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Web Series The Hunt :निर्देशक नागेश कुकुनूर को सीरीज को पॉलिटिकल थ्रिलर कहने पर है ऐतराज.. 

निर्देशक नागेश कुकुनूर ने हालिया रिलीज वेब सीरीज द हंट की मेकिंग से जुड़े दिलचस्प किस्सों का खुलासा इस इंटरव्यू में किया है.

web series the hunt :सोनी लिव पर इन दिनों वेब सीरीज द हंट: द राजीव गांधी असैसनैशन केस स्ट्रीम कर रही है.अमित सियाल स्टारर इस सीरीज के निर्देशक नागेश कुकुनूर हैं. इस सीरीज की मेकिंग और दूसरे पहलुओं पर निर्देशक नागेश कुकुनूर की उर्मिला कोरी के साथ हुई बातचीत

सीरीज को लेकर अब तक का आपको रिस्पांस कैसा मिला है ?

मैं छह साल से सोशल मीडिया पर बिलकुल नहीं हूं. हां मेरे ऑफिस के लोग कॉल करके मुझे बताते हैं कि कैसा रिस्पांस मिल रहा है तो मालूम पड़ा है कि लोगों को यह सीरीज पसंद आ रही है. 

सोशल मीडिया से दूरी की कोई खास वजह ?

मैंने पेंडेमिक के वक़्त यह फैसला किया था. सोशल मीडिया पर बहुत नेगेटिविटी चलती है.मुझे उस पर रहने का कुछ फायदा दिखा ही नहीं. इसके साथ ही मेरी जिन्दगी के जो प्राइवेट इवेंट्स हैं. मैं उनको पर्सनल रखता हूं. आज मैं जिम गया. आज मैं चपाती खाया. ये सब दूसरों को बताने की क्या ज़रूरत है.अगर कुछ बताने लायक है तो फिर आपलोग हैं. 

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या पर कई डॉक्यूमेंट्रीज और फिल्म मद्रास कैफ़े बन चुकी है ऐसे में सीरीज द हंट को हां कहने की आपकी क्या वजहें थी ? 

जिन लोगों ने मद्रास कैफ़े देखी है. उन दर्शकों के लिए भी इस सीरीज में बहुत कुछ है क्योंकि जहाँ मद्रास कैफ़े की कहानी खत्म होती है वहां से यह सीरीज शुरू होती है.यह सीरीज जर्नलिस्ट अनिरुद्ध मित्रा के किताब ९० डेज  पर पूरी तरह से आधारित है. वे ग्राउंड पर थे. उन्होंने बहुत कुछ देखा और अनुभव किया. अनिरुद्ध मित्रा ने अपनी किताब के साथ अप्प्लॉज के हेड समीर नायर को अप्रोच किया और समीर ने मुझे इस सीरीज से जोड़ा.हमें लगा कि यह कहानी कहनी चाहिए.किसी ने इन्वेस्टीगेशन के 90 दिनों की कहानी को इतने डिटेल में कभी दिखाया ही नहीं है.उस घटना से पहले क्या क्या हुआ था.उसके बाद क्या हुआ. किस तरह से एलटीटी के लोग फरार हुए थे.टीम किस तरह से उन तक पहुंची थी. उस वक़्त टेक्नोलॉजी नहीं थी. ये कहीं दिखाया नहीं गया है, जितना इस सीरीज में डिटेल में दिखाया गया है तो यही सब पहलुओं ने मुझे इस सीरीज से जोड़ दिया.

यह आपकी पहली रियल लाइफ पर आधारित पॉलिटिकल थ्रिलर है ? 

मैं इस सीरीज को पॉलिटिकल थ्रिलर नहीं कहूंगा क्योंकि इसमें पॉलिटिक्स का कुछ लेना देना नहीं है. यह पूरी तरह से एसआईटी के इन्वेस्टीगेशन की कहानी है , जो लोग मुझे जानते हैं. वह इस बात से वाकिफ हैं कि मैं पॉलिटिकल और रिलीजियस फिल्मों से दूर रहना चाहता हूं. आप कितना भी संवेदनशील तरीके से डील करो. मुद्दा बन  ही जाता है.मैं अपने सालों की मेहनत को किसी के आहत होने पर कुर्बान नहीं कर सकता हूं इसलिए मैं दूर ही रहता हूं.

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या से जुड़ी आपकी क्या मेमोरी रही है ?

मैं उस वक़्त यूएस में था. अपना मास्टर्स खत्म किया था. अपना पहला जॉब कर रहा था. इस हत्या ने हर भारतीय की तरह मुझे भी शॉक्ड कर दिया था लेकिन मुझे अमेरिका में हर दिन इस हत्याकांड से जुड़े इनफार्मेशन नहीं मिलते थे. संडे को वर्ल्ड न्यूज़ का एक सेक्शन पेपर में आता था. उसी से मुझे इसके महत्वपूर्ण पहलुओं का पता था. जब सीरीज बनाने जा रहा था तो उससे पहले 90 डेज किताब पढ़ी. जैसे जैसे आप बढे होते हैं आपकी सोच विकसित होती है. मैं इसको एक घटना की तरह देख रहा हूँ. हर किसी को इंसान की तरह. किसी को बुरा या किसी को महान नहीं .उसे उसी तरह सीरीज में प्रस्तुत किया है

सीरीज 90 के दशक पर आधारित है,उस दशक को परदे पर लाने की क्या चुनौतियां थी ? 

