Chup movie review : फ़िल्म-- चुप द आर्टिस्ट रिवेंज
निर्देशक-आर.बाल्की
कलाकार- दुलकर सलमान,श्रेया धन्वंतरि,पूजा भट्ट,सनी देओल और अन्य
रेटिंग ढाई
Chup movie review : निर्देशक आर बाल्की हमेशा से ही लीग से हटकर विषयों को अपनी फिल्मों में प्राथमिकता देते आए हैं. इस बार भी उन्होंने एक अलहदा विषय को अपनी कहानी में जगह दी है साथ ही पहली बार थ्रिलर जॉनर में कहानी को गढ़ा है. जिसके लिए उनकी तारीफ होनी चाहिए क्योंकि मौजूदा दौर में सफलता के लिए हर निर्देशक रिमेक और सीक्वल के फार्मूले को आजमा रहा है,लेकिन बाल्की मौलिकता में यकीन करते हैं. कांसेप्ट लेवल एकदम अलहदा फ़िल्म चुप कुछ खामियों के बावजूद अपनी मौजूदगी का शोर मचाने में कामयाब रहती है.
साइको किलर है कहानी
फ़िल्म की कहानी एक साइको किलर डैनी (दुलकर सलमान) की है. जो फ़िल्म समीक्षकों को चुन-चुन कर मार रहा है. जो किसी अच्छी फिल्म को बुरी और बुरी को अच्छी अपने फायदों के लिए बताते हैं. क्राइम ब्रांच के प्रमुख माथुर (सनी देओल) को इस कातिल को पकड़ने की जिम्मेदारी मिलती है. इस कहानी के साथ-साथ एक प्रेम कहानी भी चलती रहती है. क्या माथुर साइको किलर को उसके अंजाम तक पहुंचा पाएगा. उसकी प्रेम कहानी का क्या होगा।यह आगे की फ़िल्म में है. यह फ़िल्म सिनेमा की दुनिया में फ़िल्म समीक्षकों की भूमिका के साथ -साथ उनके जिम्मेदार होने की बात को रखता है. यह फ़िल्म कालजयी निर्देशक गुरुदत्त को अपने अंदाज में श्रद्धांजलि भी देती है. संगीत,संवाद,दृश्यों और लाइट्स में उनकी अमिट छाप दिखती है. जो इस फ़िल्म का शानदार पहलू बनकर उभरा है. हालांकि यह सवाल भी जेहन में आता है कि कागज़ के फूल गुरुदत्त की आखिरी फ़िल्म नहीं थी,उसके बाद भी उन्होंने चौदहवीं का चांद और साहब बीवी और गुलाम जैसी सफल फिल्में बनायी थी.
फ़िल्म इन पहलुओं पर गयी है चूक
फ़िल्म की कहानी प्रिडिक्टेबल है. आपको फ़िल्म की शुरुआत में ही ये बता देती है कि साइको किलर कौन है. उसका एक बुरा अतीत भी है,फ़िल्म देखते हुए आपको उसकी भी समझ आ ही जाती है. यह बात खलती है कि जो आपने फ़िल्म के ट्रेलर में देखा है. वही फ़िल्म में भी है. फ़िल्म में दुलकर सलमान के किरदार में डबल पर्सनालिटी है. सेबेस्टियन एक किरदार है दूसरा कौन है. इस पर ज़्यादा लिखा ही नहीं गया है, वो किरदार कैसे उसके भीतर आया. सेबेस्टियन ने अपना रिवेंज लेने में 10 सालों का लंबा इंतजार क्यों किया. जब उसकी फ़िल्म को क्रिटिक्स ने नकारा, तो उसने उस वक़्त क्यों नहीं बदला लिया था. इन सब बातों का फ़िल्म जवाब नहीं दे पाती है. फ़िल्म का क्लाइमेक्स भी कमजोर रह गया है.
इन पहलुओं पर मामला जमा है खूब
फ़िल्म की कहानी प्रेडिक्टेबल है ,लेकिन इस कहानी को दिलचस्प इसके संवाद बनाते हैं. फ़िल्म के संवाद हँसाने के साथ-साथ कई बार समाज का स्याह सच भी सामने ले आती है. यह कहना गलत ना होगा. अमित त्रिवेदी का संगीत सुकून देता है. फ़िल्म में कागज़ के फूल के गीत जाने क्या तूने और ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है बहुत ही खूबसूरती से इस्तेमाल हुआ है. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी ने मुम्बई को बहुत खूबसूरत ढंग से पर्दे पर उतारा है. कुछ दृश्य तो शानदार हैं. संवाद,संगीत,सिनेमेटोग्राफी के साथ साथ बैकग्राउंड म्यूजिक भी शानदार है.
कलाकारों ने दी है कमाल की परफॉर्मेंस
अभिनय की बात करें दुलकर सलमान ने उम्दा परफॉरमेंस दी है. अपने किरदार में एक पल को वो क्रूर हत्याएं करने वाले कातिल हैं,तो दूसरे पल वह आशिक बन जाते हैं. जो अपने प्रेमिका को हर दिन मुस्कुराते हुए ट्यूलिप के फूल देते हैं. उन्होंने बहुत ही सहजता के साथ अपने किरदार के दोहरेपन को जिया है. श्रेया धन्वंतरि ऑन स्क्रीन अपनी छाप छोड़ती है तो उनकी मां सरन्या दिल जीत ले जाती हैं. एक अरसे बाद फिल्मों में दिखेंसनी देओल फ़िल्म की शुरुआत में अपने चित परिचित अंदाज़ से अलग नज़र आते हैं. हालांकि फिल्म के आखिरी बीस मिनट में वह अपने माचो इमेज में आ ही जाते हैं. जिसको देखना अच्छा भी लगता है. अभिनेत्री पूजा भट्ट इंटरवल के बाद फ़िल्म से जुड़ती है,लेकिन अपने किरदार को वह पूरी ईमानदारी के साथ निभाती हैं. आर बाल्की की फ़िल्म है तो अमिताभ बच्चन मेहमान भूमिका में नज़र आएंगे ही और वह छोटी ही सही लेकिन उस भूमिका में भी छाप छोड़ जाते हैं.
देखें या ना देखें
फ़िल्म की कहानी कमज़ोर रह गयी है,लेकिन उम्दा परफॉर्मेंस और खूबसूरत सिनेमेटोग्राफी, दिलचस्प संवाद और शानदार संगीत की वजह से यह अलहदा विषय पर बनी फ़िल्म एक बार देखी जा सकती है.