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सावधान! जीका और इबोला के बाद जल्द गहराने वाला है एक और महामारी का खतरा

जीका और इबोला के बाद जल्द गहराने वाला है एक और महामारी का खतरा जल्द फैलने वाला है. 2002 में महामारी बन कर अफ्रीका महाद्वीप में कहर बरपाने वाले सार्स वायरस जैसा एक और वायरस विज्ञानियों ने खोजा है. चमगादड़ की एक प्रजाति में घातक वायरस पाया गया है, जिसे डब्ल्यूवीआइ-सीओवी नाम दिया गया है […]

जीका और इबोला के बाद जल्द गहराने वाला है एक और महामारी का खतरा जल्द फैलने वाला है. 2002 में महामारी बन कर अफ्रीका महाद्वीप में कहर बरपाने वाले सार्स वायरस जैसा एक और वायरस विज्ञानियों ने खोजा है.

चमगादड़ की एक प्रजाति में घातक वायरस पाया गया है, जिसे डब्ल्यूवीआइ-सीओवी नाम दिया गया है यह वायरस मानव शरीर पर सीधे हमला करता है, उसे अनुकूलन की कोई आवश्यकता नहीं होती.

विज्ञानियों के अनुसार, इबोला के बाद जीका और अब यह वायरस बड़े क्षेत्र में फैल कर लाखों लोगों को शिकार बना सकता है.

इस नए शोध के अनुसार, यह वायरस उसी तरह लोगों को बीमार करेगा जैसे सार्स-सीओवी ने किया था.

अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि वायरस मानव के सांस संबंधी टिशुओं में किसी भी समय उतर सकता है.

यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना में किए गये शोध की टीम के प्रमुख प्रोफेसर राल्फ बारिक ने कहा कि विश्व को एक और महामारी की रोकथाम के लिए तैयार रहना चाहिए. करोड़ों डॉलर खर्च करने के बाद भी हाल की दो महामारियों इबोला और जीका के इलाज के लिए वैक्सीन तक नहीं बन पाई. इबोला से हजारों की जान गई और जीका मानव की नई नस्ल को पंगु बना रहा है.

एक अन्य विज्ञानी विनीत मिनेचरी ने बताया कि नए वायरस की क्षमता हमारे अनुमान से कहीं अधिक है. मानव कोशिकाओं में इनकी संख्या तेजी से बढ़ती है. बोरिक और मिनेचरी ने इस चमगादड़ पर गहन अनुसंधान किया है. इसी से सार्स की बीमारी फैली थी। अब तक माना जा रहा था कि यह वायरस मानव पर सीधा हमला कभी नहीं कर सकता परंतु वह अवधारणा गलत साबित हुई.

एसएआरएस का पूरा नाम सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम है. बीमारी 2002 में फैली, आठ हजार केस सामने आए जिनमें से आठ सौ मरीजों की मौत हो गई थी. फ्लू जैसी लगने वाली बीमारी बहुत जल्द न्यूमोनिया में बदल जाती है, फेफड़ों में द्रव्य भर जाता है तथा मानव की रोगरोधक क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है. यह हवा के माध्यम से फैलती है. वृद्ध रोगियों की मृत्यु दर बहुत अधिक (50%) तक पहुंच जाती है. नया वायरस भी इसी तरह जानलेवा हो सकता है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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