मुंबई : संजय दत्त को किसी जमाने में ड्रग्स और नशे की जबरदस्त तलब होती थी, इस बात से तो हर कोई वाकिफ है. इस कारण को संजू को काफी दिनों तक रिहैब्लिटेशन सेंटर का भी हिस्सा बनना पड़ा था, ये भी कई लोगों को पता होगा. पर शायद आपको नहीं पता कि संजय के ड्रग्स लेने वाली बात संजय के पिता सुनिल तक किसने पहुंचाई थी.
बॉलीवुड के बैड मैन यानी गुलशन ग्रोवर ने सुनिल दत्त को संजय के इस तलब के बारे में खबर दी थी. गुलशन ग्रोवर की बायोग्राफी ‘बैडमैन’ जल्द ही दस्तक देने वाली है. इस किताब में गुलशन अपनी अब तक की जर्नी को बयां करेंगे. इस किताब और अपनी जिंदगी से जुड़ी कुछ बातें उन्होंने उर्मिला कोरी से साझा की. पेश है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
कंट्रोवर्सी नहीं होगी कुछ भी
मैं निजी तौर पर आॅटोबायोग्राफी और बायोग्राफी के खिलाफ रहा हूं. मुझे ये लगता है कि लिखने वाले एक तरफा कहानी लिखते हैं. ऐसे में इंसानी फितरत होती है कि फिल्म की तरह से हम जिंदगी को भी अपने नजरिये से ही देखते हैं. यही वजह है कि मुझे हमेशा ये बात महसूस होती है कि बायोग्राफी में जिस-जिस का नाम लिखा जाता है उससे परमिशन लेने की जरूरत होनी चाहिए. पेंगुइन ऐसा पब्लिशिंग हाउस है जिसमे मेरी भी बायोग्राफी आ रही है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी की बायोग्राफी के बाद उन्होंने लीगल ओपिनियन लेना शुरू कर दिया. वैसे मेरा भी सोचना था कि मैं किसी को अपनी बायोग्राफी से दु:खी नहीं करूंगा.
बायोपिक लिखने की वजह
दो तीन चीजों की वजह से मैंने ये बायोपिक लिखी. मेरी कहानी सामयिक है. आमतौर पर लोग कहानी लिखना तब शुरू करते हैं जब वे वॉकमैन या अंबेसडर कार की तरह पुराने नहीं होते हैं. जब एक महीने में मेरी 20 फिल्में रिलीज होती थी उस वक्त की तरह मैं आज भी समायिक हूं. मेरी तीन फिल्में आने वाली हैं. एक रोहित शेट्टी की सूर्यवंशी है दूसरी सड़क 2 भट्ट की , तीसरी मुंबई सागा संजय गुप्ता वाली है. हॉलीवुड फिल्में भी कर रहा हूं. मैं पहला भारतीय हूं जो पोलिश , इरानियन और मलेशियन फिल्म की हैं.
मुझे लगा कि अपनी कहानी कहानी चाहिए कि सपने देखो और उसे पूरा करने के लिए खूब मेहनत करो. मैं बहुत गरीबी से आया हूं. जहां रहता था वहां दूर-दूर तक कोई अंग्रेजी नहीं बोलता था लेकिन मैने 93 परसेंट और 5 विषयों में डिस्टिंक्शन के साथ भारत के प्रसिद्ध कॉलेज श्रीराम कॉलेज आॅफ कॉमर्स में दाखिला लिया. मैने स्क्रीन पर विलेन की एक नयी परिभाषा गढ़ी. आमतौर बहुत लंबे चौड़े हट्टे कट्टे लोग विलेन बनते थे, लेकिन मैं नॉर्मल सा दिखने वाला भी बॉलीवुड का पॉपुलर विलेन बन गया. मुझे लगा कि ये सब बातें आज की पीढ़ी को जाननी चाहिए.
फूट-फूट कर रोये थे दत्त साहब
बायोग्राफी की बात चली है तो संजय दत्त की बायोपिक फिल्म संजू की बहुत चर्चा पिछले साल हुई थी लेकिन उस बायोपिक में भी बहुत सारे तथ्य नहीं थे. फिल्म में मेरा जिक्र नहीं था. कुमार गौरव का भी नहीं जबकि हम उसकी जिंदगी का अहम हिस्सा रहे थे. संजय दत्त का मैं रोशन तनेजा इंस्टीट्यूट में एक्टिंग टीचर था. वहीं से हमारी दोस्ती हुई. लगातार सात आठ साल तक हम साथ में ही थे शायद हर दिन. संजय दत्त का जो वो फेज था ड्रग वाला था. उसका मैं गवाह रहा हूं. वो दोस्त मैं ही था जो सुनील दत्त साहब के पास गया था और संजय की ड्रग्स की आदत के बारे में बताया. सुनील दत्त साहब फूट-फूट कर रोये थे उस दिन.
हालांकि उन्हें शक जरूर था. वैसे मैं संजय दत्त के कहने पर ही उनके पिता और उनकी उस वक्त की गर्लफ्रेंड से मिलने गया था. मैंने दत्त साहब को कहा कि संजय सुधरना चाहता है इसलिए उसने मुझे भेजा. उसे मेडिकल हेल्प चाहिए. उसे कहीं पर भी अकेला नहीं छोड़ना है. बाथरुम तक के सभी दरवाजे हटाने होंगे. उसने यहां तक कहा था कि घर में एक सोये तो एक जागो क्योंकि मेरा भरोसा नहीं नशे के लिए मैं किसी को पत्थर या हॉकी स्टिक से भी मार सकता हूं ये सब संजय के ही शब्द थे.
कुमार गौरव से पहले थी संजू की दुश्मनी
रोशन तनेजा की क्लास में कुमार गौरव भी स्टूडेंट था. वो भी बड़े बाप का बेटा था. संजय से बड़ी उसकी गाड़ी हुआ करती थी. ऐसे में दोनों में युद्ध जैसा एक रिश्ता बन गया था. दोनों के बीच सुलह करवाने के लिए मैंने एक लंच रखा. उसी दिन दोपहर के समय एक पेपर में कुमार गौरव का इंटरव्यू था कि संजय दत्त अपनी फिल्म के लिए बाइक चलाना सीख रहे हैं क्या आप भी कर रहे हैं? उसका जवाब था कि मैं एक्टर हूं स्टन्टमैन नहीं.
अखबार में हैडिंग आयी मैं एक्टर हूं स्टंट मैन नहीं संजय दत्त की तरह. संजय ये पढ़कर कुमार गौरव को मारने को तैयार हो गया. किसी तरह मैंने कंट्रोल किया. बदलते समय के साथ दोनों में दोस्ती हो गयी और संजय के बुरे दौर में कुमार गौरव एक पिलर की तरह खड़ा रहा. उसका भी कहीं जिक्र नहीं हुआ. मेरी बायोग्राफी में उन सभी लोगों को जिक्र होगा जो मेरे दोस्त रहे हैं. मेरी अब तक जर्नी में मुझे सपोर्ट किया .