Cholesterol Medicine: उच्च कोलेस्ट्रॉल को कम करने में इस्तेमाल होने वाली दवा ‘स्टैटिन’ अब कैंसर के इलाज में भी नई उम्मीद बन सकती है. ताजा शोध में पाया गया है कि यह दवा ‘कोलोरेक्टल ट्यूमर’ (आंत से जुड़ा कैंसर) की वृद्धि को धीमा कर सकती है. शोधकर्ताओं का कहना है कि फिलहाल यह शुरुआती नतीजे हैं और इसे कैंसर के मानक इलाज का हिस्सा बनाने से पहले और नैदानिक परीक्षणों की आवश्यकता होगी.
क्या है दवा का दोबारा उपयोग?
मौजूदा दवाओं को दूसरे उद्देश्य से इस्तेमाल करना यानी ‘ड्रग रिपर्पजिंग’ अब मेडिकल रिसर्च की दुनिया में तेजी से प्रचलित हो रहा है. इस तरीके से नई दवा विकसित करने की तुलना में कम खर्च और तेजी से इलाज की संभावनाएं सामने आती हैं. कंप्यूटिंग पावर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बायो-इंफॉरमैटिक्स की मदद से हाल के वर्षों में दवाओं के नये उपयोग तलाशने की प्रक्रिया आसान और कारगर हुई है. कैंसर, रूमेटाइड आर्थराइटिस और एचआईवी/एड्स जैसी बीमारियों में मौजूदा दवाओं को नये तरीके से इस्तेमाल करने पर शोध जारी है.
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शोध से क्या सामने आया?
इस अध्ययन का नेतृत्व शिव नादर यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ नेचुरल साइंसेज के डीन प्रो. संजीव गलांडे ने किया. उन्होंने बताया कि कोलेस्ट्रॉल का मेटाबोलिज्म कोलोरेक्टल कैंसर से काफी हद तक मेल खाता है. प्रो. गलांडे ने कहा, “स्टैटिन का इस्तेमाल कुछ कैंसरों की वृद्धि को धीमा करता है, हालांकि इसकी सटीक कार्यप्रणाली अभी स्पष्ट नहीं है.”
शोध टीम में भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान
आईआईएसईआर, पुणे के विशेषज्ञ भी शामिल थे. टीम ने कोशिकाओं और चूहों पर किए गए प्रयोगों में पाया कि स्टैटिन कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में मददगार है. यह शोध प्रतिष्ठित पत्रिका ‘ऑन्कोटारगेट’ में प्रकाशित हुआ है. इसमें कहा गया है कि संवर्धित (कोलोरेक्टल कैंसर) कोशिकाओं और चूहों दोनों पर हुए प्रयोगों में स्टैटिन ने ट्यूमर की वृद्धि को प्रभावी ढंग से धीमा किया.
उम्मीद की किरण
शोधकर्ताओं ने बताया कि जीन की गतिविधि में बदलाव के कारण कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि रुक गई. यह प्रभाव उन मॉडल्स में भी देखने को मिला जो ट्यूमर के बहुत करीब हैं. प्रो. गलांडे ने कहा, “हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि स्टैटिन ‘कोलोरेक्टल कैंसर’ के संभावित इलाज के रूप में आशा की किरण है.”
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