किसी भी पीरियड वाली  कहानी को परदे पर दर्शाने के लिए तीन चार चीजें अहम् होती हैं. लोकेशन , आर्ट डिपार्टमेंट, कॉस्ट्यूम , मेकअप.इन्ही की मदद से बीता दौर परदे पर जीता है. भारत में सबसे बड़ी दिक्कत ये होती है कि जब एक इरा खतम हो जाता है तो उससे जुडी चीजें भी खत्म हो जाती है.विदेशों में ऐसा नहीं होता है.शूटिंग में जो प्रॉप्स का हम इस्तेमाल करते हैं.हॉलीवुड में उसके प्रॉपर शॉप होते हैं, जहाँ पर 1900 से लेकर 2025 तक के दौर  फ़ोन ,फर्नीचर,कार हर चीज मिल जायेगी, भारत में ऐसा नहीं  है. खासकर मुंबई में ऐसे एक भी अच्छे शॉप नहीं है. जो इस तरह से चीजों को संभालकर रखें. सीरीज के लिए हमें वीसीआर की जरुरत थी. वीसीआर तो मिल गए लेकिन वर्किंग कंडीशन में मिलने में मुश्किल हुई.वो मिला तो फिर कैसेट नहीं था. मेरे  पास पुराने वर्किंग कैसेट थे तो उसका इस्तेमाल हुआ.प्रॉप्स के अलावा लोकेशन भी ढूंढने मुश्किल थे. पुराने शहर बचे नहीं हैं. मुंबई और महाराष्ट्र के इंटीरियर के अलावा हैदराबाद के ओल्ड सिटी एरिया और आउटस्कर्ट्स में शूट किया. हैदराबाद से हूं, इसलिए काफी कुछ पता है.वहां  मिलते-जुलते कई सारे लोकेशन मिल गए. मेरे दो असिस्टेंट चेन्नई से थे. उन्होंने जब हैदराबाद के लोकेशंस देखे, तब शॉक हो गए. वे कहने लगे कि यह तो चेन्नई से एकदम मिलता-जुलता है, जो कहानी की मांग थी. सीरीज को हिंदी और तमिल में शूट करना भी बहुत थका देने वाला अनुभव था. 


सबसे मुश्किल किस सीक्वेंस की शूटिंग थी ?

मैं बताना चाहूंगा कि  सीरीज की कहानी पहले छह एपिसोड में ही पूरी होने वाली थी लेकिन लिखते हुए वो रैली वाला सीन बहुत महत्वपूर्ण बन गया था, जिसके बाद एपिसोड को छह से सात बनाया गया. फिल्म में सबसे मुश्किल शूटिंग भी रैली वाले सीन की ही थी. मानसून किसी भी फिल्मकार के लिए सरदर्द रहता है।  अगर वह कहानी का हिस्सा ना हो.इस सीरीज के साथ भी हुआ.400 से 500 जूनियर आर्टिस्ट को मंगवाकर शूटिंग शाम में शुरू होने ही वाली थी कि तेज़ बारिश होने लगी. सभी किसी ना किसी तरह से टैंट में खुद को बचा पाए. रात के दो बजे बारिश रुकी। शूटिंग शुरू हुई कुछ मिनट ही बीते कि फिर बारिश शुरू हो गयी. क्लाइमेक्स की शूटिंग तीन दिन तक बारिश की वजह से बाधित हुई फिर किसी तरह पूरी हुई.मैं बताना चाहूंगा कि सीरीज में भी रैली वाले सीन की शूटिंग 21 मई को हो पायी थी. 21 मई का ही दिन था, जब वह घटना हुई थी.

शो रियल घटना और रियल लोगों पर आधारित है, शो की कास्टिंग में इसका कितना ख्याल रखा गया ?

बहुत ज्यादा. आमतौर पर कास्टिंग में तीन महीने का समय मुझे जाता है लेकिन इस सीरीज में मुझे कास्टिंग में पांच महीने लगे हैं. अमित सियाल ने एसआईटी हेड डीआर कार्तिकेयन का कैरेक्टर प्ले किया है. उनकी मूंछ और फिजिक कार्तिकेयन से मैच कर रही थी। एक अमित वर्मा का किरदार है, जिसे साहिल वैद्य प्ले किया है. इस रोल के लिए ऐसा एक्टर चाहिए था, जो हिंदी और तमिल दोनों भाषा में सहज हो. साहिल नार्थ से हैं तमिलनाडु में पले-बढ़े हैं, सो उन्हें तमिल आती थी. सबसे ज्यादा जिस किरदार को ढूढ़ने में मशक्त हुई. वह शिवरासन वाला रोल था. उसे शफीक मुस्तफा ने निभाया है. उसका एग्जैक्ट मैच करना बहुत ज़रूरी था. बहुत सारे लोगों का ऑडिशन साउथ के अलग -अलग जगहों पर लिया. फाइनली शफीक मुस्तफा केरल में मिले.  


Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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