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Raktanchal Review: गैंग्स ऑफ वासेपुर का हैंगओवर ‘रक्तांचल’

web series raktanchal review kranti prakash jha : बॉलीवुड में 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' ने इस कदर अपनी छाप छोड़ी है कि इसके बाद कोई भी गैंग्स्टर फिल्म जबतक उससे अलग अंदाज़ में नहीं बनती है. वह स्तरीय नहीं हो पाती है. दोष इसमें इस विषय को गढ़ने वालों का भी है. उन्हें इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि कहानी लिखते वह किस भी तरह से इसके ऑरा में बंध कर न रहें.

वेब शो का नाम : रक्तांचल

कलाकर : क्रांति प्रकाश झा, निकेतन धीर, रोंजिनी चक्रवर्ती, विक्रम कोचर, कृष्णा बिष्ट, रवि

निर्देशक : रीतम श्रीवास्तव

लेखक : सर्वेश उपाध्याय और शशांक राही

वेब चैनल : एम एक्स प्लेयर

रेटिंग : २ स्टार

बॉलीवुड में ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ ने इस कदर अपनी छाप छोड़ी है कि इसके बाद कोई भी गैंग्स्टर फिल्म जबतक उससे अलग अंदाज़ में नहीं बनती है. वह स्तरीय नहीं हो पाती है. दोष इसमें इस विषय को गढ़ने वालों का भी है. उन्हें इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि कहानी लिखते वह किस भी तरह से इसके ऑरा में बंध कर न रहें. रीतम की नयी पेशकश रक्तांचल अफसोसजनक उसी ढर्रे पर है. (रिव्‍यू : उर्मिला कोरी)

क्या है कहानी :

शो की कहानी उत्तर प्रदेश की है. कहानी 1984 से शुरू होती है. विजय सिंह (क्रांति प्रकाश झा) कलेक्टर बनना चाहता है. लेकिन उसके पिताजी की हत्या वसीम खान गैंग्स्टर ( निकेतन ) की वजह से हो जाती है. इसके बाद वहीँ पुराना हिंदी सिनेमा का घिसा पिटा फार्मूला बदला आ जाता है।बदले की आग में जलने वाला विजय पढ़ाई छोड़ कर गैंग्स्टर बन वसीम खान के लिए चुनौती बन जाता है. आज के दौर में ऐसी कहानी कौन देखना चाहेगा. विजय सिंह वसीम खान जितना पावरफुल बन जाता है और इसके बाद खूब सारा खून खराबा होता है और फिर कहानी खत्म हो जाती है. ऐसे दौर में जहाँ अब वेब पर दर्शकों के पास विकल्प हैं कि वह तुरंत चैनल बदल सकते हैं, वहां ऐसे शो जिसकी मेकिंग से लेकर ट्रीटमेंट तक किसी सस्ती 80 और 90 के दशक की फ़िल्म सी लगती हो, क्यों देखेंगे. निर्देशकों के साथ-साथ इसमें दोष पूरी तरह से इसके चयन कर्ताओं का भी है. इतनी शानदार फिल्में और प्रोजेक्ट्स को मौके नहीं मिल पा रहे हैं, ऐसे में ऐसी चलताऊ चीजें क्यों परोसी जा रही है. लॉकडाउन की वजह से समय भले ही बहुत है लेकिन इस वेब शो में बर्बाद करना कतई समझदारी नहीं होगीं

अभिनय : अभिनय की बात करें तो क्रांति प्रकाश झा ने अच्छी कोशिश की है, उन्होंने अपना 100 प्रतिशत दिया भी है. लेकिन इसके बावजूद में वह इस सीरीज में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब नहीं हो पाए हैं. निकेतन तो अब तक अपने थंग बली वाले जोन से ही बाहर नहीं निकल पाए हैं. शेष कलाकारों के लिए खास करने को कुछ है नहीं.

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क्या है अच्छा : क्रांति प्रकाश का अभिनय फ़िल्म के अच्छे पहलू में से एक है। संवाद ठीक ठाक है.

क्या है बुरा : 80 के दशक को दिखाते हुए जबरन हिन्दू मुस्लिम दंगा वाला फंडा न जाने क्यों फिट बैठाया जाता है . गाने बेवजह के ठूसे हुए हैं. जो कहानी की रफ्तार को रोकते है. पता नहीं क्यों कहानी को ओपन रखा गया है. साफ है सेकेण्ड सीजन की भी तैयारी है जबकि मेकर्स को यहीं ठहर जाना चाहिए.

posted by: Budhmani Minj

Prabhat Khabar Digital Desk
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