिहास

इस वर्ष, महासभा द्वारा 22 दिसंबर 1992 के संकल्प 47/196 में, 17 अक्टूबर को गरीबी उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित घोषणा की 27वीं वर्षगांठ है. इस वर्ष फादर जोसेफ व्रेसिंस्की (Joseph Wresinski) द्वारा कॉल टू एक्शन की 32 वीं वर्षगांठ भी है – जिसने 17 अक्टूबर को अत्यधिक गरीबी पर काबू पाने के लिए विश्व दिवस के रूप में मनाने के लिए प्रेरित किया – और संयुक्त राष्ट्र द्वारा उस दिन को अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस के रूप में मान्यता दी गई.

गरीबी उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस क्यों मनाया जाता है?

हर साल 17 अक्टूबर को गरीबी कम करके जीवनमान उच्च करने के उद्देश्य से दुनियाभर में “गरीबी उन्मूलन अंतर्राष्ट्रीय दिवस” मनाया जाता है. इस साल के लिए गरीबी उन्मूलन अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2022 की मुख्य थीम “व्यवहार में सभी के लिए गरिमा” (Dignity for all in practice is the umbrella theme of the International Day for the Eradication of Poverty for 2022-2023) यह है.

भारत में चरम पर है बढ़ती आर्थिक असमानता

विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 (World Inequality Report 2022) कहती है कि भारत में दुनिया की सबसे चरम असमानता देखी गई है. देश की शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के पास राष्ट्रीय आय का 57% है, जिसमें से 22% शीर्ष एक प्रतिशत लोगों के पास है जो 1990 में 11 प्रतिशत था. नीचे के 50% आबादी के हिस्से देश की कुल संपत्ति का केवल 13% है, ये लोग सालाना 53160 रुपये और शीर्ष 10% आबादी 1166520 रुपये कमा रहे हैं, जो निम्न से 20 गुना अधिक है. गिनी (आय वितरण में असमानता) गुणांक देश में बढ़ती असमानता की ओर इशारा करती है. 2014 में गुणांक 34.4% से 2018 में गुणांक बढ़कर 47.9% हो गया.

रिपोर्ट यह भी बताती है कि पिछले एक दशक में तनाव, उदासी, गुस्सा और चिंता बढ़ रही है, जो अब रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. देश में धन के साथ लैंगिक समानता और नस्लीय समानता की भी आवश्यकता नजर आती है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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