II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म : तुम्बाड
निर्माता : आनंद एल राय
निर्देशक : राही अनिल बार्वे
कलाकार : सोहम शाह, रंजिनी चक्रवर्ती, दीपक दामले
रेटिंग : तीन
हिंदी सिनेमा में हॉरर जोनर को अब तक भूत-प्रेत, डायन, पिशाच, जादू-टोना और टोटके के ज़रिए ही बयां किया गया है. ‘तुम्बाड’ रहस्य और तिलस्म की दुनिया के साथ इस जॉनर के साथ अलहदा न्याय करती है. ‘तुम्बाड’ की दुनिया दादा-दादी की किवदंती वाली है. जिसमें गाँधीजी के एक विचार की भी अहमियत है. गाँधीजी ने कहा था कि ये दुनिया लोगों की ज़रूरत को पूरा कर सकती है लेकिन उनके लालच को नहीं. गाँधीजी के इसी वाक्य से इस फ़िल्म की शुरुआत होती है.
1918 का वक़्त है और महाराष्ट्र का एक गाँव तुम्बाड जहां विनायक राव (सोहम शाह) अपने माँ और भाई के साथ रहता है. फ़िल्म के शुरुआत में किवदंती का जिक्र होता है जिसमें देवी के सबसे बड़े बेटे हस्तर का जिक्र होता है.जिसकी लालच ने उसे देवी के गर्भ में फिर से पहुँचा दिया है.
हस्तर के पास बहुत सारा खजाना था. जिसे उसने कहीं छिपा दिया था. इसी खजाने को विनायक की माँ ढूंढ रही है जिसे सोने से बहुत लगाव है लेकिन खजाने को ढूंढने में वह अपने दूसरे बेटे को खो देती है. वह अपने बेटे विनायक को लेकर तुम्बाड़ गाँव हमेशा के लिए छोड़ देती है लेकिन विनायक की खजाने की लालच उसे फिर से 15 साल बाद तुम्बाड पहुँचा देती है. वह अपने बेटे को भी इस लालच के खेल में शामिल कर देता है.
क्या होगा इस लालच का हश्र इसके लिए फ़िल्म देखनी होगी. फ़िल्म का क्लाइमेक्स काफी खौफनाक तरीके से फिल्माया गया है जो चकित भी कर देता है कि आखिर ऐसा क्यों. फ़िल्म की कहानी ड्रामा, थ्रिलर, फैंटेसी के साथ साथ हॉरर लिए है लेकिन एक अलहदा ढंग से. हस्तर नहीं विनायक का लालच डराता है.
फ़िल्म में अनावश्यक मनोरंजन के मसाले जैसे गाने या कॉमेडी के दृश्य न ठुसने के लिए निर्देशक की तारीफ करनी होगी. फ़िल्म के आखिर में कुछ सवालों के जवाब अधूरे से लगते हैं. स्त्री, अंधाधुन में भी निर्देशकों ने कुछ सवालों के जवाब अधूरे छोड़ दिए थे लगता है कि ये सिनेमा का नया ट्रेंड बन गया है.
अभिनय की बात करें तो अभिनेता सोहम शाह ने फ़िल्म में जबरदस्त अभिनय किया है. उनके संवाद अदाएगी, बॉडी लैंग्वेज सबकुछ खास है. फ़िल्म में उनकी आंखें बोलती है. विनायक के बेटे के तौर पर मोहम्द समद का काम बेहतरीन है. सेकंड हाफ में वह छा जाता है यह कहना गलत न होगा. अनिता और रंजिनी का अभिनय भी अच्छा है. बाकी के किरदार भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करने में सफल रहे हैं.
फ़िल्म के गीत संगीत की बात करें तो अजय अतुल का काम औसत है. फ़िल्म के बैकग्राउंड स्कोर की तारीफ करनी होगी.जो फ़िल्म को अंतरराष्ट्रीय फील देखते हुए दे जाते हैं.
फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी उम्दा है. उसके लिए जितना भी लिखा जाए कम होगा. फ़िल्म का लुक इसकी कहानी की आत्मा है. यह कहना गलत न होगा. तुम्बाड गाँव हो या विशेष वाड़ा परदे पर बखूबी उतारा गया है. फ़िल्म का फ्रेम दर फ्रेम इतना कमाल का है कि डर के बावजूद आपकी आंखें स्क्रीन पर टिकी रहती है. फ़िल्म के संवाद असरदार हैं. कुलमिलाकर आप अगर सिनेमा में अलग तरह के प्रयोगों के हिमायती हैं तो तुम्बाड आपके लिए एक बेहतरीन अनुभव साबित होगी.